भारत एक कृषि प्रधान देश है, आपके घर का भी मुख्य व्यवसाय कृषि ही था। किन्तु जब आपके घर का मालिकाना हक़ पढ़े लिखे होने के कारण श्रधेय श्री शीतल प्रसाद को दे दिए गए, तो उन्होंने अन्य व्यवसाय को भी बढ़ावा दिया। घर के बाहरी हिस्से में परचून के दुकान खोल दिए गए । और उसका विस्तार करते हुए खाद भी बेचा जाने लगा। दुकान में सहयोग करने के लिए श्री बलराम महतो को रखा गया, जो बहुत स्वामिभक्त थे। दुसरे तरफ आपके छोटे चाचा श्रधेय श्री महेश
प्रसाद अपने बैलगाड़ी से ‘लदनी’ का काम करते थे, जो अपने गाँव और आसपास के गाँव से चावल, दाल इत्यादि खरीदकर चितकोहरा, मारुफगंज और दानापुर की मंडियों में बेचा करते थे। इसी बीच श्रधेय श्री शीतल प्रसाद ने होमियोपैथी दवा दुकान खोल लिया और साथ में अमरपुरा पोस्ट ऑफिस के पोस्टमास्टर भी बन गये। श्रधेय श्री राजाराम सिंह शुरू में
दरजी काम प्रारंभ किया और बाद में लखपर किताब और स्टेशनरी की दुकान चलाने के लगे।
इस तरह आपके घर में अनेक व्यवसाय चलने लगे, इसका परिणाम यह हुआ कि लखपर में जमीन खरीद कर घर बनाया गया और गाँव में भी कई खेत भी ख़रीदे गये। लखपर घर बनते ही श्रधेय श्री शीतल प्रसाद अपने परिवार के साथ लखपर रहने लगे। धीरे धीरे घर का मालिकाना श्रधेय श्री महेश महतो की पत्नी श्रद्धेया श्रीमती महेश्वरी देवी के हाथों में चला गया। जैसे श्रधेय श्री शीतल प्रसाद अपने मालिकांव में अपने नाम पर जमीन ख़रीदे थे वैसे ही श्रद्धेया श्रीमती महेश्वरी देवी भी अपने नाम से गाँव में जमीन खरीदी।
इसी तरह गाँव के अनेक परिवार खेती के अलावा अन्य काम भी करते थे, जिससे छोटे रकबा के मालिक होने के बावजूद सुखी थे। बाजार निकट होने से लोग कई तरह के व्यवसाय कर लेते थे। जैसे श्रधेय श्री बदरी महतो का अमरपुरा के
पश्चिमी छोर पर परचून की दुकान थी तो श्रधेय श्री लालबहादुर सिंह लखपर में मिठाई की दुकान चलाते थे। श्रधेय श्री महेश महतो लदनी के काम के साथ साथ पटुआ सन का रस्सी बनाया करते थे। स्त्रियाँ खेती में हाथ बटाया करती थी इसके अलावा घर में गाय भैस पाल कर उसका दूध दही मक्खन घी इत्यादि बनाया करती थी और गोबर का गोइठा बना कर
अतिरिक्त आमदनी कर लेती थी। औरते घरों में बकरियां भी पाला करती थी।