मृदुला दुविधा में फंसी हुई थी । शिवा का असली नाम रवि है और उसका एक अतीत भी है जो बहुत सड़ा हुआ सा, गंदला सा है । क्या उस अतीत को मम्मी पापा को बता देना चाहिए ? इतनी बड़ी बात रवि ने अब तक छुपा कर रखी हुई थी कि उसकी याददाश्त खोई नहीं थी बल्कि उसने याददाश्त खोने का बहाना बनाया था । इससे रवि की विश्वसनीयता संदिग्ध हो जाती है । ये बात भी सही है कि इन तीन सालों में उसने अग्रवाल परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है । उसने कोई नाजायज फायदा भी नहीं उठाया है । यह भी सही है कि उसने इस परिवार की सेवा करने में कोई कसर नहीं रखी है । मम्मी पापा दोनों ही उससे कितने प्रसन्न हैं , ये बता भी नहीं सकती हूं मैं । मगर आश्चर्य की बात तो यह है कि उसने बी ए की पढ़ाई कब कर ली ? कब परीक्षा दे दी ? और परिणाम भी इतना शानदार रहा है कि उसने कला संकाय में 80% अंकों से बी ए की डिग्री हासिल कर ली और किसी को पता भी नहीं चला । इसका मतलब है कि रवि पढने में बहुत होशियार है । मेहनती है । क्या उसका जीवन झाड़ू पोंछा लगाने में ही गुजर जायेगा ?
बड़ा गूढ़ प्रश्न था यह । इस प्रश्न ने मृदुला को हिलाकर रख दिया । इस बारे में वह अपने मम्मी पापा से बात करना चाहती थी लेकिन रवि से किया हुआ वादा उसे रोक रहा था । क्या करे क्या ना करे इस असमंजस के झूले में झूल रही थी मृदुला । कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था उसे । अपने ही विचारों में मग्न होकर वह सो गई ।
रात में सपने में उसने देखा कि रवि ने IAS की परीक्षा दी है और उसमें वह पास हो गया है । फिर साक्षात्कार भी दिया और उसका चयन IAS में हो गया । वह किसी जिले का कलक्टर बन गया था । उसके पापा अब रवि के सामने बहुत बौने लग रहे थे । रवि का कद इतना बढ़ गया था कि वह आसमान छूने लगा था । अचानक मृदुला की आंख खुल गई । वह सपने के बारे में सोचती ही रह गई ।
क्या ऐसा संभव है ? क्या रवि IAS बन सकता है ? यहां पर घर का काम करते हुए तो वह हरगिज नहीं बन सकता मगर यदि वह यहां से कहीँ और चला जाए तो बन सकता है IAS । लेकिन उसके पास पैसे कहां हैं ? अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए तो उसे काम करना ही पड़ेगा ? यदि वह काम करेगा तो फिर पढ़ाई कब करेगा ? दोनों काम एक साथ संभव नहीं हैं । अगर पढेगा नहीं तो IAS कैसे बनेगा ? क्या रवि को घर से भगा देना चाहिए ? क्या घर से पैसे चुराकर रवि को दे देने चाहिए ? क्या ये सही रहेगा ?
सभी प्रश्नों का एक ही जवाब मिल रहा था उसे और वह था नहीं । ना तो वह चाहती थी कि रवि यहां से जाये ? ऐसा क्यों चाहती थी वह, यह भी समझ में नहीं आया था उसे । पर जैसे ही रवि के इस घर से जाने का विचार उसके मन में आया वैसे ही उसे लगा कि जैसे उसके शरीर में कुछ टूटा था । वह क्या था यह भी पता नहीं है । ये क्या हो रहा है उसे ? ऐसा कभी पहले तो नहीं हुआ था फिर आज ही क्यों हो रहा है ? जहां तक घर से पैसे चुराकर देने की बात है, यह काम मृदुला के वश में था भी नहीं । इतना घिनौना काम वह कर ही नहीं सकती थी । करना तो दूर , सोच भी नहीं सकती थी । मगर उसने सोच तो लिया था । यह सोच कर ही उसे खुद पर आश्चर्य हो रहा था कि उसने ऐसा सोच कैसे लिया ?
दिन भर वह इसी कशमकश में रही । लंच के समय रेणू जी ने इस पर नोटिस किया और कहा "मृदुला, कॉलेज में कोई परेशानी है क्या" ?
"नहीं तो ! क्यों क्या बात है मम्मा" ?
"तू कुछ परेशान सी लग रही है, इसलिए"
"नहीं तो । मैं क्यों परेशान होऊंगी" ?
