1969 में खादी ग्रामोद्योग मधुबनी में सहायक के रूप में कार्य किये फिर 1972 में बिहार कॉपरेटिव फेडरेशन में कार्यकर्ता के लिए ट्रेनिंग लिए और कार्य शुरू किये । 1976 में लीला महतो स्मारक उच्च विद्यालय सो
जगदेव बाबू 1968 में बिहार सरकार में मंत्री बने, उसके बाद उनकी पार्टी शोषित समाज दल का प्रसार अमरपुरा में भी बढ़ा। आप भी उनके विचारों और सिद्धान्तों से प्रभावित थे। आपके साथ श्री रजनधारी सिंह, श्री ओ
अमरपुरा गाँव में बाल विवाह नहीं के बराबर होता था, स्त्रियों को भी शिक्षा प्रदान किया जाता था। स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव या छुआछूत जैसी बुराईयों से यह गाँव दूर था। मास्टर श्री घनश्याम इसके उदाहरण थे
भारत एक कृषि प्रधान देश है, आपके घर का भी मुख्य व्यवसाय कृषि ही था। किन्तु जब आपके घर का मालिकाना हक़ पढ़े लिखे होने के कारण श्रधेय श्री शीतल प्रसाद को दे दिए गए, तो उन्होंने अन्य व्यवसाय को भी बढ़ावा द
आपके पिता श्रधेय श्री राम उग्रह सिंह बहुत ही उग्र स्वाभाव के व्यक्ति थे। वे करीब छह फुट लम्बा और रंग गेहुआ था। वे शारीरिक रूप से काफी मजबूत और काफी ताकतवर व्यक्ति थे। वे तीन लोग से उठ सकने वाले बोझो
बचपन में नरेश बाबू का धार्मिक पूजा अनुष्ठान में बड़ी रूचि थी, वे अनंत पूजा, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी इत्यादि त्योहारों में उपवास भी रखते थे और पूरी भक्ति भावना से पूजा अर्चना करते। इसके अलावा सरस्वती पूजा
बिहार की राजधानी पटना के फुलवारी शरीफ़ से करीब 10 किलोमीटर दक्षिण नौबतपुर थाना में अमरपुरा गांव बसा है इसके दक्षिण तरफ नहर है और उत्तर तरफ नौबतपुर प्रखंड कार्यालय और मोहनिपोखर गाँव है पूर्व तरफ आरोपु
जब अंग्रेजों का शासन जोरों पर था और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी भी भारत को स्वतंत्र कराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे. अंग्रेज एक तरफ द्वितीय विश्व युद्ध में फंसे थे तो दूसरी तरफ भारतीय स्वतं
ॐ नमःपित्रे जन्मदात्रे सर्व देव मयाय च | सुखदायप्रसन्नाय सुप्रिताय महात्मने ||1|| सर्वयज्ञ स्वरूपाय स्वर्गाय परमेष्ठिने | सर्वतिर्थावलोकाय करुणा सागराय च ||2|| नमःसदा शुतोषाय शिव रूपाय ते नमः | स
हैलो सखी, आज मन बहुत खुश है ।मैने बताया था ना तुम्हे कि मैने शब्द इन पर पुस्तक लेखन प्रतियोगिता में भाग लिया था।उसमे मेरा दसवां स्थान आया पर सभी ल
दिनाँक : 25.2.2022समय : रात 9 बजेप्रिय डायरी जी,आज मेरा दिन बहुत ही व्यस्त रहा और इसी व्यस्तता के बीच एक बड़ी खुशी की प्राप्ति भी हुई। किसी भी लेखक के लिए सबसे बड़ी खुशी क्या हो सकती है? निस
मुश्किलें जो हारे नहीं ,हिम्मत कैसे हार गई ,मौत ने बुलाया नहीं, जिंदगी कैसे चली गई ।।तकलीफें तो कल भी थी ,फिर वो हमेशा रहेंगी ,क्या अपनों की कोई डोर ,तुझसे अबतक बंधी नहीं ।।गम त
आहहह सखी, अब जा के मन को तसल्ली मिली है ।जब मै और तुम आमने सामने रूबरू है।कल तो ऐसे लग रहा था जैसे मेरे और तुम्हारे बीच एक पर्दा कर
प्रिय सखी। आज तो तुम से ऐप के जरिए मिल ही नही पाऊंगी।पता नही आज सुबह से शब्द.इन एप से अपने आप लाग आऊट हो मैंने फेसबुक से लाग इन किया हुआ है ।आज कुछ गड़बड़ी हो गयी है शायद शब्द इन की ऐप
दिनाँक : 23.02.2022समय : रात 9 बजेप्रिय डायरी जी,ना हो ए-दिल इतना भी हलकान,जिंदगी का फ़लसफ़ा है अनोखा।कभी खिलती है चेहरे पर मुस्कान,तो कभी देती है कमबख्त धोखा।।गीता भदौरिया
खुशी की जगह दिये दर्द है अमर्यादना करते इसलिए तुझसे हम फर्याद!
जिस रास्ते पर चले है, रास्ते है अनजाने,निकले कुछ परायों को हम अपना बनाने!
वक्त का देखा है अजब ही खेल,दो बेमेल लोगों का होता है मेल!
प्रिय सखी डायरी, कैसी हो। कल हाजिर नही हो पायी इसके लिए खेद है।पैर मे ज्यादा दर्द था सो थोड़ा आराम किया फिर छोटे बेटे का कोई प्रोजेक्ट्स ब
कुछ रिश्तों की किस्मत अधुरी क्यु रहती है, जितना भी साथ रहो रिश्तों में दूरी रहती है