*इस संसार का सृजन करने वाले परमपिता परमात्मा ने मनुष्य को सब कुछ दिया है , ईश्वर समदर्शी है उसने न किसी को कम दिया है और न किसी को ज्यादा | इस सृष्टि में मनुष्य के पास जो भी है ईश्वर का ही प्रदान किया हुआ है , भले ही लोग यह कहते हो कि हमारे पास जो संपत्ति है उसका हमने अपने श्रम और बुद्धि से प्राप्त
*चौरासी लाख योनियों में मानव जीवन को दुर्लभ कहां गया है क्योंकि यह मानव शरीर अनेक जन्मों तक कठोर तपस्या करने के बाद प्राप्त होता है | इस शरीर को पा करके मनुष्य अपने क्रियाकलाप एवं व्यवहार के द्वारा लोगों में प्रिय तो बनता ही है साथ ही मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है | अपने संपूर्ण जीवन काल में प्रत्येक
*मानव जीवन में विचारों का बड़ा महत्व है | विचारों की शक्ति असीम होती है | यहां व्यक्ति जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है क्योंकि उसके द्वारा हृदय में जैसे विचार किए जाते हैं उसी प्रकार कर्म भी संपादित होने लगते हैं क्योंकि विचार ही कर्म के बीज हैं , व्यवहार के प्रेरक हैं | जब मनुष्य व्यस्त होता है तो
*मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है , किसी परिवार में जन्म लेकर मनुष्य समाज में स्थापित होता है | इस जीवन क्रम में परिवार से लेकर समाज तक मनुष्य अनेको संबंध स्थापित करता है इन संबंधों का पालन बहुत ही कुशलता पूर्वक करना चाहिए | जिस प्रकार किसी भी विषय में सफलता के उच्च शिखर को प्राप्त कर लेने की अपेक्षा उस
*इस धरा धाम पर मनुष्य मनुष्य कहे जाने के योग्य तब होता है जब हमें मनुष्यता होती है | मनुष्य में मनुष्यता का जागरण तब होता है जब वह स्वयं के विषय में संसार के विषय में जानने लगता है | मनुष्य किसी भी विषय में तब कुछ जान पाता है जब उसमें जिज्ञासा होती है | मानव जीवन जिज्ञासा का होना बहुत आवश्यक है क्य
*ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि परिवर्तनशील है या यूँ कहें कि परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है | यहां एक जैसा कभी कुछ नहीं रह पाता है | सुबह सूर्य निकलता है शाम को ढल जाता है , सृष्टि के जितने भी सहयोगी हैं निरंतर गतिशील है | यदि गतिशीलता को जीवन एवं विराम को मृत्यु कहा जाय तो गलत नहीं है | जो रुक गया समझ ल
*इस जीवन में हम प्राय: संस्कृति एवं सभ्यता की बात किया करते हैं | इतिहास पढ़ने से यह पता चलता है कि हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता बहुत ही दिव्य रही है | भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्धि संस्कृति है , जहां अन्य देशों की संस्कृतियां समय-समय पर नष्ट होती रही है वहीं भारतीय संस्कृ
*इस संसार में जन्म लेने के बाद मनुष्य के अनेकों मित्र एवं शत्रु बनते देखे गए हैं , परंतु मनुष्य अपने सबसे बड़े शत्रु को पहचान नहीं पाता है | मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कहीं बाहर नहीं बल्कि उसके स्वयं के भीतर उत्पन्न होने वाला अहंकार है | इसी अहंकार के कारण मनुष्य जीवन भर अनेक सुविधाएं होने के बाद भी
*सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों में वर्णित एक एक शब्द मानव मात्र को दिव्य संदेश देता है | कोई भी साहित्य उठा कर देख लिया जाय तो उसने मानव मात्र के कल्याण की भावना निहित है | आदिभाषा संस्कृत में ऐसे - ऐसे दिव्य श्लोक प्राप्त होते हैं जिनके गूढ़ार्थ बहुत ही दिव्य होते हैं | ऐसा ही एक श्लोक देखते हैं कि ई
*इस संपूर्ण सृष्टि में परमात्मा ने एक से बढ़कर एक सुंदर रचनाएं की हैं | प्रकृति की छटा देखते ही बनती है , ऊंचे - ऊंचे पहाड़ , गहरे - गहरे समुद्र , अनेकों प्रकार की औषधियां , फूल - पौधे एवं अनेक प्रकार के रंग बिरंगी जीवो की रचना परमात्मा ने किया है जिन्हें देखकर बरबस ही मन मुग्ध हो जाता है और मन यही
