shabd-logo

बाबू जी एवं माँ

26 फरवरी 2022

17 बार देखा गया 17

 आपके पिता श्रधेय  श्री राम उग्रह सिंह बहुत ही उग्र स्वाभाव के व्यक्ति थे। वे करीब छह फुट लम्बा और रंग गेहुआ था। वे शारीरिक रूप से काफी मजबूत और काफी ताकतवर व्यक्ति थे। वे तीन लोग से उठ सकने वाले बोझों और बोरियों को अकेले उठा लेते थे। खाना खाते वक्त दस लीटर वाला बाल्टी पानी  भरा पास में रखते थे। उनकी गर्जना गाँव से खेत (करीब दो किमी) तक सुनाई देती थी। आप बताते थे कि एक बार भुसौला दानापुर में एक होटल में खाने बैठे और भर पेट रेट पर खाने की बात हुई। वो खाते-खाते होटल का पूरा खाना खा गये अंत में मेनेजर हाथ जोड़ कर माफ़ी माँगने लगा। वो बहुत ही कर्मठ व्यक्ति थे जो संयुक्त परिवार के हिमायती थे। जीवन भर खेतों में कमाते रहे लेकिन कभी अपने बेटे की पढाई के लिए पैसों की मांग नही की। एक बार की बात है आपके बाबूजी रबी का दौड़ी कर रहे थे, और आप भी उनका हाथ बटा रहे थे।

उसी समय आपने बाबूजी से कहा कि सबलोग अपने बच्चो पर कितना ध्यान देते हैं और आप हमसे दौड़ी कराते रहते हैं, पढाई करने के लिए समय हीं नही मिलता। इतना सुनते हीं गुस्से में आपके पिता जी ने अपने हाथ में पकड़ी लाठी आप पर चला दिए आप किसी तरह आप उनके वार को अपने डंडे से काट दिए और वहाँ से भाग खड़े हुए। अमरपुरा के दक्षिणी भाग में खलिहान में पहलवानी अखाड़ा बना था जिसमे बच्चे बड़े सभी कुश्ती का अभ्यास किया करते थे। श्रधेय श्री दरबारी खलीफा के बाद श्रद्धेय बाला खलीफा, श्रधेय श्री राम खलीफा, श्रधेय श्री झपसी महतो, श्रधेय श्री बदरी महतो इत्यादि मुख्य पहलवान थे। बाद की पीढ़ी में आप के अलावा  श्री निर्मल सिंह,  श्री राजनधारी सिंह इत्यादि कुश्ती लड़ा करते थे।

आपके पिताजी की मृत्यु 85 वर्ष की आयु में 1989 में हुई। 

   आपके माता जी श्रद्धेया श्रीमती मुन्गेश्वरी देवी, आपके पिता के अपेक्षा बहुत कम ऊंचाई करीब साढ़े चार फुट की थी, वो सांवली सी परन्तु आकर्षक स्त्री थी। वह सीधी साधी पतिव्रता महिला थी जो घर के कामों से लेकर खेत खलिहान तक के सभी कामों में निपुण थी। वे पढ़ी लिखी नही थीं  लेकिन पढाई का महत्व समझती थीं इसलिए नरेश बाबू को पढने के लिए हमेशा प्रेरित करती रहती थीं । वह भोर में ही लालटेन जला कर नरेश बाबू को पढने बिठा देती थी। आप भी उनकी आज्ञा का

पालन करते थे, आप रात में पढ़ते समय मच्छर से बचने के लिए अपने पैरों में ‘टाट’ (बोरिया) पैजामे की तरह पहन लिया करते थे. श्रद्धेय श्री शीतल प्रसाद के लख पर बसने के बाद घर की मालकिन आपकी छोटी चाची श्रधेया श्रीमती महेश्वरी देवी थीं, वही घर का हिसाब किताब रखती थीं । कभी कभी छोटी मोटी सुविधाओं को लेकर आपकी माँ और छोटी चाची में बहस हो जाया करती थी, मांगें पूरी न होने पर आपकी माँ रो-धो के चुप हो जाती थी परन्तु कभी बटवारा करने के लिए नहीं बोली । 

