*इस धरा धाम पर मनुष्य मनुष्य कहे जाने के योग्य तब होता है जब हमें मनुष्यता होती है | मनुष्य में मनुष्यता का जागरण तब होता है जब वह स्वयं के विषय में संसार के विषय में जानने लगता है | मनुष्य किसी भी विषय में तब कुछ जान पाता है जब उसमें जिज्ञासा होती है | मानव जीवन जिज्ञासा का होना बहुत आवश्यक है क्योंकि जिज्ञासा ही जागरूकता का प्रमाण है , जिस मनुष्य में जिज्ञासा नहीं होती है वह जीवन के अंधकार में बैठा हुआ जीवन व्यतीत कर देता है | जीवन का मुख्य उद्देश्य होता है जीवन के तत्त्वों को जानना और जीवन के तत्वों को मनुष्य तभी जान सकता है जब उसके हृदय में सच्ची जिज्ञासा होगी | बिना जिज्ञासा के मनुष्य कुछ भी जानने के योग्य नहीं बन पाता है | संसार में जितने भी ज्ञान - दर्शन एवं नव निर्माण हुए उनके पीछे मनुष्य के हृदय में उत्पन्न हुई जिज्ञासा ही मूल है | मनुष्य के हृदय में उत्पन्न हुई जिज्ञासा मनुष्य को जिज्ञासु बनाती है उसी जिज्ञासा का समाधान प्राप्त होने के बाद मनुष्य को एक नवीन ज्ञान ज्ञान प्राप्त होता है और उस ज्ञान के माध्यम से मनुष्य अपने जीवन को सुव्यवस्थित करने का प्रयास करता है | प्रत्येक मनुष्य में जिज्ञासा अवश्य होना चाहिए , क्योंकि बिना जिज्ञासा के मानव जीवन नहीं जिया जा सकता है | भौतिक जीवन में अनेकों प्रकार की वस्तुएं हमें देखने को मिलती है जिन के विषय में हमको कोई ज्ञान नहीं होता है तब उसके प्रति मनुष्य के हृदय में जिज्ञासा उत्पन्न होती है | जब यह जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है तो मनुष्य उसके विषय में जानने के लिए आतुर हो जाता है संबंधित वस्तु के विषय में ज्ञान हो जाने के बाद ही वह उसके प्रयोग करने के योग्य बनता है | यदि यह कहा जाय कि जिज्ञासा मानव जीवन को शिखर पर ले जाती है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | जिज्ञासाविहीन मनुष्य मानव जन्म तो ले लेता है परंतु उसका जीवन सकारात्मक नहीं हो पाता | हम क्या है ? कहां से आए हैं ? यह संसार क्या है ?हमारे पूर्वजों के द्वारा बताए गए ज्ञान का अर्थ क्या है ? इन सब विषयों में मनुष्य को सहज जिज्ञासु होना चाहिए | जिसके हृदय में स्वयं के प्रति , संसार के प्रति जिज्ञासा का भाव नहीं होता है वह मनुष्य मनुष्य कहे जाने क् योग्य नहीं है |*
*आज हम संसार में जितने भी विकास देख रहे हैं उसका मूल कारण मनुष्य की जिज्ञासा ही है | मनुष्य ने पंछियों को ऊंचे गगन पर उड़ते हुए देखा तो स्वयं भी जिज्ञासु हो गया और उस उड़ने की कला को जानने के लिए उसने अथक प्रयास किया और उस अथक प्रयास का परिणाम आज यह निकला कि मनुष्य हवाई जहाज के माध्यम से आसमान में उड़ रहा है | ऐसे अनेक प्रयोग करके मनुष्य ने संसार को विकसित किया | कहने का तात्पर्य है कि जब तक मनुष्य में जिज्ञासा नहीं होगी तब तक वह जीवन में विकास नहीं कर सकता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि आज हम जितने भी सद्ग्रंथों का अध्ययन करते हैं वह सब किसी न किसी की जिज्ञासा के संदर्भ में ही लिखे गए हैं | किसी ने प्रश्न किया तो उसके उत्तर में ग्रन्थ तैयार हो गया | आज मनुष्य संसार के विषय में तो जानना चाहता है लेकिन अपने विषय में अपने धर्म एवं धर्मग्रंथों में प्राप्त अनेक रहस्यों के विषय में उसे कोई जिज्ञासा नहीं होती | अनेकों लोगों के माध्यम से जनजागृति के उद्देश्य से सत्संग काल का आयोजन होता है जिसमें जिज्ञासा आवाहित की जाती है परंतु मनुष्य का व्यवहार ऐसा होता है जैसे वह सब कुछ जान गया है और कुछ भी जानने की इच्छा से नहीं रह गई है | सत्य तो यह है कि जिस दिन मनुष्य के हृदय की जिज्ञासा समाप्त हो जाती है उसी दिन मनुष्य की मृत्यु हो जाती है क्योंकि जिज्ञासा ही जागरूकता का प्रमाण है | अनेकों मनुष्य ऐसे भी हैं जो ना तो स्वयं के विषय में जानना चाहते हैं और ना ही समाज एवं राष्ट्र के विषय में ऐसे मनुष्यों को समाज किनारे कर देता है | किसी भी जिज्ञासा से प्राप्त समाधान के माध्यम से मनुष्य में नए ज्ञान का संचार होता है और वह उस ज्ञान का अपने जीवन प्रयोग करता है और जीवन को सफलता की ऊंचाइयों पर ले जाता है | विचार कीजिए यदि हमारे पूर्वजों में जिज्ञासा ना हुई होती तो क्या आज इतना विकास जो हम देख रहे हैं वह संभव हो पाता ? शायद कभी नहीं ! इसलिए प्रत्येक मनुष्य को अपने धर्म-कर्म एवं गूढ़ विषयों के विषय में जिज्ञासु बनकर उसका समाधान प्राप्त करते रहना चाहिए अन्यथा जीवन निरर्थक हो जाता है |*
*मनुष्य के आस-पास एवं परिवार में अनेक क्रियाकलाप ऐसे भी होते हैं जहाँ उस विषय में उसको कुछ ज्ञान नहीं होता है परंतु उस क्रियाकलाप को देखने के बाद उसके प्रति जिज्ञासु हो जाता है | यही जिज्ञासा मनुष्य को मनुष्य बनाती है इसलिए प्रत्येक मनुष्य में जिज्ञासा का होना परम आवश्यक है |*