अमरपुरा गाँव में बाल विवाह नहीं के बराबर होता था, स्त्रियों को भी शिक्षा प्रदान किया जाता था। स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव या छुआछूत जैसी बुराईयों से यह गाँव दूर था। मास्टर श्री घनश्याम इसके उदाहरण थे जो बेलदार जाति से सम्बन्ध रखते थे किन्तु उनके पास कायस्थ, महतो, तिवारी इत्यादि सभी जाति के स्त्री पुरुष पढने जाया करते थे। श्री शिवशमन तिवारी बताते हैं कि उनके स्कूल में 100 से ज्यादा बच्चे पढ़ते थे, पढ़ाने के एवज में मास्टर साहब उनसे आधा सेर चावल प्रति माह लेते थे। उनके स्कूल में पहली से तीसरी तक पढाई होती थी।स्त्री शिक्षा के कारण बाल विवाह नही होता था।
आपकी उम्र 23-24 वर्ष होते होते आपकी शादी की बात होने लगी। आपकी माँ को जल्दी से बहु घर लाने की इच्छा थी परन्तु आपके पिता जी श्रधेय श्री राम उग्रह सिंह के उग्र व्यव्हार के कारण किसी को उनसे इस बारे में बात करने की हिम्मत नही थी। श्रधेय श्री यदुनंदन महतो, “पेट्रोल साहब”, निसरपुरा जेवार के जाने माने प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, वो नहर का पेट्रोलिंग का काम करते थे शायद इसी वजह से उनका नाम पेट्रोल साहब पड़ गया होगा । पेट्रोल साहब सेल्हौरी, दुल्हिन बाजार के “शरण परिवार” के दामाद थे। सेल्हौरी के श्री संजीवन महतो उर्फ़ बूटाई महतो बड़े किसान थे। उनके तीन पुत्र थे श्रधेय श्री श्याम शरण सिंह, श्रधेय श्री रामरक्षा सिंह और श्रधेय श्री हरिशरण सिंह। श्रधेय श्री श्याम शरण सिंह घर के मुखिया थे। पेट्रोल साहब श्रधेय श्री संजीवन महतो की बेटी श्रीमती श्यामदेई देवी के पति थे। 1965 में शरण परिवार की दो बेटियों श्रद्धेया
श्रीमती कृष्णा देवी एवं श्रद्धेया श्रीमती सुमित्रा देवी की शादी तय की गयी। श्रीमती कृष्णा की शादी सीवान में तय हुई और श्रीमती सुमित्रा की शादी आपसे तय हुई। पेट्रोल साहब इस शादी के बीचवान थे। उन्होंने श्रधेय श्री श्याम शरण सिंह को आपके बारे में बताया तथा शादी का प्रस्ताव ले कर श्रधेय श्री शीतल प्रसाद के पास ले गये। श्रधेय श्री शीतल प्रसाद को प्रस्ताव पसंद आया और परिवार के बारे में पता लगा कर अपने सम्बन्धी श्रधेय श्री मंगल प्रसाद और पडोसी श्रधेय श्री भगवान सहाय के साथ लड़की देखने सेल्हौरी गये और छेका दे कर आ गये।
पुराने समय में यह चलन था कि लड़के लड़की के अभिभावक ही शादी तय करते थे। लड़का और लड़की शादी के पहले एक दुसरे को नही देखते थे। दहेज़ का चलन उस समय भी था परन्तु परिवार टूटने की घटना शायद ही सुनने को मिलता था। पारिवारिक और सामाजिक दबाव के कारण पति पत्नी के बीच अनबन होने पर भी कोई भी कचहरी का रुख नही
करता था।
श्रधेय श्री नरेश बाबू की शादी 3 जुलाई 1965 को हुई उस दिन शरण परिवार में दो बारात आयी थी एक सिवान से श्रीमती कृष्णा देवी के लिए और दूसरी श्रीमती सुमित्रा देवी के लिए नरेश बाबू की बारात। नरेश बाबू की बारात में डॉ० जगदीश प्रसाद (लखपर) की जीप और घर की बैलगाड़ी गयी थी। बहुत से लोग पैदल भी सेल्हौरी बारात गये थे। दूल्हा और तीनों समधी पालकी से गये थे। पेट्रोल साहब के भतीजा डॉ० चंद्रशेखर प्रसाद याद करते हुए बताते हैं कि बारात में बुंदिया, पूरी और मिठाई बनाया गया था जो उस समय बहुत मंहगा समझा जाता था। उन्हें अमरपुरा के बारात की जिम्मेदारी दी गयी थी किन्तु ये मना कर दिए क्योंकि इन्हें डर था कि अमरपुरा के चाई घराना के कुछ लोग बहुत चंचल और नटखट हैं
जो पुड़ी को पत्तल के नीचे छुपा कर बारात में झगडा करने की कोशिश करेंगे। हालांकि शादी में ऐसा कुछ नही हुआ और दोनों शादियाँ धूम धाम से हिन्दू रीति रिवाज से सम्पन्न हुई।
श्रीमती सुमित्रा देवी कम ऊंचाई की परन्तु गोरी, काफी सुन्दर और सरल स्वभाव की धार्मिक महिला हैं । इनके पिता श्रधेय श्री हरिशरण सिंह धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, वो रोज सुबह 4 बजे उठ जाते थे और नित्यकर्म से निवृत्त हो कर रामायण का सस्वर पाठ करते थे तथा घर के अन्य लोग भी साथ में बैठ कर पाठ किया करते थे। महिलाएं भी रात में सोने से पहले रामायण की चौपाई पढ़ा करती थी। यही कारण था कि श्रीमती सुमित्रा देवी भी धर्म परायण थी। इतनी सरल और सीधी हैं कि आज भी शायद ही किसी से ऊँची आवाज में बात भी नही करती हैं । श्रीमती सुमित्रा देवी अपने गाँव के स्कूल में पांचवी तक पढाई की थी। श्रीमती कुलवंती देवी याद करते हुए बताती है कि शादी होने के बाद जब वो घर आयी तो देखने में एकदम छुई मुई गुडिया के जैसी दिखती थी। आज भी वो जब भी उनसे मिलने आती हैं तो बैठने के लिए पीढ़ा देती है और
बिना कुछ खाए पिए वापस नहीं आने देती है । बड़े घर के संस्कार उनमे सहज ही दिख जाते हैं।