*इस संसार में एक से बढ़कर एक बलवान होते रहे हैं जिनकी तुलना नहीं की जा सकती है | यदि कोई भी बलवान हुआ है तो उसका आधार उस मनुष्य का मन ही कहा जा सकता है , क्योंकि संसार में सबसे बलवान मनुष्य का मन की कहा जाता है | सबसे बड़ी शक्ति कल्पना शक्ति के बल पर मनुष्य पृथ्वी पर रहते हुए तीनों लोगों का भ्रमण किया करता है | जितनी भी मानसिक शक्तियां बताई गई है उन सभी में कल्पना का प्रमुख स्थान है , इसी कल्पना के बल पर संसार के अनेक महान कार्य हुए हैं | अपनी कल्पना के बल पर अनेक कवियों , साहित्यकारों , नाट्यकारो एवं दार्शनिकों ने अपनी कला का निर्माण एवं सृष्टि के रहस्य को भी खोला है | कल्पना शक्ति के बल पर मनुष्य अनेकानेक योजनाएं बनाकर के भविष्य एवं राष्ट्र का निर्माण करता है | मनुष्य मस्तिष्क में दो प्रकार की कल्पनाएं प्रकट होती हैं | जहां सकारात्मक कल्पना मनुष्य के भविष्य निर्माण में सहायक होती हैं वही नकारात्मक कल्पना मनुष्य के शरीर में आधि - व्याधि , रोग आदि उत्पन्न करके मनुष्य को समय से पहले ही जर्जर कर देती है | कल्पना शक्ति के बल पर ही मनुष्य ने परमात्मा का चित्र तैयार किया है | मनुष्य की कल्पना शक्ति की तुलना संसार में किसी दूसरी शक्ति से नहीं की जा सकती | कल्पना के द्वारा मनुष्य अपने भविष्य का निर्माण तो कर ही सकते हैं साथ ही नाना प्रकार की व्याधियों , पाप और दुख की आंधियां , कायरता , उदासीनता , ग्लानि तथा रोगों की बात भी सोच सकते हैं | कुकल्पना शैतान से भी बढ़कर है | मन की यह अशुभ वृत्ति आयु , सामर्थ्य , मनोबल की सर्वदा हानि करने वाली है | इसके विपरीत यदि कल्पना का ठीक प्रकार से विकास एवं उपयोग किया जाए तो यह सब दुखों - व्याधियों आदि की भावना का नाश कर मुक्तिमंदिर में प्रवेश करा सकती है | कल्पना शक्ति के दुरुपयोग से पूर्ण स्वस्थ मनुष्य भी क्षय को प्राप्त हो सकता है तथा सदुपयोग से मरणशैय्या पर पड़ा हुआ रोगी भी आरोग्य को प्राप्त कर सकता है | अतः मनुष्य को सदैव सकारात्मक कल्पना करनी चाहिए |*
*आज विज्ञान ने इतना विकास किया है तो उसका कारण वैज्ञानिकों की कल्पना ही है | वैज्ञानिकों ने कल्पना किया और उसी कल्पना को आधार बनाकर के नए-नए आविष्कार किये जिसका लाभ आज संपूर्ण जगत उठा रहा है | मनुष्य का मन एवं मन में उत्पन्न होने वाली कल्पना भी उसकी चित्तवृत्ति के अनुसार ही होती हैं | जैसा मनुष्य का स्वभाव होता है उसी प्रकार की कल्पनाएं उसके हृदय में उठा करती हैं , एक ही व्यक्ति या वस्तु के लिए कई मनुष्यों की कल्पनाएं पृथक - पृथक हो सकती हैं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि मनुष्य के हृदय में किसी के प्रति जैसी सोच या विचार उत्पन्न होता है उसी प्रकार की कल्पना भी मनुष्य के हृदय में प्रकट हो जाती हैं और मनुष्य अपनी मनोवृत्ति के अनुसार की कल्पना लोक में विचरण करने लगता है | कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य की कल्पना का आंकलन नहीं किया जा सकता है | आपके समक्ष बैठा हुआ कोई भी व्यक्ति आप के विषय में क्या कल्पना कर रहा है इसका अनुमान लगा पाना असंभव है , इसीलिए मनुष्य के मन और कल्पना शक्ति को इस संसार में सबसे शक्तिमान माना गया है | मनुष्य को सदैव अपनी कल्पना सकारात्मक एवं उचित पथ में रखना चाहिए क्योंकि कल्पना के विस्तृत रूप में असद विचार रोग उत्पन्न होते ही हैं साथ ही असद कल्पना विचार , सामर्थ्य और संकल्प को कुंठित कर देती है | सबसे विचित्र बात तो यह है कि कल्पना संहारक भी है , इसलिए मनुष्य को अपने हृदय में निरर्थक एवं प्रतिकूल विचारों को स्थान नहीं देना चाहिए | मनुष्य को सदैव अपने मनमंदिर में सर्वोत्तम कल्पनाओं को ही स्थान देना चाहिए |*
*मनुष्य बड़ा विचित्र प्राणी है किसी व्यक्ति वस्तु या स्थान के विषय में वह जाने क्या-क्या कल्पनाएं किया करता है | कल्पना से मनुष्य को बल तो मिलता ही है साथ ही उसका कंटकमय मार्ग भी प्रशस्त होता है परंतु इन कल्पनाओं में सकारात्मकता होना परम आवश्यक है |*