*इस संपूर्ण सृष्टि में परमात्मा ने एक से बढ़कर एक सुंदर रचनाएं की हैं | प्रकृति की छटा देखते ही बनती है , ऊंचे - ऊंचे पहाड़ , गहरे - गहरे समुद्र , अनेकों प्रकार की औषधियां , फूल - पौधे एवं अनेक प्रकार के रंग बिरंगी जीवो की रचना परमात्मा ने किया है जिन्हें देखकर बरबस ही मन मुग्ध हो जाता है और मन यही विचार करने पर विवश हो जाता है कि जिसने इतनी सुंदर - सुंदर रचनाएं की हैं भला वह कितना सुंदर होगा ? सबसे बड़ी बात यह है कि परमात्मा द्वारा इन मनमोहक दृश्यों का दर्शन करने एवं इस विशाल साम्राज्य का उपभोग करने के लिए परमात्मा ने मनुष्य के सुंदर शरीर का निर्माण किया और मनुष्य ने ईश्वर द्वारा प्रदत विशिष्ट विवेक के द्वारा इस सृष्टि का उचित ढंग से उपभोग भी किया | ईश्वर की सुंदर रचना को और सुंदर बनाने में आदिकाल से ही सतत प्रयत्नशील रहा तो इसका एक मुख्य कारण यह था कि मनुष्य को अपनी मर्यादाओं का ज्ञान था | अपने पूर्वजों के द्वारा प्राप्त संस्कार एवं अपनी दिव्य संस्कृति का संरक्षण एवं उसमें सतत वृद्धि का प्रयास हमारे पूर्वजों ने बहुत ही सुंदर ढंग से किया | हमारे वैदिक वैज्ञानिकों ने मनुष्य को जीवन जीने में सहायक अनेक अनुसंधान करने का ढंग सिखाया | जिस प्रकार ईश्वर द्वारा बनाई हुई है प्रकृति अपनी मर्यादा में रहकर के सतत सहयोगी की भूमिका में मानव मात्र के लिए सदैव तत्पर रही है उसी प्रकार मनुष्य ने भी अपनी मर्यादा का पालन करते हुए प्रकृति के संरक्षण का प्रयास किया है जिससे प्रकृति कभी भी विनाशकारी नहीं होती थी , परंतु धीरे-धीरे समय परिवर्तित हुआ और हम आधुनिक युग में आ गए और मनुष्य अपने संस्कार तथा अपनी मर्यादा को तिलांजलि देने लगा | जिसका परिणाम भी आज देखने को मिल रहा है |*
*आज आज हम जिस युग में जीवन यापन कर रहे हैं उसे आधुनिक युग कहा जाता है | आज मनुष्य आधुनिकता के नाम पर समस्त मर्यादाओं का उल्लंघन करते हुए देखा जा सकता है | परिवार से लेकर समाज तक राष्ट्र से लेकर समस्त विश्व तक में आज मर्यादा का लोप होता दिखाई पड़ रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" नि:संकोच कह सकता हूं कि आज समाज में कुछ लोगों को छोड़ दिया जाए तो प्राय: लोगों ने अपने संस्कार , संस्कृति , सभ्यता एवं मर्यादा का त्याग कर दिया है | प्रकृति के संरक्षण में मुख्य भूमिका निभाने वाला मनुष्य ही प्रकृति को नष्ट करने में लगा हुआ है यही कारण है कि आज प्रकृति भी मर्यादित नहीं रह गई है | सीधी सी बात है हम किसी को जो देंगे वही हमको वापस मिलेगा जिस प्रकार का व्यवहार आज मनुष्य प्रकृति के साथ कर रहा है उसी प्रकार का व्यवहार प्रकृति मनुष्यों के साथ कर रही है इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए | मनुष्य ने अपनी मर्यादा की समस्त सीमाएं तोड़ दी हैं | लगभग प्रत्येक घर में आज संस्कार की अपेक्षा अमर्यादित भाषा एवं व्यवहार अधिकतर देखा जा रहा है |विचार कीजिए ईश्वर ने इतनी सुंदर सृष्टि की रचना करके सुंदर मानव शरीर दिया है और उसे पाकर भी यदि हम अपने संस्कारों का पालन नहीं कर पा रहे हैं और दुखी हो रहे हैं तो इसमें ईश्वर का क्या दोष है ? परंतु मनुष्य अमर्यादित होते हुए भी स्वयं का दोष नहीं मानना चाहता है यही मनुष्य के दुख का कारण है | अपनी मर्यादा के भीतर रहकर जीवन यापन करने वाला कभी दुखी नहीं हो सकता यह सत्य है कि उसके ऊपर संकट आ सकता है लेकिन वह दीर्घ नहीं होगा क्योंकि सत्य परेशान हो सकता है परंतु पराजित नहीं |*
*मानव जीवन मेंमर्यादा का होना बहुत ही आवश्यक है | परिवार की मर्यादा , समाज की मर्यादा राष्ट्र की मर्यादा आदि मनुष्य तभी संभाल पाएगा जब उसके पास वाणी की मर्यादा होगी |*