बचपन में नरेश बाबू का धार्मिक पूजा अनुष्ठान में बड़ी रूचि थी, वे अनंत पूजा, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी इत्यादि त्योहारों में उपवास भी रखते थे और पूरी भक्ति भावना से पूजा अर्चना करते। इसके अलावा सरस्वती पूजा, लक्ष्मी पूजा, दुर्गापूजा इत्यादि उत्सवो में बढ़-चढ़ भाग लेते थे, उनकी यही पुजारीपन की वजह से उनकी छोटी चाची उनको “पांडे” कहा करती थी।
मिडिल स्कूल में आते आते आपपर घर की कुछ जिम्मेदारियां भी आने लगी जैसे मवेशियों को चारा खिलाना, उनके लिए पुआल से कुट्टी काटना, खेत पटवन के लिए रहट और लाठा-कुड़ी चलाना इत्यादि। वैसे तो खेती का काम आपके बाबूजी और छोटे चाचा देखते थे परन्तु कुछ काम जैसे आड़ी मारना, घास हटाना इत्यादि नौजवानों को ही करना पड़ता था। घर में बड़े होने के कारण श्रधेय श्री शीतल बाबू अपनी पढाई में लगे रहते थे किन्तु नरेश बाबू और राजाबाबू को अक्सर खेतो में काम करने जाना पड़ता था। धान रोपनी के समय मजदूरों की कमी होने पर पुरे परिवार को खेतो में हाथ बटाना
पड़ता था, इसी तरह ईख की कूड़ाई के समय भी घर के सभी मर्दों को कूड़ाई करनी पड़ती थी।
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान अमरपुरा गांव के लोग भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिए थे। आज भी अमरपुरा
के स्वतंत्रता सेनानियों में श्रधेय श्री सत्यनारायण सिंह, श्रधेय श्री उमाकांत वर्मा और श्रधेय श्री शिवसागर महतो का नाम
प्रमुखता से लिया जाता है। इनलोगों के अलावा श्रधेय श्री राम उग्रह महतो, श्रधेय श्री लाल बहादुर, श्रधेय श्री झपसी महतो, श्रधेय श्री तपसी महतो, श्रधेय श्री भगवान दास इत्यादि लोगों ने सन 1942 की क्रांति- अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान नौबतपुर थाना पर धावा बोला, बिहटा में ट्रेन को लूटा, और पटरियां उखाड़ी, जिसके अवशेष अभी भी कही-कही उपलब्ध हैं।
जब आप मिडिल स्कूल में थे, तो देश आजाद हो चुका था, अन्य बच्चों की तरह आपको भी चाचा नेहरू को पसंद थे। आपको महात्मा गाँधी के बलिदान का पता चला। सरकार द्वारा प्रचारित बुनियादी शिक्षा के कारण आपको पढने और पढ़ाने का चस्का लग गया। खेतों में काम करने के बाद जो भी समय बचता आप पढाई करने में लगा देते। हाईस्कूल में आपका
पसंदीदा विषय विज्ञान और गणित था जिसमे आप निपुण हो गये थे और अपने हमउम्र साथियों को भी पढ़ाने लगे। इस दौरान आपके कई हमउम्र साथी आपके शिष्य बन गये जिनमे श्री दामोदर सिंह, श्री रामानंद सिंह, श्री ओम प्रकाश सिंह, श्री श्रीकांत सिंह, श्री चन्द्र शेखर, श्री मिथिलेश सिंह आदि शामिल हैं। खास बात यह रही कि इन सभी लोगो को आपकी प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से सरकारी नौकरी मिल गयी थी । 1960 ई० में आप श्री रामानंद वर्मा और श्री चंद्रदेव वर्मा के साथ मिल कर गांव के महादेव स्थान (पक्काथान) के पास बाल सखा पुस्तकालय की स्थापना किये। पुस्तकालय के निबंधन हेतु आप अनेक बार साईकिल से दानापुर और पटना गए और अंततः निबंधन में सफलता प्राप्त की। बाल सखा पुस्तकालय पटना
के सच्चिदानंद सिन्हा पुस्तकालय के द्वारा अंगीकृत कर लिया गया जिससे वहां से किताबें एवं पत्र पत्रिकाएं आने लगी। यह पुस्तकालय 1990 तक सुचारू रूप से चलता रहा परन्तु बाद में उचित संरक्षण एवं सञ्चालन के अभाव में मृतप्राय हो गया।
श्री रामानंद वर्मा, जो मनेर हाई स्कूल से रिटायर हुए हैं नरेश बाबू के बारे में बात करते हुए भावुक हो जाते हैं और बताते हैं कि वे नरेश बाबू को मौसा गुरु कहते थे, क्योंकि नरेश बाबू उनके मौसा (श्री शीतल प्रसाद) के छोटे भाई थे और दूसरी तरफ वे उन्हें विज्ञान और गणित पढ़ाते भी थे। आप श्री ओम प्रकाश, श्री गजाधर, श्री मिथिलेश, श्री प्रेमचंद इत्यादि लोग के
