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बचपन का यार

14 दिसम्बर 2021

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रवि ऑफिस से घर जाने को तैयार हो ही रहा था कि अचानक चपरासी ने एक स्लिप पकड़ाते हुये कहा कि ये सज्जन आपसे मिलना चाहते हैं । रवि एकदम से झुंझलाया । घर जाते समय में ब ये कौन आ मरा ? पहले ही बहुत लेट हो चुका हूं मैं उस पर ये कौन आफत गले पड़ गई ? उसने मन ही मन उस आगन्तुक को सैकड़ों गालियां दे डाली । 

सरकारी काम में ऐसा होता आया है कि लोग अपने फायदे के लिए समय बेसमय आकर फिजूल की बातों में वक्त बर्बाद कर देते हैं । अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक गिर जाते हैं लोग । वह जाने की फिराक में था कि चपरासी ने कहा 

"ये सज्जन कह रहे हैं कि आप इनके बचपन में मित्र थे" । 

अब चौंकने की बारी रवि की थी । एक बार फिर से उसने पर्ची देखी जिस पर नाम लिखा था "विनोद शर्मा" । कौन है ये विनोद शर्मा ? उसने अपना दिमाग बहुत दौड़ाया मगर कोई क्लू नहीं मिला । फिर उसने सोचा कि बचपन का दोस्त बता रहा है तो मिल ही लेना चाहिए . मिलने में हर्ज ही क्या है ? लेट तो पहले से हो ही रहा हूं थोड़ा और लेट सही । वैसे भी रेलवे का सिद्धांत है कि सारी गाड़ियों को लेट करने के बजाय एक ही गाड़ी को लेट करो जिससे एक ही गाड़ी लेट हो और बाकी की गाड़ी तो सही समय पर चल सके । 

वह अपनी सीट पर बैठ गया और चपरासी से कह दिया कि उसे भेज दे । चपरासी ने एक जोरदार सैल्यूट मारा और "यस सर" कहकर चला गया . 

थोड़ी देर में एक सज्जन अंदर आये । रवि ने उसे पहचानने की कोशिश की । आगन्तुक ने एक जोरदार ठहाका लगाया और कहा " अब भी नहीं पहचाने" ? 

"अरे , तू है क्या नंबरी ? कितने सालों बाद देखा है तुझे यार । तेरा तो हुलिया ही बदल गया है साले । आज कहाँ से टपक पड़ा तू ? रवि अपनी सीट से खड़ा हो गया और नंबरी को बांहों में भर लिया । रवि विनोद को बचपन में "नंबरी" कहकर बुलाता था और विनोद रवि को "बादल" कहकर बुलाता था । दोनों यार गले मिले और एक दूसरे को देखकर फिर से हंस पड़े । 

"आज ये ईद का चांद कहाँ से दिखाई दे गया रे ? क्या करता है तू आजकल और यहां दिल्ली कैसे आया ? मेरा पता कहाँ से मिला तुझे" ? 

"एक बार में ही इतने सवाल पूछ डाले कि बताने में मुझे सदियों लग जायेंगे । मैं आपकी तरह तो बुद्धिमान हूँ नहीं जो सब कुछ एक बार में ही याद रखूं । मैं तो एक आम आदमी हूँ ना । इसलिए एक एक कर पूछिए । फिर मैं एक एक कर ही बता पाऊँगा " । विनोद ने बैठते हुये कहा । 

"ओ के । चल पहले ये बता कि तू कर क्या रहा है" ?

"एक सरकारी स्कूल में अध्यापक हूँ । वो अपने गांव के पास ही एक गांव है ना ऊकरूंद, बस उसी गांव के माध्यमिक विद्यालय में सामाजिक ज्ञान पढ़ाता हूँ" ।

"अरे , ऊकरूंद में माध्यमिक विद्यालय हो गया क्या ? पहले तो केवल प्राथमिक विद्यालय ही था जब हम अपने गांव के विद्यालय में पढते थे " ।

"हां, अब वहाँ पर माध्यमिक विद्यालय हो गया है और विद्यार्थी भी खूब सारे हैं । स्टाफ भी ठीकठाक ही है । ज्यादातर अपने गांव "सरौली" से ही अप डाउन करते हैं लोग" ।  

"यहां कैसे आना हुआ आज ? और रह कहाँ रहा है तू आजकल ? बच्चे कैसे हैं तेरे ? कितने बच्चे हैं और क्या कर रहे हैं" ?

