दो दिन गुजर गये । इन दोनों दिनों में रवि घर से बाहर कम ही निकला । डर का साया अभी साथ छोड़कर नहीं गया था मगर उस साये की पकड़ ढ़ीली अवश्य हो गयीं थी ।रवि को अब विश्वास हो चला था कि मीना भाभी अब बतायेंगी नहीं । उन्हें अगर बताना ही होता तो वे अब तक तो बता चुकीं होती और फिर उसे मां से सामना करना पड़ता । मगर अब तक ऐसा हुआ नहीं था । बस, यही एक ऐसा काम है जिससे वह बचना चाहता था ।
उस घटना से तीन दिन बाद की बात है । रवि स्कूल से वापस घर आ रहा था । अपने घर के चबूतरे पर मीना भाभी खड़ी हुईं थीं । मुन्ने के साथ शायद खेल रही थी । उन्हें सामने देखते ही रवि की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी । पता नहीं कैसे रिएक्ट करेंगी मीना भाभी उसे देखकर ? कहीं ऐसा नहीं हो कि वे वहीं पर ही चालू हो जायें ? अगर ऐसा हुआ तो वह तो कहीं मुंह दिखाने के काबिल भी नहीं रहेगा । इसलिए नजरें झुकाकर उनकी उपस्थिति को इगनोर करते हुए रवि अपने घर की ओर बढ़ा । पता नहीं भाभी ने देखा या नहीं मगर उसे टोका नहीं । रवि ने समझा कि भाभी ने उसे आते हुए नहीं देखा था । घर पहुंच कर उसकी सांस में सांस आई । उसका दिल जोर जोर से धड़क रहा था । वह चुपचाप अपने कमरे में आकर कुर्सी पर बैठ गया और पिछले दिनों घटित हुई घटनाओं के बारे में सोचने लगा । इतने में एक आवाज ने उसे चौंका दिया ।
"चाची पांय लागूं"
रवि को यह आवाज जानी पहचानी सी लगी । मगर उसने सोचा कि सरपंच का घर है इसलिए यहां पर औरत और मर्द तो अपने काम के लिए आते ही रहते हैं । होगी कोई औरत । औरतों की आवाज एक सी ही तो होती है । होगी किसी की , उसे क्या ? वह अपने विचारों की श्रंखला में खो गया । उसकी धुकधुकी बढ़ गई थी । आने वाली दूसरी आवाज उसकी मां की थी ।
"आओ आओ, मीना । आज तो बड़े दिनों में आई हो" ।
अब तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी । वह औरत मीना भाभी ही थी ।
"हां चाची । आजकल काम की वजह से कहीं आना जाना होता ही नहीं है । जाड़े के दिन होते भी तो छोटे छोटे से हैं । कब आये कब गये पता ही नहीं लगता है" ।
"हां, ये तो है । ना दिन का पता चलता है और ना ही धूप का । लगता है कि धूप भी सर्दी से डरकर कहीं दुबक गई है" । रवि की मां ठंड से कांपते हुये बोली " और शांति भाभीजी ( मीना की सास ) कैसी हैं" ?
"ठीक हैं । मुन्ने के साथ लगी रहतीं हैं । दोनों दादी पोता लगे रहते हैं दिन भर खेलने और बतियाने में । इससे मुझे भी थोड़ा आराम मिल जाता है और इसी बीच घर का काम भी हो जाता है " ।
"कहो मीना , कैसे आना हुआ" ? मां ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा ।
"क्या बताऊं चाची , हमारी रसोई का बल्ब फ्यूज हो गया है । घर में और कोई मर्द तो है नहीं इसलिए सोचा कि बल्ब किनसे बदलवाऊं ? लाल जी घर में हैं क्या" ? मीना भाभी रवि को लाल जी कहती थी । अपना नाम सुनकर रवि एकदम से चौंका । पता नहीं क्या चल रहा है उधर ? रवि ने अपने कान उधर ही लगा दिये ।
"हां है , अभी स्कूल से आया है "
"तनिक बुलवाय दो न उनको " ।
"ठीक है बुलवाते हैं " । और लगभग चीखते हुये मां जोर से पुकारने लगी "रवि , ओ रवि । जरा देख तो बेटा कि कौन आया है" ?
"आया मां" । और यह कहकर वह बाहर निकल आता है । सामने मीना भाभी को देखकर चौंक जाता है जैसे कि उसने कोई अजूबा देख लिया हो । मीना भाभी उसी की ओर देख रही थी । जैसे ही रवि की नजर मीना भाभी से मिली, भाभी के अधरों पर एक मुस्कान खेल गई मगर रवि का कलेजा धक्क से रह गया । बड़ी मुश्किल से वह इतना ही बोल पाया था कि
"मां । आपने मुझे बुलाया" ?
