गुलाबो रानी के घर से चल दी । उसके मन में उथल पुथल मच रही थी । रास्ते में उसने अपने बड़े भाई गब्बर को साथ लिया और दोनों भाई बहन घर आ गए। गब्बर ने एक बार पूछा भी कि कोई खास बात है क्या जो इस तरह से मूड खराब लग रहा है तो गुलाबो ने सिर दर्द होने का बहाना बना दिया । उसने रवि से प्रेम करके गलती की थी ? बार बार उसके मन में यह प्रश्न आ रहा था । मन कह रहा था कि प्रेम कोई करने की चीज थोड़ी है, वह तो हो जाता है । वह भला बुरा नहीं सोचता । सोचने का काम दिल का नहीं है यह काम दिमाग का है । दिल बिना सोचे समझे काम करता है तभी तो वह कभी कभी गलत काम भी कर जाता है । मगर दिमाग ! वह तो नफा नुकसान, ऊंच नीच, आगे पीछे, सही गलत, जोड़ बाकी, गुणा भाग करके सारे समीकरण बैठाकर निर्णय करता है । इसीलिए उसके निर्णय जमाने की तराजू में सही नजर आते हैं यद्यपि वे दिल के विरोधाभासी हो सकते हैं ।
दिल और दिमाग में कभी कभी द्वंद्व हो जाता है । दिल कुछ और कहता है , दिमाग कुछ और । दोनों अपनी अपनी जगह सही होते हैं मगर दोनों में एक तो गलत होता है न । ये समय और परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि सही कौन है और गलत कौन ? समय और परिस्थितियां कभी एक सी नहीं रहती हैं इसलिए एक निर्णय एक समय गलत तो दूसरे समय वही निर्णय सही लग सकता है । दिल आईने की तरह निर्मल , साफ और सच्चा होता है । भावना और संवेदनाओं के अनुरूप फैसले लेता है । मगर दिमाग ? जमाने भर को ध्यान में रखकर अपना भला बुरा देखकर ही आगे बढ़ता है वह ।
जब रवि को उस दिन मेले में उसने पहली बार देखा था , उसी दिन दिल दे दिया था उसको । दिल देने से पहले क्या दिमाग से पूछा था दिल ने ? दिमाग ने उस दिन उसे रोका क्यों नहीं था ? अगर तब भला बुरा नहीं सोचा तो अब सोचने की आवश्यकता क्या है ? एक बार को मान भी लें कि उसे भला बुरा सोचना चाहिए लेकिन ये दिल किसी की मानता है क्या ? सदैव अपने मन की ही करता है । क्या सही क्या गलत इसे कुछ मतलब नहीं है । तानाशाह है पूरा । मानने को तैयार ही नहीं है । जब पता चल गया है कि रवि एक छलिया है , एक जगह स्थिर रहने वाला नहीं है । न जाने कितनी लड़कियों के साथ नाम जुड़ चुका है उसका । न केवल नाम जुड़ा बल्कि बहुत कुछ जुड़ा हुआ है उसका । भंवरे की तरह हर कली पर मंडराता है, उसका रसपान करने को लालायित रहता है । ऐसे व्यक्ति से प्रीति कैसे निभेगी ? कल को कोई और सुंदर सी लड़की उसे मिल जाये तो वह उसके साथ हो लेगा । ना बाबा ना । यह नहीं चलने वाला । मैं ऐसा होने नहीं दूंगी ।
गुलाबो को रात भर नींद नहीं आई । बिस्तर पर करवटें बदलते बदलते बीती थी वह रात । क्या करे क्या ना करे ? वह फैसला नहीं कर पा रही थी । एक तरफ दिल तो दूसरी तरफ दिमाग । दोनों के बीच में फंसी हुई थी गुलाबो ।
इस लव लैटर को रवि को दे या नहीं ? दिमाग कहता , जब उससे कोई संबंध रखना ही नहीं तो लव लैटर क्यों देना ? अगर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी ही मारनी हो तो मारो, और दे दो ये लव लैटर । मेरा कहना मान, उससे मिलने की जरुरत नहीं है ।
