*इस संसार में मनुष्य में बुद्धि - विवेक विशेष रूप से परमात्मा द्वारा प्रदान किया गया है | मनुष्य अपने विवेक के द्वारा अनेकों कार्य सम्पन्न करता रहता है | इन सबमें सबसे महत्त्वपूर्ण है मनुष्य का दृष्टिकोण , क्योंकि मनुष्य का दृष्टिकोण ही उसके जीवन की दिशाधारा को तय करता है | एक ही घटना को अनेक मनुष्य भिन्न - भिन्न दृष्टिकोण से देखते हुए उसका वर्णन करते हैं | छोटी - छोटी घटनाओं में दृष्टिभेद से ही मनुष्य के देखने के नजरिये में अन्तर हो जाता है | मनुष्य के दृष्टिकोण का निर्माण उसके चिंतन पर निर्भर करता है ! किसी भी व्यक्ति या वस्तु के विषय में जो जैसा चिंतन करता है उसके प्रति उसका वैसा ही दृष्टिकोण हो जाता है | प्रत्येक व्यक्ति में गुण एवं अवगुण विद्यमान रहते हैं , यदि मनुष्य का चिंतन गुणों की ओर होता है तो मनुष्य शांति एवं प्रसन्नता का अनुभव करता है वहीं निराशावादी एवं अवगुणवादी मनुष्य अपने चारों ओर अभावों एवं दोषों का दर्शन करते रहते हैं जिसके परिणास्वरूप उसके जीवन में शांति एवं प्रसन्नता का अभाव ही रहता है | जो भी मनुष्य सकारात्मक दृष्टिकोण से संसार को देखते हुए अभाव को भाव , विषाद को हर्ष एवं दु:ख को सुख में बदलने की कला जानता है उसी व्यक्ति का जीवन सार्थक एवं सफल होता है | यह मनुष्य का दृष्टिकोण ही है कि छोटा सा दु:ख भी उसे पहाड़ जैसा दिखने लगता है और वह स्वयं को संसार का सबसे दु:खी एवं अभागा समझने लगता है जबकि यदि वह सकारात्मक दृष्टिकोण से यह विचार करे कि संसार में हमसे भी ज्यादा दु:खी लोग बहुतायत मात्रा में हैं तो उसका दु:ख स्वयं समाप्तप्राय हो जायेगा | अत: मनुष्य को सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए |*
*आज प्रायः मनुष्य अपने परिवार के वातावरण , व्यवसाय और नौकरी से असंतुष्ट और दुखी प्रतीत होता है , जबकि वह दूसरे परिवारों में व्यवसाय में , नौकरी में अधिक सुख , शांति , वैभव एवं उन्नति के दर्शन करता है , परंतु जब वह उनकी अंतरंग स्थिति से परिचित होता है तो उसे स्वयं के इस दृष्टिकोण पर हंसी आती है | यह मनुष्य की सामान्य प्रवृत्ति है कि वह स्वयं को सबसे अधिक दुखी समझता है इस प्रवृति से छुटकारा पाने की आवश्यकता है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि दूसरों के परिवार सकारात्मक एवं सुखी समझने वाले लोग जब उस परिवार के साथ दो दिन रहते हैं तब उनको यह प्रतीत होता है कि इससे अच्छा तो हमारा ही परिवार है | जैसे दूर से देखने में पर्वत बहुत ही मनोरम दिखाई पड़ता है परंतु जैसे-जैसे उसके नजदीक पहुंचो पर्वत का मनोरम स्वरूप अदृश्य हो जाता है एवं उसका आकर्षण समाप्त हो जाता है | कहने का तात्पर्य है सुखी एवं दुखी दोनों तरह के मनुष्यों के लिए अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाना बहुत आवश्यक है , इससे जहां सुख का अभिमान मिट जाता है वही दु:ख का भाव और तनाव भी समाप्त हो जाता है | मनुष्य को ज्यादा कुछ करने की आवश्यकता नहीं बल्कि अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक बनाना है | ऐसा करके वह इस दु:खी संसार में भी सुखी रह सकता है | जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण का होना बहुत ही आवश्यक है |*
*दूसरों को देखकरके उनके जैसा बनना , उनके जैसा पाना यह प्रवृत्ति मनुष्य को सिर्फ भीड़ का हिस्सा बना कर छोड़ देती है | वहीं यदि मनुष्य सकारात्मक दृष्टिकोण से अपने कार्य का आंकलन करें तो वह स्वयं एक सफल व्यक्ति बन सकता है |*