   श्रधेय श्री राम उग्रह सिंह का अपने भाइयों से बहुत प्रेम था, इसका प्रमाण इससे मिलता है कि उम्र ढलने के बाद भी जब कभी उनके बड़े भाई श्रधेय श्री भीखम महतो बेला से अमरपुरा आते तो ये उनका बहुत ख्याल रखते थे। तीनों भाइयो के प्रेम का ही नतीजा था कि जब तक उनके बाँहों में बल था घर के बटवारे के बारे में किसी ने नहीं कहा, परन्तु इनके कमजोर होने पर इनके बेटे, पोतों और बहुओं में मेल मिलाप ख़त्म होने लगा और अंततः 1983 में यह बड़ा परिवार अनेक टुकड़ों में बंट गया। बटवारे के चक्कर में आपको कोर्ट कचहरी का चक्कर भी लगाना पड़ा, क्योंकि जौरागी के खरीददारी वाली जमीन के बंटवारे में विवाद था। बाद में कोर्ट ने 1985 में फैसला दिया कि सभी जमीन का एक तिहाई बटवारा किया जायेगा। किन्तु बाद में आपसी बैठक से ही सभी सम्पत्ति का बटवारा किया गया। आपको संयुक्त परिवार से इतना लगाव था कि बटवारे के बाद भी करीब दो सालों तक आप श्रधेय श्री राजाराम सिंह के परिवार के साथ ही मिलजुलकर रहे, आँगन में बटवारे की दीवार भी काफी दिनों के बाद बना।   आपकी माताजी आपके रिटायरमेंट के बाद भी आपको बच्चा ही समझती थी, और

छोटी छोटी बातों पर आपको डांटती रहती थी। और आप उसे माँ का आशीर्वाद समझ कर हँसकर टाल दिया करते थे। 

