*सनातन धर्म के अनुसार इस ब्रह्मांड की रचना परमपिता परमात्मा किंचित विचार मात्र से कर दी | ईश्वर द्वारा सृजित इस ब्रह्मांड में अनेकों प्रकार के जीवो के साथ जड़ पदार्थ एवं अनेकों लोकों का वर्णन पढ़ने को मिलता है | मुख्य रूप से पंच तत्वों से बना हुआ यह ब्रह्मांड अंडाकार स्वरूप में है , इसमें जल की मात्रा अधिक है , जल से भी दस गुना अग्नितत्त्व , अग्नि से दस गुना वायु माना गया है , वायु से दस गुना इस ब्रह्मांड को आकाश ने घेर रखा है , और जहां तक यह आकाश प्रकाशित होता है वहां से दस गुना तामस अंधकार से यह ब्रह्मांड घिरा हुआ है | सनातन धर्म के अनुसार मुख्य रूप से तीन लोक चौदह भुवन एवं नौ ग्रहों को आधार मानकर के सृष्टि की रचना की गई है | उत्पत्ति पालन और प्रलय जिसमें निहित है उसे मृत्युलोक कहा गया है | कुल मिलाकर सात प्रकार के दिव्य लोक हैं जिन्हें देवलोक की संज्ञा दी गई है | पृथ्वी के नीचे छह प्रकार के पाताल बताये गये जो अधोलोक कहे गए हैं , आम बोलचाल की भाषा में जिन्हें नर्क कहा जाता है | नवग्रह के माध्यम से समस्त सृष्टि चलायमान होती है | मनुष्य के द्वारा जब सत्कर्म किए जाते हैं तो उसकी निरंतर उन्नति होती रहती है और ऐसा माना जाता है कि मृत्योपरांत वह उन्नति करता हुआ ऊपर के लोकोंं को प्राप्त करता है , और जिस मनुष्य के कर्म निकृष्ट है वह अपने जीवन में निरंतर पतनशील कर्म क्या करता रहता है वह मृत्योपरांत अधो लोक को प्राप्त होता है | यह चौदह लोक क्रमशः :- भूर्लोक , भुवर्लोक , स्वर्लोक , महर्लोक , जन:लोक , तप:लोक एवं सत्यलोक आदि ऊपर के लोक माने गए हैं , इसके अतिरिक्त अतल , वितल , सुतल , रसातल , तलाताल , महातल एवं पाताल अधोलोक कहे गए हैं | इन्हीं चौदह लोकों में जीव भ्रमण किया करता है | इसके अतिरिक्त मानव जीवन को प्रभावित करने वाले नवग्रह बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं | इन सब को मिलाकर के ईश्वर ने इस रहस्यमयी सृष्टि का सृजन किया है , जिस के रहस्य को आज तक कोई भी समझने वाला नहीं दिखाई पड़ा | वैज्ञानिकों ने अनेकों प्रयास किए परंतु वह भी आज तक ब्रह्मांड के रहस्यों को खोजने में असफल ही रहे हैं | जिस प्रकार वह ईश्वर प्रकट होते हुए भी अदृश्य रहता है उसी प्रकार इसी ब्रह्मांड में रहते हुए भी हम आज तक इस ब्रह्मांड के रहस्य को जान पाने में सक्षम नहीं हो पाये हैं | यही ईश्वर की व्यापकता है |*
*आज के आधुनिक युग में मनुष्य वैज्ञानिक विधा से अनेकों बार प्रयास करने के बाद भी इस ब्रह्मांड के रहस्य को नहीं जान पाया है | सत्य तो यह है कि किसी को भी यदि इस ब्रह्मांड के रहस्य को जानना है तो उसे सनातन धर्म के ग्रंथों का अध्ययन करना पड़ेगा , क्योंकि सनातन धर्म के ग्रंथ स्वयं में किसी विज्ञान से कम नहीं है | ब्रह्मांड का अध्ययन करने वाला मनुष्य यदि स्वयं अपने शरीर का अध्ययन करें तो ब्रह्मांड के रहस्य को जानने में सक्षम हो सकता है | मानव का शरीर एवं इसकी रचना बहुत ही विचित्र है और अपने ही शरीर का रहस्य आज तक मनुष्य नहीं जान पाया है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" सनातन धर्म के दिव्य ग्रंथों के अध्ययन के आधार पर इतना कह सकता हूं कि संपूर्ण ब्रह्मांड मानव शरीर के अंदर समाहित है | चौदह लोकों का रहस्य जानने के लिए आतुर मनुष्य को अपने शरीर में चौदह लोकों का दर्शन करना चाहिए | सनातन धर्म के अनुसार मनुष्य के दाएं पैर में अतल , एड़ी में वितल , घुटने में सुतल , जंघा में रसातल , गुह्य अर्थात पार्श्व भाग में तलाताल , गुदा भाग में महातल , मध्य भाग में पाताल , नाभि स्थल में भूलोक , उदर में भुवर्लोक , मनुष्य के हृदय में स्वर्लोक , भुजाएं महर्लोक , मुख जन:लोक , ललाट में तपोलोक एवं सिर में सत्यलोक का दर्शन करना चाहिए | पृथ्वी पर सप्तद्वीप का वर्णन हमारे ग्रंथों में पढ़ने को मिलता है | यह सभी द्वीप भी मनुष्य के शरीर में बताए गए हैं | जैसे अस्थियां जंबूद्वीप , मेधा शाकद्वीप , मांसपेशियां कुशद्वीप नसें क्रौञ्चद्वीप , त्वचा शाल्मलिद्वीप , केश प्लक्षद्वीप , नख पुष्करद्वीप के नाम से जाने जाते हैं | मानव शरीर के भीतर लोक , पर्वत और समुद्र ही नहीं बल्कि ग्रहों के भी नाम समाहित हैं | मुख्य रूप से मानव शरीर में दो चक्र माने गए हैं जिन्हें नाद चक्र एवं बिंदु चक्र कहा जाता है | नाद चक्र में सूर्य , विन्दु चक्र में चंद्रमा , नेत्रों में अंगारक अर्थात मंगल , हृदय में बुद्ध , वाणी में गुरु , शुक्राणुओं में शुक्र , नाभि में शनि , मुख में राहु और कानों में केतु का निवास माना गया है | इस प्रकार मनुष्य यदि अपने शरीर का रहस्य जान जाय तो ब्रह्मांड के रहस्य को जानने में उसे किंचित भी परेशानी नहीं हो सकती है , परंतु आज लोगों ने सनातन धर्म के ग्रंथों का अध्ययन बंद कर दिया है इसीलिए उन्हें मानव शरीर के रहस्य का ज्ञान नहीं हो पा रहा है | जिसे अपने शरीर का ज्ञान नहीं हो पाएगा वह ब्रह्मांड के रहस्य को कैसे जान पाएगा | यह विचारणीय विषय है |*
*जिस प्रकार ब्रह्मांड एक अबूझ पहेली है उसी प्रकार मनुष्य का शरीर भी अनेकों प्रकार की बिचित्रता स्वयं में समाहित किए हुए हैं | मनुष्य के भीतर भूमंडल और ग्रह मंडल के अतिरिक्त समस्त ब्रह्मांड समाहित है | यदि ब्रह्मांड के रहस्य को जानना है तो सर्वप्रथम अपने शरीर के रहस्य को जानना होगा और शरीर का रहस्य जानने के लिए सनातन के धर्मग्रन्थों का अध्ययन ही एकमात्र उपाय है |*