"हां, जरा तेरी मीना भाभी की बात सुन और जो ये मदद मांगे वह कर दे । ठीक है" ?
रवि का माथा ठनका "कहीं भाभी ने वो तो नहीं कह दिया है जो नहीं कहना था । पर अगर वो वह कह देती तो यहां का नजारा ही दूसरा होता" । जैसे तैसे करके वह बोला
"जी भाभी। बताइये मुझे क्या करना है" ? उसने कह तो दिया मगर वह अभी भी खौफ में ही जी रहा था ।
भाभी ने चुटकी लेते हुए कहा " क्या बात है लाल जी, कुछ सहमे सहमे से लग रहे हो ? कोई विचित्र सी चीज देख ली है क्या" ?
रवि को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो । उसे काटो तो खून नहीं । वह कुछ नहीं बोला ।
उसे मौन देखकर भाभी ने फिर से कहा "कोई अजूबा सपना तो नहीं देख लिया लाल जी । इस उमर में परियों के सपने बहुत आते हैं । सपने में कोई परी वरी तो नहीं देख ली" ? भाभी अब मस्ती के मूड में आ गयी थी ।
इस पर रवि कुछ कहता उससे पहले ही रवि की मां बोल पड़ी "लगता है आज तो फुल मूड में है तू । रवि तो अभी बच्चा है । ये नहीं जानता ऐसी बातें" ।
रवि की ओर अर्थ भरी नजरों से देखते हुये भाभी कहने लगी "लगता तो नहीं है चाची । दाढ़ी मूंछ आने लगी हैं इनके । कंधे भी चौड़े हो गये हैं । लाल जी अब जवान हो गये हैं चाची । अब तो आप इनकी शादी की तैयारी शुरू कर दो" ।
"तू भी ना बच्चे के सामने न जाने क्या क्या अनाप शनाप बके जा रही है । मेरा रवि तो सीधा सादा है । वह क्या जाने अभी परी वरी को । जा बेटा, इनके घर का बल्ब बदल आ" । जैसे मां नहीं चाहती थी कि ये हंसी ठिठोली और आगे बढ़े ।
रवि के पास कोई विकल्प नहीं बचा था । वह जाना नहीं चाहता था मगर मां के आदेश की अवहेलना भी नहीं कर सकता था । वह मीना भाभी के पीछे पीछे चल दिया ।
मीना भाभी के घर में केवल दो ही प्राणी थे उस समय । मीना भाभी और रवि । मीना की सास शांति मुन्ने को लेकर पड़ोस में चली गई थी । रवि का दिल जोर जोर से धड़क रहा था कि पता नहीं भाभी उसे क्या कहने वाली है । घर के अंदर पहुंचते ही एक कुर्सी की ओर इशारा करते हुए भाभी बोली "तुम यहां बैठो मैं बल्ब लेकर आती हूं" ।
रवि चुपचाप उस कुर्सी पर बैठ गया । मीना भाभी अंदर कमरे में से एक नया बल्ब ले आई और उसे रवि के हाथों में देकर बोली "इसे लगा देना" । बल्ब देते समय उसकी उंगलियां रवि की उंगलियों से साथ छू गई । रवि का पूरा तन बदन झंकृत हो उठा । ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था । यह अहसास नया था । डर भी लग रहा था और सुखद भी ।
रवि ने बल्ब हाथ में लेकर कहा "कौन सा बल्ब फ्यूज है" ?