29
रचनाएँ
कर्मयोगी नरेश बाबू
5.0
जिनका जन्म हुआ है उनकी मृत्यु भी निश्चित है | जीवन-मृत्यु प्रकृति का शाश्वत सत्य है | जिस तरह बीता हुआ समय कभी वापस नहीं आता, उसीतरह जो दिवंगत हो जाते हैं, कभी नहीं लौटते | मात्र उनकी यादें हमारे मानस पर बरबस आती रहती है | उनकी क्रियाकलापें, उनकी बातें, उनकी स्मृतियाँ हमेशा ही हमारे अंतर्मन में आती रहती है | फिर वही स्मृतियाँ हम अपने आने वाली संतानों को बताते हैं, यह प्रक्रिया पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है, जो स्मृतियाँ उपयोगी होती है अनेक पीढ़ियों तक चलती है, जबकि कुछ यादें एक ही पीढ़ी में समाप्त हो जाती है | मेरी यह किताब, मेरे बाबूजी और पूर्वजों की स्मृतियों को सहेजने की एक छोटी सी कोशिश है | बाबूजी का पूरे परिवार को आगे बढ़ाने में महानतम योगदान रहा है. बाबूजी ने हम चारो भाई-बहन को उच्च शिक्षा प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिसके परिणामस्वरूप हम सभी ने एक अच्छा मुकाम हासिल किया| आज हम जो कुछ भी हैं, यह बाबूजी के दूरदर्शिता के बिना संभव नहीं था | हम चारो भाई-बहन को उच्च शिक्षा प्रदान कर उन्होंने एक ऐसी परम्परा की नींव रखी है जो आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा का काम करेगी | उन्होंने हमें पढ़ा-लिखाकर ऐसे अवसर प्रदान किये जो उन्हें स्वयं के जीवन में कभी नहीं मिले थे | बाबूजी के शिक्षा के प्रति अथाह लगाव के कारण ही मैं आज इस किताब को लिखने में अपने को सक्षम पा रहा हूँ | बड़े लोगों की जीवनी तो आप सभी जगह पा सकते हैं किन्तु साधारण आदमी, सिर्फ कहानी का पात्र बनता है | मैंने बाबूजी के इस ‘जीवनी’ के माध्यम से एक साधारण आदमी को मुख्य किरदार के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश किया हूँ | मेरे बाबूजी अकसर मुझे अपने पूर्वजों के बारे में बताते रहते थे, इस किताब में बाबूजी से प्राप्त जानकारियों को समेकित किया गया है | बाबूजी के जीवनी लिखने के लिए मैंने अपनी माँ, भाइयों के अलावा बाबूजी के दोस्त श्री प्रेमचंद, श्री रामानंद वर्मा, श्री शिवसमन तिवारी, श्री गजाधर और अनेक सम्बन्धियों से जानकारी प्राप्त किया | इस जीवनी को लिखने में मुझे अपने भाइयों श्री कुणाल (प्रमोद) और श्री अमरेश (आमोद), बहन श्रीमती चंद्रमाला से भी अपेक्षित सहयोग मिला | इस पुस्तक को लिखने में मुझे अपने मित्र श्री राजीव सारस्वत, दिल्ली के पिताजी के द्वारा लिखित “स्मृतियाँ” से भी अपेक्षित मार्गदर्शन मिला | बाबूजी का यह जीवनी अनेक चैप्टर में विभाजित है | इसमें कुछ चैप्टर पूर्वजो से जुड़ी घटनाओं का वर्णन है | इसमें बाबूजी के जन्म से लेकर मृत्यु तक घटनाओं का वर्णन किया गया है | इस किताब में मेरे छोटे भाइयों, बहन और मंझले भाई की पत्नी (भभू) का बाबूजी के प्रति विचार को भी जगह दी गयी है | परिवार के जिन सदस्यों ने अपने संस्मरण लिखे हैं, उनसे इस प्रस्तुति को पूर्णता प्राप्त हुई है, जिससे इसकी पठनीयता बढ़ी है | किताब के अंत में, बाबूजी के दोस्तों और शुभचिंतकों के भाषण का कुछ अंश दिया गया है, जो उन्होंने बाबूजी के शोकसभा के दिन दिया था | इस किताब में बाबूजी के कुछ तस्वीरें भी दी गयी है | उनके कुछ दोस्तों और सम्बन्धियों के भी यादगार तस्वीरों को इस पुस्तक में जगह दी गयी है | इस पुस्तक को आपके हाथ में पहुँचाने तक उपरोक्त महानुभावों के अलावा मेरे मित्र श्री अभय कुमार, दिल्ली एवं श्री शिव शंकर प्रसाद, निसरपुरा, पटना ने प्रूफरिडिंग के अतिरिक्त शब्द एवं वाक्य विन्यास को समुन्नत किया है | सुरेश भैया, गया ने इस पुस्तक की प्रिंटिंग में सहयोग किया, जबकि मनीष जी (बहनोई) का तस्वीर चुनने और सही जगह रखने में अपेक्षित सहयोग मिला | संकलन के विभिन्न स्तरों पर उक्त सदस्यों के सृजनात्मक सहयोग, श्रम एवं उत्साहपूर्ण योगदान से नरेश बाबू की जीवनी “कर्मयोगी नरेश बाबू” अपने वर्तमान स्वरूप आ सका है , इसका श्रेय इन्हीं सदस्यों को जाता है | आभार प्रकट करना उनके निश्छल स्नेह, आदर और प्रयास को कम करना होगा | भगवान से प्रार्थना है कि उनका जीवन मंगलमय हो | मुझे विश्वास है कि यह किताब से आने वाली पीढ़ी पूर्वजों के बारे में जान सकेगी | इससे उन्हें अपने कर्मों को सुविचारित रूप से पूर्ण करने में सहयोग मिलेगा | इस संस्मरणों को लिखने में, प्रस्तुतिकरण में, यथासंभव, मैं सही और शुद्ध लिखने की कोशिश किया हूँ, फिर भी कुछ त्रुटी रह गयी हो, तो मुझे क्षमा करें | और इस पुस्तक से जो कुछ भी ग्राह्य है, उसे पूर्वजों के आशीर्वाद समझकर अवश्य ग्रहण करें |
1

