रचना का विषय : शिक्षा रचना दिनाँक: 20 अप्रैल 2023 विधा: हिंदी :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: शिक्षा से हम सभी ज्ञान पाते है संस्कार और संस्कृति को पहचानते हैं शिक्षा की शुरुआत हम जब
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने घोषणा की है कि भारतीय डिग्रियों को अब ऑस्ट्रेलिया में मान्यता दी जाएगी. उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया और भारत सरकार ने ऑस्ट्रेलिया-भारत शिक्षा योग्यता मान्यत
आज़ादी की क़वायद के दौर में और उसके बाद की सर्वप्रमुख उपलब्धियों में से एक भारतीय संविधान का निर्माण करना और उसका लागू होना रहा है । संविधान का 'चौथा भाग' नीति निर्देशक सिद्धान्तों के रूप में राज्
वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ, दम ले ले घड़ी भर ये छैया पायेगा कहा ।इस नग़मे में नायक को जीवन के सफर में दौड़ते हुए सुकून की छांव की इत्तला दी जा रही है ।जी हां सुकून !! जो पसर जाए तो मानो हर
प्राचीन काल की बात है। भस्मासुर नामक एक आसुर जाति का एक व्यक्ति था। एक बार उसने सोचा कि उसे विष्व का सबसे षक्तिषाली व्यक्ति होना चाहिए लेकिन इस समस्या का समाधान उसके पास न था। वह वन-वन भटकने लगा की को
5/9/2022प्रिय डायरी, आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं शिक्षक दिवस की,
आदर्शों की मिसाल बना के,सदा ज्ञान का प्रकाश जगाता।बाल पन महकता शिक्षक,भाग्य हमारा शिक्षक बनाता।।गुरु ज्ञान का दीप जलाकर,जीवन हमारा महकता शिक्षक।विद्या का धन देकर ऐसे,मन आलोकित करता शिक्षक।।धैर्य का हम
एक राजा को अपने लिए सेवक की आवश्यकता थी। उसके मंत्री ने दो दिनों के बाद एक योग्य व्यक्ति को राजा के सामने पेश किया। राजा ने उसे अपना सेवक बना तो लिया पर बाद में मंत्री से कहा, ‘‘वैसे तो यह आदमी ठीक है
सुंदर नगर में एक सेठ रहते थे। उनमें हर गुण था- नहीं था तो बस खुद को संयत में रख पाने का गुण। जरा-सी बात पर वे बिगड़ जाते थे। आसपास तक के लोग उनसे परेशान थे। खुद उनके घर वाले तक उनसे परेशान होकर बोलना
नाथ शब्द का अर्थ होता है स्वामी। कुछ लोग मानते हैं कि नाग शब्द ही बिगड़कर नाथ हो गया। भारत में नाथ योगियों की परंपरा बहुत ही प्राचीन रही है। नाथ समाज हिन्दू धर्म का एक अभिन्न अंग है। नौ नाथों की परंपर
दूसरों पर आरोप लगाने वाला स्वयं भी बेचैन रहता है,सामान्य मनुष्य को यह लगता अवश्य है कि, दुष्ट प्रकृति के लोग बहुत प्रसन्न रहते हैंपर यह सत्य नहीं होता।दूसरे को सताने वाला या अनावश्यक ही दूसरे पर
तीन महीने के बच्चे को दाई के पास रखकर जॉब पर जाने वाली माँ को
मैं " पुरुष " हूँ...मैं भी घुटता हूँ , पिसता हूँटूटता हूँ , बिखरता हूँभीतर ही भीतररो नही पाताकह नही पातापत्थर हो चुकातरस जाता हूँ पिघलने कोक्योंकि मैं पुरुष हूँ..मैं भी सताया जाता हूँजला दिया जाता हूँ
दूसरा अध्याय - सुख सागर की संक्षिप्त परिभाषा | जीने की राह | Writer- Sant Rampal Ji Maharaj सुख सागर अर्थात् अमर परमात्मा तथा उसकी राजधानी अमर लोक की संक्षिप्त परिभाषा बताई है:-शंखों लहर मेह
विद्यालय में सब उसे मंदबुद्धि कहते थे। उसके गुरुजन भी उससे नाराज रहते थे क्योंकि वह पढ़ने में बहुत कमजोर था और उसकी बुद्धि का स्तर औसत से भी कम था।कक्षा में उसका प्रदर्शन हमेशा ही खराब रहता था। और बच्
स्वयं की इच्छा से किसी वस्तु अथवा पदार्थ को छोड़ना त्याग तथा स्वयं की इच्छा न होते हुए किसी वस्तु अथवा पदार्थ का छूट जाना नाश कहलाता है।प्रकृत्ति का अपना एक शाश्वत नियम है और वो ये कि मान, पद, प्रतिष्
कामयाबी का स्वाद जरा, चख कर तो देख। सफलता की पहली सीढ़ी, चढ़कर तो देख। मन होकर प्रफुल्लित, आत्मसम्मान से भर जाएगा। जब इस दुनिया में तू, अपनी पहचान बनाएगा। ढूंढ़ना पड़ेगी, तुझको ही अपनी राहें। फि