*इस जीवन में हम प्राय: संस्कृति एवं सभ्यता की बात किया करते हैं | इतिहास पढ़ने से यह पता चलता है कि हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता बहुत ही दिव्य रही है | भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्धि संस्कृति है , जहां अन्य देशों की संस्कृतियां समय-समय पर नष्ट होती रही है वहीं भारतीय संस्कृति आदिकाल से अपने परंपरागत स्थिति के साथ अजर अमर बनी हुई है | संस्कृति का अर्थ है जीवन की विधि , क्योंकि हमारे जीने और सोचने की विधि हमारी अंतस्थ प्रकृति की अभिव्यक्ति है | प्रायः लोग संस्कृति और सभ्यता को एक ही मान लेते हैं यह दोनों लगती को समानार्थी हैं परंतु दोनों की अवधारणाएं भिन्न है | संस्कृति मानव समाज के आंतरिक और वाह्य जीवन को संस्कारवान , विकसित एवं दृढ़ बनाती है | यदि संक्षेप में कहा जाए को संस्कृति मानव समाज को जीवन यापन करने की परंपरा एवं विकासोन्मुखी शैली है जिससे मनुष्य संस्कारित होकर के विकसित बनता है | जब मनुष्य संस्कारी तो हो जाता है तो उसे सभ्य कहा जाता है और सभ्य से ही सभ्यता बनी | सभ्यता किसी भी संस्कृति की वाह्य चरम अवस्था है | यह कहा जा सकता है कि संस्कृति विस्तार है तो सभ्यता उसकी कठोर स्थिति है | यदि वास्तव में देखा जाए तो संस्कृति मैं बैचारिक पक्ष प्रबल होता है तो सभ्यता में भौतिक पक्ष प्रधान होता है | सीधे-सीधे यदि यह कह दिया जाय कि सभ्यता शरीर है और संस्कृति उसकी आत्मा तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | यदि इसकी सूक्ष्म अंतर पर ध्यान दिया जाय तो यही परिणाम निकल कर आता है कि जिसकी संस्कृति उच्च होती है वहीं सभ्य कहलाता है | सभ्यता मनुष्य को याद दिलाती है कि हमारे पास क्या है ? जबकि संस्कृति हमें सीधे - सीधे यह बताती है कि हम क्या हैं ? और इन दोनों विषयों में हमारा भारत एवं हमारे भारत के महापुरुषों ने बहुत कुछ सहेजकर रखा है आवश्यकता है उनको संरक्षित रखते हुए उनके विकास का प्रयास करने की |*
*आज हम वैज्ञानिक युग में जीवन यापन कर रहे हैं जहां विज्ञान की मान्यताओं के आगे भारतीय संस्कृति और सभ्यता नष्ट होती जा रही है जबकि सत्य यह है कि भारतीय संस्कृति सदैव विकासोनमुखी रही है | विचार करना होगा कि वर्तमान युग जागरण का युग है इसमें अपनी संस्कृति एवं सभ्यता को सहेज कर सतर्कता से आगे बढ़ने की आवश्यकता है , क्योंकि किसी भी किसी देश , समाज का प्राण होती है वहाँ की सभ्यता एवं संस्कृति | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि किसी भी देश की सामाजिक प्रथाएं , आचार - विचार , सामाजिक जीवन , सामाजिक व्यवहार , समाज में मनाए जाने वाले पर्व एवं त्योहार आदि की नींव संस्कृति पर ही खड़ी रहती है , और जिस दिन संस्कृति की धारा टूट जाती है उसी दिन समाज का वाह्य आवरण भी बदल जाता है | कुल मिलाकर कहा जा सकता है जब संस्कृति नष्ट होती है तब सभ्यता रूपी महल भरभरा कर गिर जाता है | सभ्यता और संस्कृति विघटन होने लगता है तो सामाजिक विघटन होने लगता है | आज हमारे देश भारत में यही दृश्य देखने को मिल रहा है | अत: आज पुन: जन जागरण की आवश्यकता है | संस्कृति एवं सभ्यता को बचाए रखने के लिए प्रत्येक मनुष्य को आगे आना चाहिए | चारों ओर फैल रही वैमनस्यता , सांप्रदायिकता , असहिष्णुता भारत की संस्कृति एवं सभ्यता के लिए चुनौती प्रस्तुत कर रही है | इस चुनौती का सामना करने के लिए हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता को संरक्षित करना होगा और यह तभी संभव है जब हमारे भीतर सनातन संस्कार आरोपित होंगे | अन्यथा हमारी आने वाली पीढ़ियां यह भी नहीं बता पाएंगे कि हम क्या हैं ?*
*भारतीय संस्कृति के भविष्य को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए प्रत्येक मनुष्य को अपने सांप्रदायिक वैमनस्य को भुला कर के सनातन की तरह सहिष्णु बनना होगा अन्यथा वह दिन दूर नहीं है जब हम इतिहास हो जाएंगे |*