पितृ-स्तुति

26 फरवरी 2022
1
0
0

ॐ नमःपित्रे जन्मदात्रे सर्व देव मयाय च | सुखदायप्रसन्नाय सुप्रिताय महात्मने ||1|| सर्वयज्ञ स्वरूपाय स्वर्गाय परमेष्ठिने | सर्वतिर्थावलोकाय करुणा सागराय च ||2|| नमःसदा शुतोषाय शिव रूपाय ते नमः | स

2

वर्तमान अमरपुरा

26 फरवरी 2022
1
0
0

  बिहार की राजधानी पटना के फुलवारी शरीफ़ से करीब 10 किलोमीटर दक्षिण नौबतपुर थाना में अमरपुरा गांव बसा है इसके दक्षिण तरफ नहर है और उत्तर तरफ नौबतपुर प्रखंड कार्यालय और मोहनिपोखर गाँव है पूर्व तरफ आरोपु

3

अमरपुरा और इतिहास

26 फरवरी 2022
0
1
0

  जब अंग्रेजों का शासन जोरों पर था और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी भी भारत को स्वतंत्र कराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे. अंग्रेज एक तरफ द्वितीय विश्व युद्ध में फंसे थे तो दूसरी तरफ भारतीय स्वतं

4

पांडे जी

26 फरवरी 2022
0
1
0

 बचपन में नरेश बाबू का धार्मिक पूजा अनुष्ठान में बड़ी रूचि थी, वे अनंत पूजा, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी इत्यादि त्योहारों में उपवास भी रखते थे और पूरी भक्ति भावना से पूजा अर्चना करते। इसके अलावा सरस्वती पूजा

5

बाबू जी एवं माँ

26 फरवरी 2022
0
0
0

 आपके पिता श्रधेय  श्री राम उग्रह सिंह बहुत ही उग्र स्वाभाव के व्यक्ति थे। वे करीब छह फुट लम्बा और रंग गेहुआ था। वे शारीरिक रूप से काफी मजबूत और काफी ताकतवर व्यक्ति थे। वे तीन लोग से उठ सकने वाले बोझो

6

व्यवसाय

26 फरवरी 2022
0
0
0

 भारत एक कृषि प्रधान देश है, आपके घर का भी मुख्य व्यवसाय कृषि ही था। किन्तु जब आपके घर का मालिकाना हक़ पढ़े लिखे होने के कारण श्रधेय श्री शीतल प्रसाद को दे दिए गए, तो उन्होंने अन्य व्यवसाय को भी बढ़ावा द

7

आपकी शादी

26 फरवरी 2022
0
0
0

 अमरपुरा गाँव में बाल विवाह नहीं के बराबर होता था, स्त्रियों को भी शिक्षा प्रदान किया जाता था। स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव या छुआछूत जैसी बुराईयों से यह गाँव दूर था। मास्टर  श्री घनश्याम इसके उदाहरण थे

8

जगदेव बाबू और आप

26 फरवरी 2022
0
0
0

 जगदेव बाबू 1968 में बिहार सरकार में मंत्री बने, उसके बाद उनकी पार्टी शोषित समाज दल का प्रसार अमरपुरा में भी बढ़ा। आप भी उनके विचारों और सिद्धान्तों से प्रभावित थे। आपके साथ  श्री रजनधारी सिंह,  श्री ओ

9

गया प्रवास

26 फरवरी 2022
1
0
0

 1969 में खादी ग्रामोद्योग मधुबनी में सहायक के रूप में कार्य किये फिर 1972 में बिहार कॉपरेटिव फेडरेशन में कार्यकर्ता के लिए ट्रेनिंग लिए और कार्य शुरू किये । 1976 में लीला महतो स्मारक उच्च विद्यालय सो

10

शिक्षक की भूमिका में

26 फरवरी 2022
0
0
0

 ऐसा कहा जाये कि आपके अंदर बचपन से ही शिक्षक का गुण था तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. आप अपने छात्र जीवन से ही अपने दोस्तों को पढ़ाते रहते थे. आप अपने साले श्रधेय श्री शम्भू प्रसाद को भी पढ़ाया. वे बताते