साथ अपने बड़का घर में पढाई करते थे। बड़का घर बड़ा सा हॉल था जिसकी दीवारे दोहरी थी, करीब-करीब चार फीट चौड़ी थी और बीच में भूसा भरकर वातानुकूलित बनाया गया था। वह कमरा प्याज को भंडारित करने के लिए बनाया गया था जिसमे एक मचान भी था। जब बड़का घर खाली रहता था तब वह लड़कों के लिए पढाई का अड्डा बन जाता था। जिसके कारण नरेश बाबू को कभी-कभी डांट भी खानी पड़ती थी।
भारत चीन युद्ध और पाकिस्तान युद्ध का गाँव के लोगो पर ज्यादा प्रभाव नहीं था किन्तु इन्ही दिनों गाँव के अनेक लोग सेना में भर्ती हुए थे। श्री ओम प्रकाश सिंह, जो सेना में वायरलेस ऑपरेटर के पद से रिटायर हुए थे, हाल ही में 11.10.2018 को नासरीगंज, दानापुर में निधन हो गया, नरेश बाबू को गुरूजी बोला करते थे। वे नरेश बाबू के प्रिय दोस्त और शिष्य थे।
आप पढाई के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी आगे रहते थे। श्री सच्चिन्द्र कुमार जो पटना पॉलिटेक्निक से रिटायर हुए हैं, बताते हैं कि वे, नरेश बाबू, श्री गजाधर सिंह, श्री भूपेंद्र सिंह, श्री गोपाल सिंह इत्यादि के साथ प्रतिदिन शाम में अमरपुरा के खलिहान (जो गाँव के दक्षिण में अवस्थित है) में फुटबॉल खेलते थे। कभी कभी नारायणपुर फिल्ड में दुसरे गाँव से भी मैच खेलते थे। पढने-पढ़ाने, खेलने-कूदने, फगुआ-चैता गायन इत्यादि ने 1960 के दशक के अंतिम वर्षों में गाँव के लोगो को एक सांस्कृतिक और खेलकूद क्लब बनाने के लिए प्रेरित किया। श्री प्रेमचंद, श्री चंद्रदेव वर्मा, श्री गोपाल सिंह, श्री सत्यनारायण सिंह, श्री श्रीकांत, श्री विजय कुमार बाघ, श्री भूपेन्द्र सिंह, श्री शुशांत कुमार, श्री अजय कुमार, श्री गजाधर सिंह इत्यादि लोगों ने मिलकर “कुमार स्पोर्टिंग क्लब” की स्थापना ई०1969 में किया। जिसका नाम अब बदल कर “कुमार प्रतिभा प्रतिष्ठान” कर दिया गया है । हालांकि क्लब की स्थापना में नरेश बाबू का प्रत्यक्ष रूप से योगदान नही था,किन्तु आप कला और कलाकार का बहुत क़द्र करते थे। नाटक कलाकारों को बैक सपोर्ट करते थे। एक बार “अंधेर नगरी चौपट राजा” नाटक को निर्देशित भी किया था।
पढाई के कम साधन होते हुए भी आपने 1960 में माध्यमिक परीक्षा द्वितीय श्रेणी से उतीर्ण हुए । आपके पास होने पर आपकी माँ श्रद्धेया श्रीमती मुन्गेश्वरी देवी बहुत प्रसन्न हुई परन्तु आपके पिता जी श्रधेय श्री राम उग्रह सिंह पर कोई
फर्क नही पड़ा। उनका मानना था कि बेटा पढ़ लिया तो ठीक अन्यथा कोई बात नहीं। उन्हें लगता था कि अंग्रेजी पढने वाला बेईमान होता है शायद अंग्रेजी से मतलब अंग्रेज से रहा होगा, जिससे वे बहुत दिनों तक लड़े थे।
आप 1962 में बी० एस० कॉलेज, दानापुर से प्री-यूनिवर्सिटी परीक्षा द्वितीय श्रेणी से पास हुए। आपके मुख्य विषय अंग्रेजी,गणित और विज्ञान थे। पैसे की कमी और आपके पिताजी के पढाई से उदासीनता के चलते आप आगे की पढाई जारी नहीं रख पाए और आपका इंजीनियर बनने का सपना अधूरा रह गया। इस बात का आपको हमेशा मलाल रहा। पैसे की कमी के कारण आप आगे की पढाई बंद करके नौकरी की तलाश में लग गए। आप 1967 में हिंदी विद्यापीठ देवघर से साहित्यालंकार की डिग्री प्राप्त किया। आपने 1969 में खादी ग्रामोद्योग मधुबनी में सहायक एवं संगठक का प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसी क्रम में आपने 1972 में बिहार को-ऑपरेटिव फेडरेशन में कार्यकर्ता के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया।