*इस संसार परमात्मा ने अनेकानेक जीवो का सृजन किया | पशु - पक्षी ,कीड़े - मकोड़े और जलीय जंतुओं का सृजन करने के साथ ही मनुष्य का भी सृजन परमात्मा ने किया | सभी जीवो में समान रूप से आंख , मुख , नाक , कान एवं हाथ - पैर दिखाई देते हैं परंतु इन सब में मनुष्य को उस परमात्मा ने एक अमोघ शक्ति के रूप में बुद्धि प्रदान की है | यह मनुष्य को परमात्मा द्वारा प्राप्त अतुलनीय शक्ति है , इसी बुद्धि के बल पर मनुष्य लाखों-करोड़ों जीवो का स्वामी बनकर बैठा है | मनुष्य अपने बुद्धि के बल पर स्वयं तो श्रेष्ठ बना ही साथ ही उसने संसार को भी श्रेष्ठ बनाने का प्रयास किया है और उसमें सफल भी हुआ है | अपने बुद्धि का प्रयोग करके अनेकानेक रहस्यों का पता लगाने वाला मनुष्य सांसारिक सुख-सुविधाओं की वृद्धि करने में सक्षम हुआ है | ऐसा नहीं है कि बुद्धि के बल पर मनुष्य ने सिर्फ सांसारिक एवं भौतिक वस्तुओं की ही वृद्धि की है अपितु बुद्धि का ही प्रयोग करके उसने आत्मा - परमात्मा , जीवन - मृत्यु , प्रकृति एवं पुरुष के विषय में भी अधिक से अधिक जानने का प्रयास करते हुए जीवन को सफल भी बनाया है | प्रकृति में समावेशित पंचतत्व पर भी विजय प्राप्त करके उसकी पराधीनता से स्वयं को मुक्त करके आत्मनिर्भर होने का प्रयत्न भी मनुष्य ने किया है | ऋतुकालीन फसलों को मनुष्य आज बिना उस ऋतु के भी उत्पादित कर रहा है यह मनुष्य की बुद्धि बल का ही परिणाम है | अपने बुद्धि बल पर मनुष्य चाहे तो इस धराधाम को स्वर्ग बना सकता है और चाहे तो नरक से भी बदतर बनाने में सक्षम है | बुद्धि नामक अचूक अस्त्र परमात्मा ने मात्र मानव को दिया है सदैव इसका सदुपयोग ही करना चाहिए जिससे मानव मात्र का कल्याण होता रहे |*
*आज मनुष्य अपने बुद्धि बल से विज्ञान का सहारा लेकर के असंभव से असंभव कार्य को भी संभव कर पा रहा है परंतु ईश्वर द्वारा प्रदत्त इस अमोघ शक्ति का दुरुपयोग भी अधिक से अधिक हो रहा है | आज की परिस्थितियां देखते हुए दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं लग रहा है कि मानवीय बुद्धि की यह शक्ति संसार को स्वर्ग के रूप में परिणत करेगी | आज मनुष्य अपनी बुद्धि बल का प्रयोग नकारात्मकता के साथ करके ईश्वर द्वारा बनाये इस सुंदर संसार को नर्क बनाने में तत्पर दिख रहा है | इस विषय में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आज चारों ओर विनाश एवं उससे पीड़ित मनुष्यों का हाहाकार ही अधिक सुनाई पड़ रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज जिधर देख रहा हूं उधर ही दुख - पीड़ा , शोक - संताप , आवश्यकता एवं अभाव का ही तांडव दिखाई पड़ रहा है | आज मनुष्य सांसारिक सुख सुविधाओं की वृद्धि करने के लिए नित्य अपने बुद्धि बल का प्रयोग अनेक प्रकार से कर रहा है परंतु इतना करने के बाद भी मनुष्य आज आश्वस्त एवं निश्चिंत नहीं दिखाई पड़ता है | सुख - सुविधा के अनगिनत साधन संचित कर लेने के बाद भी मनुष्य उससे लाभान्वित नहीं हो पा रहा है तो उसका एक ही कारण है कि आज मनुष्य की बुद्धि विकृत हो गई है | बुद्धि बल का प्रयोग जब तक सकारात्मकता से नहीं किया जाएगा तब तक यह संसार दिन प्रतिदिन पतन की ओर अग्रसर होता रहेगा , जो कि आज दिखाई भी पड़ रहा है | आज प्रत्येक मनुष्य में सकारात्मकता कम एवं नकारात्मकता अधिक दिखाई पड़ रही है | ईश्वर द्वारा प्रदत्त बुद्धि नामक अमोघ अस्त्र का प्रयोग मनुष्य को सदैव सकारात्मकता के साथ सृष्टि के सृजन में लगाने का प्रयास करते रहना चाहिए अन्यथा अन्य जीवो एवं मनुष्य में कोई विशेष अंतर नहीं रह जाएगा | मनुष्य बुद्धि बल का सकारात्मक प्रयोग तब तक नहीं कर पाएगा जब तक उसके हृदय में श्रद्धा का भाव नहीं होगा क्योंकि श्रद्धा से ही मनुष्य सकारात्मक हो सकता है |*
*बुद्धि को परिष्कृत करने के लिए श्रद्धा का होना परम आवश्यक है | जिस दिन मनुष्य के ह्रदय में श्रद्धा का भाव उत्पन्न हो जाएगा उसी दिन विध्वंसक बौद्धिक चमत्कार सृजनात्मक वरदान बन जाएंगे |*