11

स्कूल, आप और परिवार

26 फरवरी 2022
1
0
0

 आपने स्कूल को अपना लिया और स्कूल ने आपको। शुरू में आप स्कूल से 1 किमी दूर बने सोहैपुर कम्युनिटी हॉल में रहे फिर बाद में स्कूल के हॉस्टल में रहने लगे। आप अपने अमरपुरा के संस्कार और व्यवहार सोहैपुर गया

12

अमरपुरा के उमस

26 फरवरी 2022
0
0
0

 मानसून की उमस को याद करते हुए, श्रधेय श्रीमती सुमित्रा देवी बताती हैं कि सावन की दूसरी सोमवारी का उमस भरा दिन था, रात में भी बहुत गर्मी थी न हवा चल रही थी न बारिश ही हो रही थी। रात में खाना खाने के ब

13

शिक्षक की ईमानदारी

26 फरवरी 2022
0
0
0

 आप अमरपुरा में नाटक मंचन में सहयोग अवश्य करते थे. आप खुद कोई पात्र नहीं बनते थे किन्तु अन्य कार्य जैसे नाटक चयन, चंदा मांगने एवं देने में सहयोग करते थे. सर्वश्री परमेश्वर नारायण, भूपेंद्र सिंह, विजय

14

आपके पिताजी का इंतकाल

26 फरवरी 2022
0
0
0

 1983-84 आते-आते आपके पिताजी श्रधेय श्री राम उग्रह सिंह काफ़ी थक चुके थे. इसी बीच घर में बंटवारा उन्हें और बुड्ढा बना दिया था. और इसी बीच आपकी छोटी चाची श्रद्धेया श्रीमती महेश्वरी देवी की अचानक मृत्यु

15

गया में गृह-निर्माण

26 फरवरी 2022
1
0
0

 1991 में गया के लखीबाग, मानपुर में आपने जमीन खरीद ली थी. आपके साथ-साथ सोहैपुर हाई स्कूल के अनेक शिक्षक जैसे श्रधेय  श्री सहजा बाबू, श्रधेय  श्री विरेन्द्र बाबू, श्री विजय बाबू, श्री रामभजू बाबू इत्या

16

सेवा-निवृति

26 फरवरी 2022
0
0
0

 1998 तकआपके बड़े बेटे चंद्रगुत(विनोद) ने साइंस में स्नातक के बाद सिविल इंजीनियरिंग में दुमका पोलिटेक्निक से डिप्लोमा कर लिया. जबकि आपका मंझला बेटा कुणाल (प्रमोद) ने 2000 में कलकत्ता विश्वविध्यालय से प

17

घर-वापसी

26 फरवरी 2022
0
0
0

 हाँ ! घर-वापसी ही , क्योंकि श्रद्धेय नरेश बाबू जब से सोहैपुर , गया के लीला महतो स्मारक उच्च विद्यालय में ज्वाइन किया था , स्कूल के आस-पास अपने सहशिक्षकों के साथ रहते थे , खुद खाना बनाना और खुद ही अपन

18

माताजी और सेवा

26 फरवरी 2022
0
0
0

 2010 साल का आश्विन महीना था, थोड़ी-थोड़ी ठंढ हो रही थी, लेकिन बूढ़ी हड्डी में ठंढ कुछ ज्यादा ही लगती है । आपकी माताजी श्रद्धेय मुंगेश्वरी देवी 93 वर्ष की हो चुकीं थीं । उस दिन तेज हवा बह रही थी, जिससे आ

19

लकवा

26 फरवरी 2022
0
0
0

 जब आपकी बेटी की भी पारामेडिकल के कंपेटिसन में सेलेक्सन हो गया और उसे स्पीच थेरेपी में ग्रेजुएशन में एड्मिशन के लिए आया तो आप बहुत खुश हुए थे, उस समय आपका मंझला लड़का उसी कालेज के कैम्पस में नेशनल इं

20

हैदराबाद यात्रा

26 फरवरी 2022
0
0
0

 लकवा से उबरने के बाद आप पूरी तरह स्वस्थ हो गए थे । या यों कहें कि आप पहले से ज्यादा स्वस्थ हो गए थे । अंतर यही हुआ था कि अब आपके साथ दवा की एक पोटली साथ हो गया । लकवा मारने से करीब एक साल पहले 2015