"फिर से एक साथ इतने सारे प्रश्न" ? विनोद ने हंसते हुये कहा । 

"सॉरी, सॉरी, सॉरी । आदत से मजबूर हूँ यार । अरे मैं तो भूल ही गया । चाय या कॉफी ? विद शुगर या विदाउट शुगर" ? 

"चाय पी लेंगे शुगर वाली । अभी तो भगवान की कृपा बनी हुई है जो शुगर वाली चाय पी लेते हैं । और आप" ? 

"मैं भी शुगर वाली ही ले लूंगा , तेरे साथ । वैसे मैं विदाउट शुगर लेता हूँ । वैसे मुझे डायबिटीज वगैरह कुछ नहीं है मगर प्रिकॉशन के तौर पर फीकी ही पीता हूँ । और तू साले , ये आप आप कहकर मत बुला मुझे । ऐसा लगता है जैसे डंडा मार रहा हो " । रवि ने उसकी पीठ पर एक धौल जमाते हुये कहा । 

"आप ठहरे इतने बड़े IAS ऑफिसर और मैं ठहरा एक मामूली सा अध्यापक । कहाँ राजा भोज और कहां गंगू तेली । मेरी और आपकी क्या बराबरी । मैं सुदामा और आप कृष्ण । इसलिए आप कहकर नहीं बोलूंगा तो कैसे बोलूंगा" । नंबरी का स्वर भीग गया था । "ये तो आपकी महानता है जो इतने सालों बाद मिलने पर भी मुझे पहचान लिया और अपने पास बैठाकर मुझे चाय भी पिला रहे हो" । 

रवि ने घंटी बजाकर चपरासी को बुलाकर दो शुगर वाली चाय और बिस्किट वगैरह लाने को बोला । फिर नंबरी की पीठ पर एक और धौल जमाते हुये कहने लगा " देख साले , ये आप आप करेगा तो लात मारकर भगा दूंगा । बचपन में भी तू ऐसे ही बोलता था क्या" ? 

"बचपन की बात कुछ और थी । जब हम प्राथमिक कक्षाओं के विद्यार्थी थे । दोनों एक ही धरातल पर थे । मगर अब जमीन आसमान का अंतर है दोनों में" । 

"अब देख, बर्दाश्त की भी एक सीमा होती है । इससे आगे जायेगा तो फिर मार खायेगा" । रवि ने दो टूक शब्दों में अपना फैसला सुना दिया । 

"अच्छा बाबा अब नहीं बोलूंगा आप । अब खुश" ? 

"ये हुयी ना यारों वाली बात " । फिर से विनोद की पीठ पर एक और धौल जमाते हुये रवि ने कहा । रवि की यह बचपन की आदत है जो आज भी बरकरार है । 

इतने में चपरासी चाय बिस्किट , नमकीन वगैरह ले आया । रवि ने पूछा "आज तो तू यहीं रुकना । अब वापस कहाँ जायेगा" ? 

"आप , सॉरी , तुम कहते हो तो रुक जाऊंगा । पर मेरे कारण कोई दिक्कत तो नहीं होगी ना घर में" ? विनोद ने डरते डरते पूछा । 

"होगी दिक्कत साले , तो तू क्या किसी होटल में ठहरेगा" ? 

इस बात से विनोद गदगद हो गया । वह तो डरते डरते आया था कि पता नहीं रवि उसे पहचानेगा या नहीं । मगर इतनी आत्मीयता देखकर विनोद भाव विभोर हो गया । 

शेष अगले अंक में 

हरिशंकर गोयल "हरि"

15.12.21 

21 फरवरी 2022

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रचनाएँ
आवारा बादल
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एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसने अपनी जिंदगी अपने ही ढंग से जी । मस्तमौला प्रवृत्ति का यह व्यक्ति प्रेम के सागर में गोते लगाकर भी सफलता के नये सोपान गढ़ता चला गया ।
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