"मुझे क्या पता ? तुझे ही पता होगा ? तेरा चेहरा बता रहा है कि कुछ तो बात है । अपनी मां से भी बातें छिपाने लगी है तू आजकल । कोई खास बात है क्या" ? रेणू जी ने अर्थ भरी मुस्कान के साथ पूछा
"कुछ भी तो नहीं है मम्मा । आप भी ना"
"नहीं, कुछ तो है । इतनी चुप चुप कभी नहीं रही है तू आज तक । बता दे बेटा क्या बात है ? बताने से थोड़ा बोझ कम हो जाता है । चल, जल्दी बता"
मृदुला खामोश रही । उसकी खामोशी ने रेणू जी के शक को और पुख्ता कर दिया कि कुछ न कुछ तो है । रेणू जी बोलीं "चल, जल्दी से बता दे कि बात क्या है ? फिर देखते हैं कि क्या किया जा सकता है " ?
मृदुला ने रवि वाली सारी बातें अपनी मम्मी को बता दी । रेणू जी को पहले तो शॉक लगा मगर जब उसकी डिग्री और अंकों के बारे में सुना तो वे बहुत खुश हुई । अचानक रेणू जी ने पूछा "अभी रवि के मां बाप कहां हैं" ?
"इस दुनिया में नहीं हैं मम्मा । जिस दिन रवि उस घटना स्थल से भागा था उस दिन ही उस भीड़ ने उन्हें पीट पीट कर मार दिया था । वो तो एक बार रवि चोरी छुपे गांव गया था तब उसे पता चला था" ।
रेणू जी को भी अचानक याद आया था कि एकदिन अचानक रवि सुबह ही कहीं चला गया था और शाम को वापस आया था । उस दिन वह बहुत उदास था । शायद उसी दिन उसे पता चला हो अपने मम्मी पापा के बारे में । बेचारा रवि ! अभी से अनाथ हो गया । पर वह अनाथ तो उसी दिन से हो गया था जिस दिन से उसने अपना गांव छोड़ा था । कुदरत भी कैसे कैसे दिन दिखलाती है । एक हंसते खेलते परिवार को ये दिन देखने पड़ेंगे, किसने सोचा था । और आगे भी न जाने क्या होने वाला है । रेणू जी भविष्य के गर्भ में झांकने की कोशिश करने लगी ।
"मम्मा" !
रेणू जी ने गर्दन उठाकर प्रश्न भरी नजरों से मृदुला को देखा ।
"मम्मा, क्या इतना होनहार लड़का जिंदगी भर झाड़ू पोंछा ही करता रहेगा" ?
इस प्रश्न से रेणू जी की आत्मा भी थर्रा उठीं । तीर की तरह सीधा सीने में धंस गया था यह प्रश्न ।
"नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगी । हम इसे यहां से आजाद कर देंगे"
"मगर फिर ये जाएंगे कहां ? और जहां भी जाएंगे वहां पर भी पेट भरने के लिए तो कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा ना । फिर वहां और यहां में अंतर कहां रह पाएगा ? यहां पर हम लोग तो इनका ध्यान रख लेते हैं, कहीं दूसरी जगह पर कौन ध्यान रख पायेगा" ?
"बात तो तूने सही कही है बेटी । पर हम करें भी तो क्या करें"?
"एक योजना है मेरे दिमाग में , आगर आप कहो तो सुनाऊं" ?
"जरूर । सुना" ।
"क्यों न हम लोग एक और नौकर रख लें झाड़ू पोंछा, बर्तन वगैरह के लिए और रवि को केवल खाने का काम रहने देते हैं । किचन में आप और मैं दोनों ही रवि की सहायता कर देंगे जिससे उसका टाइम कम लगेगा और बाकी टाइम वह IAS की तैयारी भी कर सकेगा । उसे ऐसा भी नहीं लगेगा कि उससे कोई काम नहीं लिया जा रहा है । इस प्रकार हम उसकी मदद करके उसे IAS बना सकते है मम्मा" । मृदुला ने अपनी योजना खोलकर रख दी ।
इस योजना पर थोड़ी देर सोचने के बाद रेणू जी ने कहा " बात तो तेरी सोलह आने सही है मृदुला । अगर रवि IAS बन गया तो मैं समझूंगी कि उससे जो हमने घर का काम करवाया था, उसका बोझ उतर जाएगा हमसे । इस संबंध में तेरे पापा से और सलाह करते हैं , फिर देखते हैं कि वे क्या कहते हैं । आने दे उन्हें" ।
शाम को जब अग्रवाल साहब घर आ गये तब खाना खाने के बाद रेणू जी ने सारी बातें अग्रवाल साहब को बता दी और दोनों मां बेटी की योजना भी बता दी । अग्रवाल साहब ने इस योजना पर अपनी मुहर लगा दी । और इस प्रकार घटनाक्रम में फिर से परिवर्तन हो रहा था ।