21

बाबूजी का दिल्ली और करनाल भ्रमण

26 फरवरी 2022
0
0
0

 जब आपका पोते इशांक का फुटबॉल खेलते समय 24 मार्च 2018 को हाथ टूट गया तो आपलोग बहुत परेशान हुए. आप उससे मिलने के लिए उतावले हो रहे थे. उस समय आपके मंझले लड़के प्रमोद अपने परिवार के साथ घर आया हुआ था. आप

22

अंतिम भ्रमण

26 फरवरी 2022
1
0
0

 ऐसा लगता है आपके पास समय की कमी थी. आपको इसका अहसास भी हो गया था. तभी तो आप अपनी जान पहचान के लोगों से  जल्दी-जल्दी मिल लेना चाह रहे थे. जब आपसे मिलने आपके बड़ी साली श्रीमती सोना देवी, बाजितपुर की पुत

23

गुरूजी चले गये

26 फरवरी 2022
0
0
0

 गुरूजी चले गए?  बाबूजी चले गए?  पिताजी चले गए.  दादाजी चले गए. नरेश बाबू चले गए.  यही बातें अमरपुरा गांव में चल रही थी 13 ओक्टुबर 2018 को रात 10 बजे से. फोन पर भी यही बातें हो रही थी. सभी लोगों

24

अंतिम यात्रा

26 फरवरी 2022
0
0
0

 इस समय रात के करीब पौने दस बजे थे. चारों तरफ सन्नाटा था. घर पर आपकी पत्नी और बेटी आपके सकुशल लौटने की भगवान से प्रार्थना कर रहे थे. किन्तु जैसे ही आपका निष्प्राण शरीर पहुंचा, घर पूरा अशांत हो गया. आप

25

मेरी नजरों में हमारे बाबूजी ------ कुणाल योगेश चन्द्र

26 फरवरी 2022
0
0
0

 एक साधारण एवं गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद भी मेरे बाबूजी अपनी कार्य-कुशलता एवं योग्यता के कारण लोकप्रिय रहे. उनका बचपन गरीबी एवं कठिनाई भरा था. अपने सरल स्वभाव के चलते वे बड़ी आसानी से लोगों से घ

26

हमारे पिताजी और मेरी स्मृतियाँ -अमरेश चन्द्र

26 फरवरी 2022
0
0
0

 मेरा बचपन अधिकांशतः अमरपुरा में बीता है इस कारण प्रथम 10 वर्ष तक मैं पिताजी के अनुशासन और स्नेह से प्रायः वंचित रहा. परन्तु मेरे जीवन पर पिताजी का गहरा प्रभाव रहा है. पिताजी की बहुत सी बातें हैं जो

27

मैं और मेरे पिताजी - चंद्रमाला शौर्य

26 फरवरी 2022
0
0
0

 मैं अपने पिताजी कि लाडली बेटी थी . जहाँ तक मुझे याद है वो मुझे बताते थे, मेरे जन्म पर वे पुरे गाँव में लड्डू बटवाए थे | चुकि मैं अपने तीनों भईया से छोटी थी इसलिए मैं पुरे परिवार की लाडली बन कर रही | 

28

मेरे ससुर जी और मैं – कुमारी सुषमा

26 फरवरी 2022
1
0
0

 मेरी शादी अमरपुरा के श्री राम नरेश सिंह के मंझले पुत्र कुणाल योगेश चन्द्र से तय हुई थी. इस शादी में अगुआ मेरे चचेरे जीजा जी करहारा के श्री बलराज सिंह थे जो कि मेरे पति के मौसेरे भाई भी हैं. मेरी शाद

29

श्रधेय श्री नरेश बाबू के शोकसभा (25.10.18) में आए कुछ आगंतुकों के आपके प्रति उद्गार

26 फरवरी 2022
0
0
0

 1. आँखों में अश्क लिये ; इधर-उधर ढूंढता हूँ | जब नहीं पाता हूँ ; तो खुद को समझाता हूँ || तेरी यांदों को हृदय में संजोय ; अश्क को घूंट –घूंट पीता हूँ ||”  -अजित कुमार सिन्हा, अमरपुरा   2. “सन 1956

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए