. *इस धरा धाम पर सभी योनियों में सर्वश्रेष्ठ मानव योनि कही गई है | मनुष्य यदि सर्वश्रेष्ठ हुआ है तो उसका कारण यही था कि मनुष्य ने अपने हृदय में मानवता का बीजारोपण किया है | मनुष्य के रूप में जन्म लेने मात्र से कोई मानव नहीं बन जाता है बल्कि होने के लिए परंपरागत मानवीय मूल्यों का होना परम आवश्यक है , और यह माननीय मूल्य मनुष्य को संस्कृति , सभ्यता और संस्कारों की त्रिवेणी में स्नान करने के प्रयाश के बाद ही प्राप्त हो सकता है | जब तक इन तीनों का संगम मनुष्य के हृदय में नहीं होता है तब तक मनुष्य होने के बाद भी मनुष्य को मनुष्य नहीं कहा जा सकता | जब तक मनुष्य स्वयं अपने राष्ट्र , समाज एवं परिवार की संस्कृति , सभ्यता एवं संस्कार को स्वयं में आत्मसात नही करता है तब तक वह मनुष्य होने के बाद भी मनुष्य कहे जाने के योग्य नहीं हो पाता | ज्ञान का प्रकाश संपूर्ण धरा धाम पर फैला हुआ है परंतु मात्र लौकिक ज्ञान के आधार पर मानव विकास संभव नहीं है | मनुष्य की वास्तविक पहचान उसके संस्कारों , सभ्यता एवं संस्कृति से ही होती है | हमारे संस्कार , संस्कृति , हमारी सभ्यता इतनी दिव्य रही है कि इसका संपूर्ण विश्व में कोई जोड़ नहीं है | भारतीय संस्कारों को मनुष्य ने जितना ही आत्मसात किया है उसने उतना ही परमानन्द भी प्राप्त किया है इन संस्कारों का ही प्रभाव रहा है कि अनेकों महापुरुषों आत्मसाक्षात्कार करते हुए इस संसार को अनुपम ज्ञान प्रदान किया है , जिसे हृदयंगम करने के बाद कोई शंका , जिज्ञासा शेष नहीं बचती है | जिसने भी भारतीय संस्कारों , सभ्यता एवं संस्कृति को पूर्ण रूप से आत्मसात किया वह पूर्णता को प्राप्त करके पुण्यात्मा हो गया और कालांतर में मोक्ष को प्राप्त हुआ | मानव जीवन में संस्कार व संस्कृति का वह महत्व है जिससे विवेक जागृत होता है और यह मात्र लौकिक व पुस्तकीय ज्ञान शक्ति के बल पर नहीं हो सकता | संस्कारों से च्युत मात्र पुस्तकीय ज्ञान मनुष्य में वासनायें उत्पन्न करता है और यही वासना मनुष्य को विनाश की ओर ले जाती है | इसलिए ज्ञान के साथ-साथ अपनी सभ्यता , संस्कृति एवं संस्कारों का भी ज्ञान होना परम आवश्यक है |*
*आज समाज में शिक्षा का स्तर बहुत बढ़ा है परंतु उसके साथ ही थी संस्कारों का लोप भी होता चला जा रहा है जो कि भारत के भविष्य के लिए कदापि उचित नहीं है | मनुष्य जिस परिवार या देश में जन्म लेता है उसी के अनुसार इसमें संस्कारों का बीजारोपण होना चाहिए जो कि आज नहीं हो पा रहा है | आज मनुष्य अपनी संतानों को अधिक से अधिक विद्या तो अर्जन कराना चाहता है परंतु संस्कार नहीं दे पा रहा है | आज मनुष्य अपनी पुरातन संस्कृति , सभ्यता एवं आदर्शों को भूलता चला जा रहा है जिससे हमारी आने वाली युवा पीढ़ी इन संस्कारों से दूर होती जा रही है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज यह कह सकता हूं कि पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव ने हमारे संस्कारों का विनाश कर दिया है इसलिए आज समाज में अनेक प्रकार की घटनाओं का स्तर बढ़ता जा रहा है | आज मानवता रो रही है | आज मानव मानवता की हदों को पार करता हुआ दिखायी पड़ रहा है जिसका परिणाम दिन - प्रतिदिन देश में घट रही अनेक प्रकार की घटनाओं के रूप में हम देख रहे हैं | अपने संस्कारों के बल पर ही भारत महान बना था परंतु आज हम अपनी सभ्यता , संस्कृति एवं संस्कारों को स्वयं मिटाने पर तुले हुए हैं | जब तक मनुष्य में संस्कार नहीं होंगे तब तक लौकिक एवं पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त कर लेना मानव जीवन एवं मानवता के लिए व्यर्थ ही है |*
*किसी भी देश की सभ्यता , संस्कृति और संस्कार को उस देश के परिवेश का दर्पण कहा जा सकता है परंतु आज हमारा दर्पण धुंधला होता जा रहा है | इस पर विचार करने की आवश्यकता है |*