"किचन का" । मीना भाभी ने हाथ से किचन की ओर इशारा करते हुए कहा ।
रवि किचन में घुसा और उसने बल्ब की ओर देखा । बल्ब ऊंचाई पर लगा था जो उसकी पहुंच से बाहर था ।
"कोई कुर्सी या मेज मिलेगी भाभी जिस पर चढ़कर इसे बदल दूं मैं" बड़ी मुश्किल से वह कह पाया ।
"हां, मैं लाती हूं" ।
और मीना भाभी एक मेज उठाने का प्रयास करने लगी । मेज बड़ी थी इसलिए अकेले से उठने का नाम नहीं ले रही थी तब रवि ने एक तरफ से उठाया तो दूसरी तरफ से भाभी ने उठाया । भाभी को थोड़ा झुकना पड़ा था इसलिए उसकी साड़ी का पल्लू नीचे गिर गया था । रवि की निगाह एक बार वहां गई मगर उसने अपनी नजरें वहां से तुरंत हटा लीं ।
मीना भाभी ने कनखियों से यह देख लिया था । मेज रख दी गई और रवि उस पर चढ़ गया । उसने बल्ब बदल दिया । भाभी को लाइट ऑन करने को कहा तो भाभी ने लाइट ऑन कर दी । बल्ब जल गया । रवि का काम पूरा हो गया । मेज वापस वहीं रखनी थी जहां से उठाई थी । एक बार फिर से मेज उठाई और फिर से वही सीन दिखाई दिया । इस बार रवि ने उधर नहीं देखा । रवि जाने को उद्यत हुआ तो भाभी बोली "अरे रुको तो लाल जी, कहाँ जा रहे हो ? पानी वानी तो पीकर जाओ" ।
"नहीं भाभी । अभी प्यास नहीं है"
"तो चाय पीकर जाओ । मैं अभी चाय बना देती हूं " ।
"नहीं भाभी, मैं जाकर पढ़ाई करूंगा । मैं अभी जाता हूँ" ।
रवि जाने को हुआ तो भाभी ने उसका हाथ पकड़कर कहा " इतना क्यों डरते हैं मुझसे ? मैं कोई खा तो नहीं जाऊंगी ना । इतना डरपोक तो नहीं समझा था आपको लाल जी । आप तो बहुत डरपोक निकले । चुपचाप बैठो मैं अभी चाय लेकर आती हूँ । दोनों साथ साथ पीयेंगे" ।
अब रवि की हिम्मत नहीं हुई मना करने की । मन ही मन उसे भाभी का थोड़ा खुलापन अच्छा भी लग रहा था । वह वहीं कुर्सी पर बैठ गया । भाभी सामने ही चाय बनाने लगी । चाय बनाते बनाते भाभी ने कहा "एक बात पूछूं लाल जी , सच सच बताना" ।
"जी पूछिए"
"आपके सपनों में कौन आती है ? रेखा, हेमा या कोई और" ?
रवि इस प्रश्न पर झेंप गया । उसने गर्दन झुका ली और हलके से मुस्कुरा दिया । कहा कुछ नहीं ।
"बोलो बोलो, चुप क्यों हो" ।
"ऐसा कुछ नहीं है भाभी । मैं तो इनको जानता भी नहीं । कौन हैं ये" ।
रवि की बात पर भाभी खूब जोर से हंसी । कहने लगीं "आज के जमाने की उर्वशी, मेनका , रंभा हैं ये । जवां लोगों के लिये स्वप्न सुंदरियां हैं । सिनेमा में काम करती हैं । आजकल लोगों के ख्वाबों खयालों में यही आती हैं । आपके भी आती होंगी मगर कहते हुये शरमा रहे हो" । भाभी ठिठोली पर आमादा थी ।
"मैने सिनेमा नहीं देखा कभी, भाभी । इसलिए मैं इन्हें नहीं जानता हूं । हां, मेरे स्कूल में बच्चे कभी कभी इनका नाम ले लेते हैं"
"वो कैसे, कब" ?
"किसी लड़की की ओर इशारा करके कहते हैं कि वो रेखा है, वो हेमा है, वो श्रीदेवी है" ।
"अच्छा तो आपने भी किसी लड़की का नाम ऐसा ही रख रखा है क्या" ?
"नहीं भाभी । मैने ऐसा नाम किसी का भी नहीं रखा" ।
"सच्ची सच्ची बताओ । झूठ मत बोलो । कोई तो होगी जो तुमको अच्छी लगती होगी" । भाभी अब बिल्कुल खुल गई थी और पूरी तरह से मूड में थीं ।
रवि भी अब नॉर्मल हो गया था । वह भी बेतकल्लुफ होकर जवाब दे रहा था ।
"अच्छा एक बात बताओ । किसी लड़की वड़की से तो कोई चक्कर वक्कर नहीं चल रहा है ना लाल जी" । भाभी ने उसकी आंखों में देखकर पूछा । इस प्रश्न पर रवि शरमा गया ।
"कैसी बातें करती हो भाभी ? अभी तो मैं इन सबके बारे में सोचता भी नहीं हूँ और आप चक्कर की बात कर रही हो"
"आजकल के लड़के तो आपकी उम्र में सब कुछ कर लेते हैं"
"सब कुछ ? मतलब" ?
"सब कुछ मतलब सब कुछ" । भाभी ने अर्थ भरी मुस्कान के साथ कहा ।
"मैं समझा नहीं भाभी" ?
उसकी हालत पर भाभी जोर से हंस पड़ी ।
"अरे इतना घबराते क्यों हो ? सब सच सच बता दो । विश्वास करो मेरा मैं चाची को नहीं बताऊंगी" । तब तक चाय बन चुकी थी और दो कप में लेकर भाभी वहां पर रखी दूसरी कुर्सी पर बैठ गई । दोनों चाय सिप करने लगे । थोड़ी देर के लिए सन्नाटा पसर गया था वहां पर ।
"अच्छा एक बात बताओ । पर सच सच बताना । बताओगे ना ? पहले मेरी कसम खाकर कहो कि मैं सच सच बताऊंगा" ।
"सच सच ही बताऊंगा भाभी । आप पूछिए , क्या पूछना है आपको ? आपकी कसम" ।
भाभी की आंखों में आशस्वता के भाव नजर आये और वह पूछने लगी
"आपने क्या किसी लड़की को वैसे देखा है" ?