*किसी भी राष्ट्र के निर्माण में युवाओं की मुख्य भूमिका होती है | जहां अपनी संस्कृति , सभ्यता एवं संस्कारों का पोषण करने का कार्य बुजुर्गों के द्वारा किया जाता है वहीं उनका विस्तार एवं संरक्षण का भार युवाओं के कंधों पर होता है | किसी भी राष्ट्र के निर्माण में युवाओं का
*सनातन धर्म भारतीय संस्कृति का मूल है | भारतीय संस्कृति , संस्कार एवं सभ्यता का उद्गम स्रोत सनातन धर्म ही है | सनातन धर्म नें मानव मात्र के लिए एक सशक्त मार्गदर्शक की भूमिका निभाई है | अनेक मान्यताओं , परंपराओं के साथ ही हमारे यहां माता-पिता का विशिष्ट स्थान बताया गया है | यदि जीवन में माता पिता क
*मानव जीवन विचित्रताओं से भरा हुआ है | मनुष्य के द्वारा ऐसे - ऐसे क्रियाकलाप किए जाते रहे हैं जिनको देख कर के ईश्वर भी आश्चर्यचकित हो जाता है | संपूर्ण जीवन काल में मनुष्य परिवार एवं समाज में भिन्न-भिन्न लोगों से भिन्न प्रकार के व्यवहार करता है , परंतु स्थिर भाव बहुत ही कम देखने को मिलता है | यह सम
*इस धराधाम पर मनुष्य जीवन कैसे जिया जाय ? मनुष्य के आचरण कैसे हो ? उसे क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए ? इसका समस्त वर्णन सनातन के धर्म ग्रंथों में देखने को मिलता है | जहां मनुष्य को अनेक कर्म करने के लिए स्वतंत्र कहा गया है वही कुछ ऐसे भी कर्म हैं जो इस संसार में है तो परंतु मनुष्य के लिए वर्ज
*भारतीय संस्कृति और सभ्यता में एक नाम बहुत ही सम्मान एवं श्रद्धा के साथ लिया जाता है जिसे गुरु या सद्गुरु कहा गया है | इस छोटे से नाम इतनी प्रभुता छिपी हुई है जिसका वर्णन स्वयं मैया शारदा एवं शेषनाग जी भी नहीं कर पा रहे हैं | गुरु को साक्षात परब्रह्म माना गया है यह मान्यता यूँ ही नहीं कही गई है बल्क
*इस धरती पर जन्म लेने के बाद मनुष्य अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में अनेकों लोगों से मिलता है जीवन के भिन्न - भिन्न क्षेत्र में भिन्न - भिन्न प्रकार के लोग मिला करते हैं जो कि जीवन में महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं | अनेक महत्त्वपूर्ण लोगों के बीच रहकर मनुष्य जीवन में सफलता - असफलता प्राप्त करता रहता है | जीवन
*भारत देश आदिकाल से अपनी संस्कृति , सभ्यता एवं संस्कारों के लिए जाना जाता रहा है | समय-समय पर यहां अनेकों महापुरुषों ने जन्म लेकर समाज को नई दिशा दिखायी है | समय - समय पर इस पुण्यभूमि में ईश्वर ने अनेकानेक रूपों में अवतार भी लिया है | इन्हीं महापुरुषों (भगवान) में एक थे रघुकुल के गौरव , चक्रवर्ती सम
*हमारे देश भारत में सदैव से विद्वानों का मान सम्मान होता रहा है | अपनी विद्वता के बल पर विद्वानों ने भारत देश का गौरव समस्त विश्व में बढ़ाया है | विद्वता का अर्थ मात्र पांडित्य का क्षेत्र न हो करके जीवन के अनेक विषयों पर पारंगत हो करके यह विद्वता प्राप्त की जाती है | किसी भी विषय का विद्वान हो वह अप
*सनातन धर्म के अनुसार इस ब्रह्मांड की रचना परमपिता परमात्मा किंचित विचार मात्र से कर दी | ईश्वर द्वारा सृजित इस ब्रह्मांड में अनेकों प्रकार के जीवो के साथ जड़ पदार्थ एवं अनेकों लोकों का वर्णन पढ़ने को मिलता है | मुख्य रूप से पंच तत्वों से बना हुआ यह ब्रह्मांड अंडाकार स्वरूप में है , इसमें जल की मात्
. *इस धरा धाम पर सभी योनियों में सर्वश्रेष्ठ मानव योनि कही गई है | मनुष्य यदि सर्वश्रेष्ठ हुआ है तो उसका कारण यही था कि मनुष्य ने अपने हृदय में मानवता का बीजारोपण किया है | मनुष्य के रूप में जन्म लेने मात्र से कोई मानव नहीं बन जाता है बल्कि होने के लिए परंपरागत मानवीय मूल्यों का होना परम