*इस संसार में जन्म लेने के बाद मनुष्य कथा - प्रवचन / सतसंग के माध्यम से सद्गुरुओं के मुखारविन्द से प्राय: सुना करता है कि "ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्या" अर्थात :- ब्रह्म ही सत्य है शेष सारा संसार छूठा है | दूसरा शब्द सुनने को मिलता है कि "एको ब्रह्म द्वितीयोनास्ति" अर्थात :- एक वहीं ब्रह्म चराचर में व्याप्त है कहीं भी कोई दूसरा है ही नहीं | कहीं भगवान राम को ब्रह्म की उपमा देते हुए तुलसीदास जी लिखते हैं "राम ब्रह्म परमारथ रूपा" तो कहीं ब्रह्म को आदि अनादि कहा गया है | हमारे ऋषि - महर्षियो ने इस ब्रह्म को जानने के लिए अनेको जन्म व्यतीत कर दिए हैं परंतु ब्रह्म को पूर्ण रूप से जान पाने में कितना सफल हुये है यह कह पाना कठिन है | ब्रह्म को प्राप्त करने के लिए मनुष्य अनेकानेक उपाय करता है | हमारे ऋषियों ने कर्म के साथ-साथ कठिन से कठिन तपस्या भी किया है ब्रह्म को जानने एवं पाने के लिए | ब्रह्म की खोज करने के लिए महर्षि भृगु ने अनेकानेक ग्रंथों का धर्म शास्त्रों का अध्ययन किया परंतु उन्हें ब्रह्म का बोध नहीं हो पाया तब उन्होंने अपने पिता वरुण से पूछा कि हे पिताजी ! मैं जिस ब्रह्म को खोजने या जानने का प्रयास कर रहा हूं वह हमको कहीं दिख नहीं रहा है ! तो आप हमको बताइए कि आखिर ब्रह्म है क्या ? अपने पुत्र महर्षि भृगु के प्रश्न को सुनकर के वरुण देवता ने बहुत ही विस्तार से सरल भाषा में उनको बताया कि हे पुत्र ! "अन्नम् प्राणम् चक्षु: श्रोभं मनो वचमिति" अर्थात :- अन्न , प्राण , तप , विज्ञान , आनन्द , मन और वाणी ही ब्रह्म है | इन सबमें श्रेष्ठ अन्न ही है क्योंकि मनुष्य अन्न का सेवन करके ही जीवित रहता है और जब मनुष्य जीवित रहेगा तभी वह तप - तप , या ज्ञान - विज्ञान का अध्ययन करके मन में आनन्दित हो सकता है | साधारण सी बात है कि प्राण के बिना शरीर का कोई महत्त्व नहीं है और अन्न के बिना प्राण रह पाना भी असम्भव है इसलिए अन्न को ब्रह्म कहा गया है | पारब्रह्म को जान पाना तो शायद आज के मनुष्य के बस की बात नहीं है परन्तु साक्षात उपस्थित अन्न रूपी ब्रह्म का दर्शन तो सभी कर रहे हैं | जिस प्रकार पारब्रह्म परमात्मा बिना भेदभाव के समान रूप से सभी जीवों जल , वायु आदि प्रदान करते हैं उसी प्रकार इस धराधाम पर अन्न भी सभी प्राणियों को बिना भेदभाव किये समान रूप से पोषित करता है | इसीलिए अन्न इस धराधाम का साक्षात ब्रह्म है हृदय से अन्न को ब्रह्म मानकर प्रत्येक मनुष्य को इसका आदर करना चाहिए क्योंकि एक दिन यदि यही अन्न नहीं मिलता है तो मनुष्य उसके लिए अनेकों प्रकार के उद्यम करने पर यहाँ तक कि भिक्षा मांगने तक को विवश हो जाता है | अत: अन्न रूपी ब्रह्म का निरादर कभी नहीं करना चाहिए |*
*आज जिस प्रकार गांवों का शहरीकरण हो रहा है उस से आने वाली निकट भविष्य में यदि अन्न का संकट उत्पन्न हो जाय तो यह कहना गलत ना होगा | अन्न का उत्पादन करने वाले किसान को ग्रामदेवता कहा गया है तो अन्न को ब्रह्म मान करके यदि इसकी पूजा ना की जाय तो कम से कम इसक आदर अवश्य किया जाय | अन्न का क्या महत्व होता है इसको कोई भूखा मनुष्य ही बता सकता है | आज कई देश अन्न की कमी के चलते भुखमरी की कगार पर है | हमारा देश भारत कृषि प्रधान देश कहा जाता है जहां अन्न का उत्पादन किसान बड़ी श्रद्धा एवं लगन के साथ करते हैं | परंतु आज के आधुनिक युग में खेतों का अस्तित्व भी संकट में है | इसके अतिरिक्त मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज बड़े-बड़े आयोजन विवाह आदि बहुत ही भव्यता से किया जा रहे हैं जिसमें बहुतायत भोजन बर्बाद होता दिख रहा है | पूर्वकाल में जहां लोग आने वाले मेहमानों को प्रेम से बैठा कर भोजन परोस कर खिलाते थे वहीं आज की परंपरा यह है कि पांडालों में स्वयं भोजन परोस कर लोग खा रहे हैं | भोजन के समय एक साथ इतनी भीड़ हो जाती है कि लोग ज्यादा से ज्यादा मात्रा में भोजन अपनी थाली में परोस लेना चाहते हैं , जिसका परिणाम यह होता है कि उनकी थाली का सारा भोजन वह स्वयं नहीं खा पाते हैं और उसे फेंक देते हैं | विचार कीजिए कि हम नित्य पूजा पाठ करके ब्रह्म को पाने का उपाय तो करते हैं परंतु साक्षात ब्रह्म अर्थात अन्न का निरादर जाने - अनजाने प्रतिदिन कर रहे हैॉ | यदि हमारे द्वारा ऐसा होता है तो हम ब्रह्म के विषय में क्या जान पाएंगे ? और उसे कैसे प्राप्त कर पाएंगे ? जब ब्रह्म के छोटे स्वरूप अन्न का आदर नहीं कर पा रहे हैं और उसे बर्बाद कर रहे हैं तो आने वाले दिनों में क्या स्थिति होगी यह सोचकर ही भय लगता है | यदि किसी वर्ष अन्न का उत्पादन दुर्भाग्यवश कम होता है तो किसान के साथ साथ पूरा देश महंगाई की अग्नि में जलने लगता है | अत: अन्न के महत्व को समझकर के इसकी सुरक्षा एवं आवश्यकता के अनुसार उपयोग करके मनुष्य एक प्रकार से ब्रह्म की उपासना कर सकता है , अन्यथा ब्रह्म को जान पाना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव भी है |*
*अन्न को साक्षात् ब्रह्म मान करके इसका आदर करना प्रत्येक मनुष्य का धर्म है | मनुष्य धर्माधिकारी तो बन बैठा है परंतु इस छोटे धर्म का पालन आज उसके द्वारा नहीं हो पा रहा है | यह चिंतनीय विषय है |*