जगदेव बाबू 1968 में बिहार सरकार में मंत्री बने, उसके बाद उनकी पार्टी शोषित समाज दल का प्रसार अमरपुरा में भी बढ़ा। आप भी उनके विचारों और सिद्धान्तों से प्रभावित थे। आपके साथ श्री रजनधारी सिंह, श्री ओमप्रकाश सिंह, श्री दीनानाथ, श्री चंद्रशेखर, श्री प्रेमचंद इत्यादि गाँव के अधिकतर लोग भी शोषित समाज दल में शामिल हो गए। इसी बीच 1974 में जगदेव बाबू की हत्या कर दी गयी जिसके फलस्वरूप पूरे राज्य में गुस्से की लहर फैल गयी। उससे अमरपुरा भी अछूता
नहीं रहा। प्रो० जयराम गांव गांव घूम कर जगदेव बाबू के विचारों का प्रचार प्रसार कर रहे थे, उसी क्रम में आप उनके संपर्क
में आये। आप गांव के अन्य लोगो के सहयोग से नहर पर जगदेव बाबू का स्मारक बनवाये और उस पर लिखवाया “जीवन एक संघर्ष है”। एक कदम्ब का पेड़ भी लगाया जो हाल तक बीसवीं सदी के अंतिम दशक तक था।
उसी समय एक समाज सुधार संघ “अर्जक संघ” का उद्भव हुआ, जिसके प्रणेता प्रो० राम स्वरुप वर्मा, जो उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री थे। अर्जक संघ ब्राह्मणवाद के प्रबल विरोधी संगठन के रूप में जाना जाता है। यह संस्था हिन्दू समाज के कुरीतियों और बाह्य आडंबरों से बचाने के लिए कई तरह के कार्यक्रम और प्रयास में संलग्न है। श्रधेय श्री नरेश बाबू अर्जक संघ के पक्के समर्थक थे। नरेश बाबू कई लोगों की शादी अर्जक संघ के तरीके से कराये। आप अपने पुत्र समान शिष्य डॉ० सुरेश प्रसाद जो शाक्यमुनि कॉलेज बोधगया में प्रोफेसर हैं, की शादी 1989 में अर्जक संघ के तरीके से कराये। अपनी शादी के बारे में याद करते हुए डॉ सुरेश प्रसाद बताते हैं कि खानजहाँपुर, गया के निवासी श्री रामजी प्रसाद जो सरकारी मिडिल स्कूल के प्राचार्य थे, अपनी पुत्री “आरती” की शादी के लिए योग्य वर की तलाश में थे। इसी क्रम में वो नरेश बाबू से मिले, उनके प्रयास से उनकी शादी बिना दहेज़ के हो गयी। बाद में नरेश बाबू अपने तीनों बेटों की शादी भी अर्जक संघ या कुशवाहा पंडित के माध्यम से करवाई , यहाँ भी उनका ब्राह्मणवाद से विरोध झलकता है।
नरेश बाबू के सम्बन्ध में बात करते हुए श्री गजाधर सिंह बताते हैं कि वो दोस्ती के बहुत पक्के थे। एक बार की बात
है उनके मित्र श्री प्रेमचंद को मुस्त्फापुर की एक लड़की पसंद थी, जब यह बात लड़की वालों को पता चली तो उन्होंने श्री प्रेमचंद जी को उठवा कर शादी करवा दी। परन्तु घरवालों के डर से वो बिना लड़की को साथ लिए घर आ गये। महीनों तक वो इसी तरह रहते रहे। नरेश बाबू से अपने दोस्त की स्थिति देखी नहीं गयी, नरेश बाबू ने श्री प्रेमचंद जी के पत्नी की तरफ श्री प्रेमचंद जी के पिताजी को समबोधित एक चिठ्ठी लिखी, और उनकी पत्नी को अमरपुरा पोस्ट करने के लिए भिजवा दिया | उनकी पत्नी ने ऐसा ही किया। परिणाम हुआ कि कुछ ही महीनो में दोनों परिवार में सुलह हो गयी और श्री प्रेमचंद जी
के परिवार वाले लड़की को लिवा लाये।