बिहार की राजधानी पटना के फुलवारी शरीफ़ से करीब 10 किलोमीटर दक्षिण नौबतपुर थाना में अमरपुरा गांव बसा है इसके दक्षिण तरफ नहर है और उत्तर तरफ नौबतपुर प्रखंड कार्यालय और मोहनिपोखर गाँव है पूर्व तरफ आरोपुर और अनंतपुर गांव है तो पश्चिम तरफ लख बाजार है यहां करीब 1000 परिवार रहते हैं जनसंख्या करीब 5000 है गांव में एक प्राथमिक विद्यालय, प्राथमिक चिकित्सा उपकेंद्र, मिडिल स्कूल और एक उच्च विद्यालय है |अमरपुरा से सटे मालतीधारी महाविद्यालय है |
यहां पिछड़ी जाति के लोग बहुसंख्यक हैं. यहाँ निवास करने वाले लोग कुशवाहा, कहार, कायस्थ, ब्राह्मण, कुम्हार, मोची, पासवान ,गड़ेरी, साव, पासी, कानू इत्यादि जाति से आते हैं | यहाँ कोई छुआछूत नहीं है | यहां भगवान शंकर का एक मंदिर है, ठाकुरबारी और देवी स्थान भी है यहां ज्यादातर लोग शाकाहारी है और अधिकतर लोग किसान है, किन्तु इधर
कुछ वर्षों में अनेक लोग सरकारी नौकरी में योगदान दिया है | यहां सभी लोग हिंदू धर्म को मानते हैं | हिंदू अंधविश्वास और कुरीतियों पर विश्वास नहीं करते कुछ लोग कृष्ण भक्त हैं. कुछ लोग ब्रह्मकुमारी से जुड़े हैं इसी प्रकार कुछ लोग गायत्री
परिवार पर विश्वास करते हैं तो कुछ शिव भक्त भी हैं |
जब नरेश बाबू का जन्म हुआ तब अपना देश अंग्रेजों का गुलाम था किंतु पांच साल बाद ही देश आजाद हो गया था | आपकी मां श्रद्धेया श्रीमती मुंगेश्वरी देवी गांधी जी के बारे में बताती थी कि उनके हाथ में लंबी लाठी होती थी और उनके हाथ लंबे थे उनके पास बकरी भी होती थी, गाँधी जी स्वतंत्रता आन्दोलन के समय लख बाजार से गुजरे थे | जब आपने होश
संभाला, कुछ समझने बूझने की शक्ति आई तो आप अपने को छः सात भाई बहनों के बीच भरा पूरा परिवार में पाया, बैल- भैंस, खेत- खलिहान | आप उन्हीं के साथ हो लिए जब कभी खेत में काम पर जाना होता तो सभी लोग खेत में चले जाते |
अमरपुरा गांव के दक्षिण से एक छोटी सी नहर (सोन नहर का ब्रांच) बाउंड्री की तरह है जो सन 1873-74 में बना, जो गांव और खेत को अलग करता है | सन उन्नीस सौ के आसपास इक्का-दुक्का को छोड़कर गांव के अधिकतर लोग कृषक या मजदूर थे |
आपका जन्म पिछड़ी वर्ग के कुशवाहा जाति के परिवार में हुआ था, कुशवाहा जाति को कोइरी भी कहा
जाता है | कुशवाहा जाति में भी आठ उप-वर्ग है – जरुहार, मगहिया, बनाठी भाम, बनाफर, छोटी दांगी,
बड़ी दांगी ,कनौजिया और चिरवैत | आप जरुहार उपजाति से आते हैं | लोग धान, ईख, मक्का, पालक,
बैगन, गेहूं, चना, आलू इत्यादि की खेती करते हैं | मुख्य भोजन में भात, दाल, रोटी, दूध-दही, सब्जी, लिट्टी-चोखा, अचार है |
आपके बाबूजी और चाचा श्रधेय श्री महेश महतो बहुत अच्छे और मेहनती किसान माने जाते थे। अपनी मेहनत के बल पर अपनी जमीन और खेती में बहुत बढ़ोतरी किये | नरेश बाबू के बचपन के मित्रों में श्रधेय श्री रजनधारी सिंह, श्रधेय श्री नरेन्द्र लाल, श्रधेय श्री चंद्रदेव वर्मा, श्रधेय श्री मंगल सिंह, श्रधेय श्री रामानंद वर्मा इत्यादि प्रमुख थे। बचपन में आप लोग गुल्ली-डंडा, चिक्का, डोल-पत्ता, फुटबॉल, कबड्डी इत्यादि खेला करते थे।
घर में पढाई- लिखाई का माहौल था, बड़े भाई श्रधेय श्री शीतल प्रसाद बचपन में आरोपुर गाँव के स्कूल में पढने जाते थे और फलतः उनके साथ बालक राजाराम और बालक नरेश बाबू भी पढने जाने लगे। बालक राजाराम बाबू को पढने में दिल नही लगता परन्तु बालक नरेश बाबू को पढ़ने का बड़ा शौक था। उनके समय में शिक्षक बहुत सख्त हुआ करते थे, और माता-पिता भी बच्चो को सख्ती से सुधारने में विश्वास रखते थे।
अब तक भारत को आजादी मिल चुकी थी, बच्चे कांग्रेस का चुनावी झंडा ले कर हल्ला मचाते थे क्योंकि और कोई पार्टी का नाम भी नही पता था। कुछ सालो बाद हुए पंचायत चुनाव में श्री सदाशिव लाल मुखिया चुने गये थे, उसी दौरान आपसी रंजिस के कारण गाँव के श्री तपसी महतो की हत्या हो गयी थी। आपके दोस्त, श्री शिवशमन तिवारी, जो उस समय 12 वर्ष के थे, याद करते हुए बताते हैं कि उस दिन उनके फुआ का मंडवा था और वे लोग बांस कटवाने गये थे, इसी बीच यह घटना घट गयी थी | श्रीमती कुलवंती देवी, श्री तपसी महतो की पुत्री, उस घटना को याद करते हुए भाव विह्वल हो जाती हैं, बोलती है कि “उनकेबाबूजी की हत्या अपने ही लोगो ने कर दी। भाग्य में यही लिखा था” ।