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जीवनदर्शन

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*इस संसार में जन्म लेने के बाद मनुष्य कथा - प्रवचन / सतसंग के माध्यम से सद्गुरुओं के मुखारविन्द से प्राय: सुना करता है कि "ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्या" अर्थात :- ब्रह्म ही सत्य है शेष सारा संसार छूठा है | दूसरा शब्द सुनने को मिलता है कि "एको ब्रह्म द्विती

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*इस संसार परमात्मा ने अनेकानेक जीवो का सृजन किया | पशु - पक्षी ,कीड़े - मकोड़े और जलीय जंतुओं का सृजन करने के साथ ही मनुष्य का भी सृजन परमात्मा ने किया | सभी जीवो में समान रूप से आंख , मुख , नाक , कान एवं हाथ - पैर दिखाई देते हैं परंतु इन सब में मनुष्य को उस परमात्मा

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❌ *इस संसार परमात्मा ने अनेकानेक जीवो का सृजन किया | पशु - पक्षी ,कीड़े - मकोड़े और जलीय जंतुओं का सृजन करने के साथ ही मनुष्य का भी सृजन परमात्मा ने किया | सभी जीवो में समान रूप से आंख , मुख , नाक , कान एवं हाथ - पैर दिखाई देते हैं परंतु इन सब में मनुष्य को उस परमात्मा ने एक अमोघ शक्ति के रूप में बु

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*ईश्वर ने सृष्टि में सबके लिए समान अवसर प्रदान किये हैं , एक समान वायु , अन्न , जल का सेवन करने वाला मनुष्य भिन्न - भिन्न मानसिकता एवं भिन्न विचारों वाला हो जाता है | किसी विद्यालय की कक्षा में अनेक विद्यार्थी होते हैं परन्तु उन्हीं में से कोई सफलता के उच्चशिखर को छू लेता है तो कोई पतित हो जाता है |

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*इस धराधाम पर परमपिता परमात्मा ने जलचर , थलचर नभचर आदि योनियों की उत्पत्ति की | कुल मिलाकर चौरासी लाख योनियाँ इस पृथ्वी पर विचरण करती हैं , इन सब में सर्वश्रेष्ठ योनि मनुष्य को कहा गया है क्योंकि जहां अन्य जीव एक निश्चित कर्म करते रहते हैं वही मनुष्य को ईश्वर ने विवेक दिया है , कोई भी कार्य करने के

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*सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का वर्णन मिलता है इन संस्कारों में एक महत्वपूर्ण संस्कार है विवाह संस्कार | मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद वैवाहिक संस्कार महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि सनातन धर्म में बताए गए चार आश्रम में सबसे महत्वपूर्ण है गृहस्थाश्रम | गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिए विवाह संस

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*परमात्मा के द्वारा मैथुनी सृष्टि का विस्तार करके इसे गतिशील किया गया | मानव जीवन में बताये गये सोलह संस्कारों में प्रमुख है विवाह संस्कार | विवाह संस्कार सम्पन्न होने के बाद पति - पत्नी एक नया जीवन प्रारम्भ करके सृष्टि में अपना योगदान करते हैं | सनातन धर्ण के सभी संस्कार स्वयं में अद्भुत व दिव्य रह

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*उत्पत्ति - पालन और प्रलय ही सृष्टि की गतिशीलता का उदाहरण है | जो भी प्राणी इस संसार में जन्मा है उसकी मृत्यु निश्चित है | इस धरा धाम पर जन्म लेने के बाद प्राणी विशेषकर मनुष्य अपने जीवन काल में अनेकों प्रकार के लोगों से मिलता है , अनेकों प्रकार की भाषा बोलना सीखता है और अनेकों कृत्य करता है परंतु इस

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*सनातन धर्म में आध्यात्म का बहुत बड़ा महत्व है | अध्यात्म की पहली सीढ़ी साधना को बताया गया है | किसी भी लक्ष्य की साधना करना बहुत ही दुष्कर कार्य है , जिस प्रकार कोई पर्वतारोही नीचे से ऊपर की ओर चढ़ने का प्रयास करता है उसी प्रकार साधना आध्यात्मिक सुमेरु की ओर चढ़ने का प्रयास है | साधना करना सरल नही

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*इस संसार में वैसे तो मनुष्य से भी अधिक बलवान जीव पाये जाते हैं परंतु मनुष्य ने अपने बुद्धि - विवेक , बल - कौशल से सब पर ही विजय प्राप्त की है | मनुष्य जन्म लेने के बाद इस धराधाम पर जो पहला आहार लेता है वह है "माँ का दूध" | जिस प्रकार संसार में जल के अनेक स्रोत होने के बाद भी गंगाजल को ही सर्वश्रेष्

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*इस संसार में एक से बढ़कर एक बलवान होते रहे हैं जिनकी तुलना नहीं की जा सकती है | यदि कोई भी बलवान हुआ है तो उसका आधार उस मनुष्य का मन ही कहा जा सकता है , क्योंकि संसार में सबसे बलवान मनुष्य का मन की कहा जाता है | सबसे बड़ी शक्ति कल्पना शक्ति के बल पर मनुष्य पृथ्वी पर रहते हुए तीनों लोगों का भ्रमण कि

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*इस धराधाम पर जन्म लेने के बाद मनुष्य को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है | हमारा आत्मविश्वास ही हमारा मार्गदर्शन करते हुए सत्पथ पर चलने की प्रेरणा देता है | जीवन के रहस्य को समझने के लिए मनुष्य को आत्मविश्वास का सहारा लेना ही पड़ता है क्योंकि जी

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*इस संसार में मनुष्य में बुद्धि - विवेक विशेष रूप से परमात्मा द्वारा प्रदान किया गया है | मनुष्य अपने विवेक के द्वारा अनेकों कार्य सम्पन्न करता रहता है | इन सबमें सबसे महत्त्वपूर्ण है मनुष्य का दृष्टिकोण , क्योंकि मनुष्य का दृष्टिकोण ही उसके जीवन की दिशाधारा को तय करता है | एक ही घटना को अनेक मनुष्य

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*मानव जीवन में शिक्षा का बहुत बड़ा महत्व है | शिक्षा प्राप्त किए बिना मनुष्य जीवन के अंधेरों में भटकता रहता है | मानव जीवन की नींव विद्यार्थी जीवन को कहा जा सकता है | यदि उचित शिक्षा ना प्राप्त हो तो मनुष्य को समाज में पिछड़ कर रहना और उपहास , तिरस्कार आदि का भाजन बनना पड़ता है | यदि शिक्षा समय रहत

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*सृष्टि के अखिलनियंता देवों के देव महादेव को शिव कहा जाता है | शिव का अर्थ होता है कल्याणकारी | मानव जीवन में सबकुछ कल्याणमय हो इसके लिए शिवतत्व का होना परम आवश्यक है | शिवतत्व के बिना जीवन एक क्षण भी नहीं चल सकता | शिव क्या हैं ?? मानस में पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान शिव को विश्वास का स्

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