*चौरासी लाख योनियों में मानव जीवन को दुर्लभ कहां गया है क्योंकि यह मानव शरीर अनेक जन्मों तक कठोर तपस्या करने के बाद प्राप्त होता है | इस शरीर को पा करके मनुष्य अपने क्रियाकलाप एवं व्यवहार के द्वारा लोगों में प्रिय तो बनता ही है साथ ही मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है | अपने संपूर्ण जीवन काल में प्रत्येक मनुष्य सफलता की ऊंचाइयों को छूना चाहता है | किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए मनुष्य को अपने व्यवहार में सकारात्मकता तो लानी ही पड़ती है साथ ही मनुष्य के सफलता का प्रमुख सूत्रधार उसके बोलने की कला होती है | जिस मनुष्य में बोलने की कला नहीं होती वह अपने जीवन में कदापि सफल नहीं हो सकता है | कब ? कहां ? कैसी बात रखनी है , कैसी भाषा का प्रयोग करना है यह जो नहीं सीख पाया वह अपने जीवन में सब कुछ सीख लेने के बाद भी शून्य ही रह जाता है | मनुष्य को मर्यादा का पालन करने की शिक्षा दी जाती है , मनुष्य की मर्यादा में प्रमुख होती है वाणी की मर्यादा | मनुष्य को देश , काल , परिस्थिति के अनुसार ही वाणी का प्रयोग करना चाहिए अन्यथा मनुष्य स्थान - स्थान पर अपमानित एवं तिरस्कृत होता रहता है | कभी - कभी मनुष्य यह समझ लेता है कि मैंने सब कुछ सीख लिया है और मैं विद्वान हो गया हूं जब मनुष्य के अंदर यह भाव प्रकट होता है तो उसने अहम् भाव स्वयं प्रकट हो जाता है और मनुष्य अपने अहम में यह भूल जाता है कि हमें कहां कैसा वक्तव्य देना है और वह अनर्गल प्रलाप करने लगता है और यही अनर्गल प्रलाप मनुष्य को किसी भी समाज से उठाकर बाहर फेंक देता है | इसीलिए हमारे विद्वानों ने बताया है कि मनुष्य को सदैव ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जो स्वयं के साथ दूसरों को भी प्रिय लगे | यद्यपि मनुष्य स्वयं के अनुसार हमेशा अच्छा ही बोलता है परंतु यहां बात स्वयं की नहीं है मनुष्य को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि मेरी वाणी स्वयं के अतिरिक्त दूसरों को भी प्रिया लगे | जो मनुष्य इस बात का आकलन करके वाणी का प्रयोग करता है वह जीवन में सफलता की ऊंचाइयों को छूता चला जाता है | मनुष्य का परिचय उसकी वाणी के माध्यम से ही होता है | अपनी वाणी के माध्यम से ही काली कोयल भी सबको प्रिय होती है , उसकी कर्णप्रिय वाणी सबके ही मन को मोहित करती है | मनुष्य भी वाणी के माध्यम से ही परिवार व समाज में प्रिय तथा अप्रिय बन जाता है इसलिए सदैव अपनी वाणी का प्रयोग करने के पहले यह ध्यान अवश्य देना चाहिए कि हम जो बोल रहे हैं उसका प्रभाव क्या होगा , यही आकलन जब मनुष्य नहीं कर पाता है तो वह समस्त योग्यताओं के बाद भी असफल हो जाता है |*
*आज समाज में शिक्षा का स्तर बढ़ा है उच्च शिक्षा प्राप्त करके लोग समाज में स्थापित हो रहे हैं परंतु इसके साथ ही ही आज यह भी देखने को मिल रहा है कि लोगों ने बोलने की कला सीखना उचित नहीं समझा | जिसकी जहां जैसी इच्छा होती है वैसा वक्तव्य दे रहा है और यही कारण है कि आज समाज में वैमनस्यता फैल रही है | बड़े बड़े आयोजनों एवं टीवी के माध्यम से उच्च पदों पर बैठे हुए लोग ऐसे वक्तव्य दे रहे हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि हमारा देश पुन: एक विभाजन की ओर अग्रसर हो रहा है | इन महानुभावों को अपनी वाणी पर संयम नहीं है यही कारण है कि आज जगह-जगह ऐसी भाषा का प्रयोग हो रहा है जो कि कदापि नहीं होना चाहिए | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि ईश्वर ने सुंदर वाणी प्रदान की है और इस जिह्वा को बत्तीस दांतो के बीच में कैद करके होंठ रूपी तराजू बना दी है इसलिए प्रत्येक मनुष्य को हमेशा अपनी वाणी स्वयं में तोलना चाहिए और तोड़ने के बाद यदि उसे उचित लगे कि हमारा वक्तव्य सकारात्मक है तभी बोलना चाहिए नहीं तो परिणाम कभी भी सकारात्मक नहीं हो सकते | अनेकों लोग अपने परिवार में अनर्गल भाषा का प्रयोग करते हैं जिससे कि आने वाली पीढ़ियां संस्कार विहीन हो रही है | मनुष्य एक समान व्यवहार प्रत्येक स्थान पर करना चाहता है परंतु यह सत्य है कि जिस भाषा का प्रयोग मनुष्य अपने मित्रों के साथ बैठकर कर लेता है उस भाषा का प्रयोग अपने परिवार में नहीं कर सकता और ना ही करना चाहिए परंतु यही आकलन ना कर पाने के कारण मनुष्य अनर्गल प्रलाप किया करता है और जिसके कारण अपमानित भी होता है | यदि जीवन में सफल होना है तो सब कुछ सीखने के साथ-साथ मनुष्य को बोलने की कला भी सीखनी होगी जिसके पास बोलने की कला नहीं है वह सब कुछ सीख लेने के बाद भी समझ लो कि कुछ नहीं सीख पाया |*
*वाणी के माध्यम से मनुष्य हिंसक पशुओं को भी अपने वश में कर सकता है और इसी वाणी का जब नकारात्मक प्रयोग होता है तो मनुष्य अपने प्रिय जनों से भी दूर हो जाता है | इसलिए वाणी का प्रयोग सदैव सोच समझ कर करना चाहिए |*