"कैसे" ?
"जैसे मुझे देखा था उस दिन । छत पर" भाभी ने धीरे से कहा ।
रवि ने अपनी गर्दन नीची कर ली । कोई जवाब नहीं दिया । भाभी रवि के एकदम करीब आ गयी और अपने हाथों से उसकी ठोड़ी उठाकर चेहरा ऊपर करते हुए आंखों में सीधे देखते हुए बोली
"क्या किसी लड़की को ऐसे देखा है" ?
रवि ने इंकार की मुद्रा में सिर हिलाया तो भाभी को बड़ा अच्छा लगा । उसने आगे कहा
"क्या किसी लड़की को कभी छुआ है ? क्या किसी को कभी 'किस' किया है" ?
इस सवाल से रवि के दिमाग में रीना की स्मृतियाँ लौट आईं । एक बार तो उसके मुंह से निकलने वाला ही था कि हां, मैंने एक लड़की को किस किया है । मगर वह भाभी से झूठ बोल गया ।
"नहीं । कभी नहीं" ।
इस पर भाभी खुश होते हुये बोली "हाय मेरे भोले भंडारी । तुम तो वाकई अभी बिल्कुल 'कुंवारे' हो । मासूम हो । अल्हड़ हो । कुछ भी नहीं जानते हो" । भाभी ने उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर कहा ।
इस पर रवि खामोश ही रहा । क्या कहता वह ? उसे भाभी की ये बातें बहुत अच्छी लग रही थीं ।
"अच्छा, एक बात बताओ । तुमने उस दिन मुझे नहाते हुये देखा था न । देखा था या नहीं" ?
रवि इस पर भी खामोश रहा तो भाभी को थोड़ा तैश आ गया "बड़े भोले बन रहे हो लाल जी । एक तो औरतों को नहाते हुए देखते हो और उस पर शरमाते भी हो । बड़े अजीब आदमी हो तुम " ?
"वो तो अचानक ही नजर पड़ गई थी मेरी उधर । आप भी तो छत पर ऐसे नहा रही थी तो मैं क्या करता ? मैंनें जानबूझकर नहीं देखा था आपको । और बाई चांस देख भी लिया तो उसके लिए सॉरी भाभी" । रवि का चेहरा उदास हो गया ।
"मैं कोई सॉरी कहने के लिए थोड़ी कह रही हूँ आपको । मैं तो यह जानना चाहती हूं कि मुझे ऐसे देखकर कैसा लगा था तुम्हें" ?
रवि फिर खामोश रहा तो भाभी ने कहा "यूं हर बात पर चुप्पी लगाओगे तो फिर मैं चाची से कह दूंगी उस दिन की बात, हां" । अब भाभी धमकी पर उतर आईं ।
रवि इस धमकी से डर गया । भाभी अगर मां से कह देगी तो मां क्या सोचेगी ?
"पर भाभी , मैंने आपको जानबूझकर नहीं देखा था । वो तो अनायास ही ..." ।
"मैं कब कह रही हूं कि तुमने मुझे जानबूझकर देखा था । पर देखा तो था न । कैसा महसूस हुआ था तुम्हें" ?
रवि कैसे बताता कि करंट सा लगा था उसे तब । 11000 वॉट का । सारा शरीर झनझना गया था उसका उस दिन । और उस करंट का झटका अभी तक बरकरार है । मगर वह खामोश ही रहा ।
भाभी ने उसकी आंखों में देखकर कहा "बोलो, कैसा लगा था" ?
"करंट सा लगा था भाभी । और आज तक लग रहा है"
"सच में" ?
"हां भाभी, सच में । मैंने पहली बार उस अवस्था में देखा था आपको । इससे पहले कभी ऐसे नहीं देखा था आपको । और आपको ही क्यों, किसी को भी नहीं देखा था पहले कभी" ।
"अरे मेरे भोले देवर जी । सच में आप बहुत ही भोले हैं "। भाभी ने उसे अपने से चिपकाते हुये कहा "अब आप जाइये । मां जी मुन्ने को लेकर आती होंगी अब । कल इसी समय फिर आना" ।
रवि ने कुछ सोचते हुये कहा " मां से क्या कहूंगा" ?
भाभी कुछ देर सोचती रही फिर कहा "मैं सब व्यवस्था कर दूंगी । आपकी मां अगर आपसे पूछे कि रामायण पाठ करना आता है क्या तो तुम हां कर देना , बस । इतना सा करना है । ठीक है" ?
"जी, ठीक है" । और रवि अपने घर वापस आ गया ।