जब अंग्रेजों का शासन जोरों पर था और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी भी भारत को स्वतंत्र कराने के लिए एड़ी चोटी का
जोर लगा रहे थे. अंग्रेज एक तरफ द्वितीय विश्व युद्ध में फंसे थे तो दूसरी तरफ भारतीय स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों को नाकों चना चबवा रहे थे. उन्हीं दिनों जब 1942 के पहला सूर्योदय होने वाला था उसी समय पटना से 20 किलोमीटर पश्चिम बिहटा प्रखंड
के सरबदीपुर गांव में श्रधेय श्री जगन्नाथ महतो की बड़ी बेटी श्रद्धेया श्रीमती मुंगेश्वरी देवी के कोख से एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ जिसका नाम राम नरेश सिंह रखा गया | उनके अन्य चचेरे भाई का नाम श्री राम कथा के मुख्य पात्र श्री रामचंद्र जी से मिलता जुलता था, जैसे राम प्रसाद, राजा राम, रामाधार सिंह और राम से शुरू होता था | शायदआपके नाम भी “राम नरेश” रखने में इसी तुकबंदी का उपयोग किया गया होगा | आपके पिताजी श्रधेय श्री राम उग्रह सिंह थे जो पटना जिला के नौबतपुरप्रखंड के अम रपुरा गांव के रहने वाले थे |
सरबदीपुर में श्रधेय श्री जगन्नाथ महतो का परिवार साधारण कृषक परिवार था घर में भैंस बैल और बकरी
पाले जाते थे वे लोग खुद खेत में काम करते और अन्न का उत्पादन करते थे श्रधेय श्री जगन्नाथ महतो के तीन पुत्र थे. श्रधेय श्री रामेश्वरवर्मा, श्रधेय श्री योगेश्वर वर्मा, श्रधेय श्री वंशी महतो | और दो पुत्रियाँ श्रद्धेया श्रीमती मुंगेश्वरी देवी और श्रद्धेया श्रीमती सहोदर देवी थीं |
श्रद्धेया श्रीमती मुंगेश्वरी देवी की शादी लगभग सन1934 में सरवदीपुर से करीब 20 किलोमीटर दक्षिण पूरब के कोने
पर नौबतपुर के अमरपुरा ग्राम के पहलवान श्रधेय श्री दरबारी खलीफा के द्वितीय पुत्र श्रधेय श्री राम उग्रह सिंह के साथ हुआ था | यह इनकी दूसरी शादी थी, पहली शादी पितवास के पास तिसखोरा गांव के श्री ब्रह्मदेव वर्मा के घर में हुई थी; पहली पत्नी की मौत कम उम्र में हैजा के कारण हो गई थी |
श्रधेय श्री रामउग्रह सिंह के अलावा श्रधेय श्री दरबारी खलीफा के दो अन्य पुत्रों का नाम श्रधेय श्री भीख़म महतो और श्रधेय श्री महेश महतो था. अमरपुरा गांव का नाम इन्हीं के पूर्वज अमर के नाम पर है, जो ईस्वी सन सोलह सौ पचास के आसपास अपने पुत्र श्रधेय श्री डमर के साथ भोजपुर जिला के हरिपुर गांव से आकर यहां बसे थे उस समय यह जगह जंगल झाड़ियों से भरा था |
शुरू में इस गांव का नाम अमरपुर था जो बाद में अंग्रेजों के समय अमरपुरा कहलाने लगा, श्रधेय श्री दरबारी खलीफा के पिता का नाम ‘रेवती’ और उनके दादाजी का नाम ‘ जग्गू ’ था | श्रधेय श्री दरबारी खलीफा अपने समय के जाने-माने पहलवान थे कहा जाता है कि अपने पहलवानी के कारण अपने परिवार का भरण-पोषण के लिए उन्हें बहुत जमीन बेचने पड़े थे | कहा जाता है कि एक बार बगल के गांव छोटी टेंगरैला से नहर के पानी के लिए झगड़ा हो गया तो ‘दरबारी खलीफा’ अकेले ही पच्चीस फीट नहर को फांद कर अपने दुश्मनों को डंडा से पीटकर भगा दिए थे | इनके अलावा श्रीराम खलीफा, श्री बाला खलीफा जैसे अनेक पहलवान खानदान में थे.
श्रधेय श्री नरेश बाबू का परिवार एक किसान परिवार था आपका परिवार बहुत बड़ा था आप के बाबूजी तीन भाई थे बड़े भाई श्रधेय श्री भीखम महतो के चार पुत्र श्रधेय श्री शीतल प्रसाद, श्रधेय श्री राम प्रसाद, श्रधेय श्री राजा राम और श्रधेय श्री रामाधार सिंह हुए और दो पुत्रियाँ श्रद्धेया श्रीमती रामेश्वरी देवी और श्रद्धेया श्रीमती कामेश्वरी देवी थी | इस तरह बालक राम नरेश के चार भाई और दो बहनें थीं, जो इनसे बड़े थे | इसके अलावा आपके छोटे चाचा श्रधेय श्री महेश महतो के दो पुत्र श्री सुधीन्द्र कुमार और श्री राम सुजान सिंह तथा दो पुत्रियां श्रीमती ज्योति देवी और श्रीमती किरण बाला हैं |
श्रधेय श्री भीखम महतो अपने दो बेटों श्रधेय श्री रामप्रसाद और श्रधेय श्री रामाधार सिंह के साथ अपने ससुराल बेला गांव, जो
बिहटा से आठ किलोमीटर पूर्व दिशा में स्थित है, में रहते थे क्योंकि उन्हें ससुराल में तड़का मिला था और दो लड़के श्रधेय श्री
शीतल प्रसाद और श्रधेय श्री राजाराम अमरपुरा में ही रहते थे | श्रधेय श्री शीतल प्रसाद बहुत पढ़े-लिखे थे, वे अंग्रेजी
विषय में एम. ए. थे | वे हीं पूरा घर का हिसाब-किताब रखते थे, श्रधेय श्री दरबारी खलीफा के निधन केबाद वे घर के मालिक थे |
नरेश बाबू का बचपन अमरपुरा में ही बीता, वे कभी-कभार ही अपने ननिहाल जाते थे | ननिहाल में आपका अपने बड़े मामा श्रधेय श्री रामेश्वर वर्मा से बहुत लगाव रहा हालांकि आपके छोटे मामा श्रधेय श्री वंशीधर महतो अपने अंत समय
तक अमरपुरा आते रहे और अपनी बहन श्रद्धेया श्रीमती मुंगेश्वरी देवी का हाल- चाल लेते रहे थे | आपने भी अपने अंतिम
दिनों तक अपने ननिहाल से संबंध बनाए रखा. सरबदीपुर से आपके ममेरे भाई, श्री मोहन कुमार और श्री मणिनाथ वर्मा अमरपुरा आते रहे हैं |