वह मन कड़ा करने का प्रयास करती तो मन कहता , ऐसे कैसे नहीं मिलेगी उससे ? उसके बिना क्या तू रह पायेगी एक भी दिन ? एक मिनट तो चैन आता नहीं है उसके बिना और बात करती है पूरी जिंदगी की । चेहरा देखा है आईने में अपना ? कैसा काला पड़ गया है ? कुछ फैसले तकदीर करती है । तू भी अपने आपको तकदीर के हवाले कर दे । देखते हैं कि तेरी तकदीर तुझे कहाँ लेकर जाती है । अगर मुकद्दर में रोना लिखा होगा तो तू जिंदगी भर रोती ही रहेगी और अगर हंसना लिखा होगा तो मौज उड़ाती रहेगी । अब ज्यादा सोच विचार मत कर । कल रवि आयेगा तो दे देना अपना लव लैटर ।
वह अभी दिल से सोच रही थी कि दिमाग ने उसे एक जोरदार , झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद कर दिया । दिमाग बोला " मूर्ख मत बन । कोई जानबूझकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारता है । यह सोचकर तो कोई बीच सड़क पर नहीं सोता है कि मौत आनी होगी तो आ जाएगी वरना तो जिंदगी है ही । क्या कोई व्यक्ति अपने शरीर पर वजनदार पत्थर बांधकर पानी में तैरने के लिए कूदता है ? ये तो वही वाली बात हुई कि आ बैल मुझे मार ! अपनी जिंदगी बरबाद करने पर क्यों तुली है तू ? अभी भी समय है । अभी तक कुछ नहीं हुआ है इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है । तोड़ दे सारे संबंध रवि से और बचा ले खुद को" ।
अनिर्णय की हालत में ही न जाने कब उसकी आंख लग गई । कब सपना आया , पता ही नहीं लगा । सपने में क्या देखती है कि वह और रवि एक विमान में बैठकर ऊंचे आसमान में उड़ रहे हैं । उनके चारों ओर बादल ही बादल घूम रहे हैं । बादलों के बीच से होकर उनका विमान जा रहा है । वो सामने इंद्रधनुष दिखाई दे रहा है । उसकी इच्छा हुई कि इस इंद्रधनुष रूपी रंगबिरंगी साड़ी को वह ओढ़ ले । इतनी देर में उसका विमान इंद्रधनुष के अंदर चला गया । जब विमान बाहर निकला तो उन दोनों के वस्त्र रंगबिरंगे हो गये थे इंद्रधनुष की तरह । चारों ओर बहारों का मौसम छा गया था । रवि के होठों पर एक मुरली थी जिसे वह बजाये जा रहा था और वह राधा की तरह मंत्रमुंग्ध सी रवि की गोदी में अपना सिर रखकर लेटी हुई थी । कितना मधुर सपना था यह । काश कि यह सपना कभी खत्म नहीं होता । मगर ऐसा कहां होता है ?
सपनों की दुनिया भी बड़ी निराली है । सब कुछ अच्छा ही अच्छा नजर आता है सपनों में । मन सपनों के पीछे पीछे भागता है । जब हकीकत में किसी को कुछ हासिल नहीं होता है तो वह सपनों की आभासी दुनिया में जीने लगता है । उस काल्पनिक दुनिया को ही असल दुनिया समझने की भूल कर बैठता है । सपने तो सपने हैं कब किसके पूरे हुए हैं ? सपनों के पीछे भागने से कुछ नहीं मिलता है । कुछ पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है । पापड़ बेलने पड़ते हैं । योजनाबद्ध तरीके से लगातार चलना पड़ता है । तब जाकर मंजिल मिल पाती है ।
गुलाबो को यह बात समझ में आ गई । उसने मन ही मन कुछ निश्चय किया और बिस्तर छोड़ अपने काम में लग गई ।