*इस धरती पर जन्म लेने के बाद मनुष्य अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में अनेकों लोगों से मिलता है जीवन के भिन्न - भिन्न क्षेत्र में भिन्न - भिन्न प्रकार के लोग मिला करते हैं जो कि जीवन में महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं | अनेक महत्त्वपूर्ण लोगों के बीच रहकर मनुष्य जीवन में सफलता - असफलता प्राप्त करता रहता है | जीवन में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण कौन व्यक्ति है कभी - कभी यह निर्णय करना कठिन लगता है | वैसे तो जीवन में सभी कुछ न कुछ महत्त्व रखते हैं परन्तु यदि धर्म ग्रंथों एवं समाज की ओर देखा जाय तो एक मनुष्य के लिए जीवन में सबसे महत्वपूर्ण होते हैं उनके माता-पिता क्योंकि यदि माता-पिता ना होते तो मनुष्य का जन्म शायद ही हो पाता | माता पिता के महत्व को समझने में संपूर्ण आयु मनुष्य व्यतीत कर देता है परंतु उनके ऋण से उऋण नहीं हो पाता | माता पिता ने जन्म दिया उसके बाद मनुष्य परिवार से बाहर निकल कर जब समाज को जानने के लिए बाहर निकलता है तो जीवन में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है गुरु का , जो मनुष्य को मानवता के सांचे में डालकर के उसको अनेक प्रकार के ज्ञान से परिपूर्ण करता है | जीवन में मनुष्य कितना भी महान हो जाय परंतु अपने माता पिता एवं गुरु के ऋण से कभी भी उऋण नहीं हो सकता | माता पिता ने यदि जन्म दिया है तो गुरु मनुष्य को ज्ञान दे करके समाज के योग्य बनाता है | जिसने भी इनके महत्व को ना जान करके इनको उपेक्षित एवं अपमानित करके अन्य महत्वपूर्ण लोगों को महत्त्व देने का प्रयास किया है वे अपने जीवन कभी भी सफल नहीं हो सकते | पूर्वजन्म के किसी कृत्य के कारण यदि वह सफल हो भी जाते हैं तो उनके भीतर कुछ रिक्तता जीवन भर बनी ही रहती है | माता-पिता एवं गुरू को देवताओं की संज्ञा दी गई है परंतु मनुष्य अपने अहंकार में इनको उपेक्षित करके सम्मान प्राप्त करना चाहता है तो इससे बड़ी मूर्खता और क्या हो सकती है ??*
*आज के प्रतिस्पर्धी युग में मनुष्य तेजी से एक दूसरे से आगे निकलने के लिए सतत प्रयासरत रहता है | अपने इस प्रयास में वह इतना अंधा हो जाता है कि अपने जन्मदाता माता पिता एवं मार्गदर्शक गुरु को भी उपेक्षित कर देता है | जीवन में कुछ प्राप्त कर लेने पर वह बड़े अभिमान से कहता है कि आज जो मैं हूं अपने बल पर हूं इसमें मेरे माता-पिता या सद्गुरु का कोई सहयोग नहीं है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसे मूर्खों से पूंछना चाहता हूं कि आज यदि वे समाज में स्थापित हुए हैं तो उसमें माता-पिता एवं गुरू के सहयोग को भला कैसे अनदेखा किया जा सकता है ? आज समाज में ऐसे अनेक लोग यत्र तत्र सर्वत्र दिखाई पड़ रहे हैं जो अपने लिए सबसे महत्वपूर्ण माता-पिता का त्याग करके अन्य लोगों को महत्वपूर्ण पद पर बिठाकर उनकी पूजा कर रहे हैं | अनेक लोग ऐसे भी हैं जो अपने मार्गदर्शक गुरु को भी ज्ञान देने का प्रयास करते हैं | कुछ लोग जो स्वयं को अधिक बुद्धिमान समझते हैं उनके द्वारा प्राय: ऐसे वक्तव्य सुनने को मिल जाते हैं कि मेरे माता पिता मुझसे ईर्ष्या करने लगे हैं , हमारे मार्गदर्शक गुरु हमारी प्रगति नहीं देख पा रहे हैं | विचार कीजिए जिसने अपने हृदय से तुमको पैदा किया , अपना रक्त पिलाकर तुमको पाला , वह भला तुमसे ईर्ष्या क्यों करेंगे ? जिस गुरु ने तुमको अपना परम शिष्य मान करके शिक्षा दी वह तुम्हारी प्रगति से भला कैसे दुखी हो सकता है ? परंतु आज समाज में विद्वता एवं बुद्धिमत्ता अपनी पराकाष्ठा पर है | ऐसे ही लोग समाज को मार्गदर्शन देने के लिए उच्चपीठों पर बैठे हुए हैं | जो स्वयं अपना संस्कार भूल गया है वह दूसरों को क्या संस्कार देगा ? यह विचार करने की बात है |*
*माता-पिता एवं गुरू का महत्व एक मनुष्य के जीवन में सबसे ज्यादा होना चाहिए , क्योंकि इन्होंने ही अपने अथक परिश्रम से मनुष्य को समाज में स्थापित किया है |*