दूर-वीक्षण-यन्त्र से तुम व्योम को ही देखते हो?
एक ग्रह यह भूमि भी तो है ।
कभी देखो इसे भी यन्त्र के बल से ।
न समझो यह कि धरती तो
हमारी सेज है, उत्संग है, पथ है,
उसे क्या चीर कर पढ़ना?
यहाँ के पेड़-पौधे, फूल, नर-नारी
सभी हर रोज मिलते हैं ।
अरे, ये पेड़-पौधे, फूल, नर-नारी
किसी प्रच्छन्न लौ के आवरण हैं ।
जानते हो, बीज है वह कौन
ये किसकी त्वचाएँ हैँ?
ज्ञात है वह अर्थ जो इन अक्षरों के पार भूला है?
दूर पर बैठे ग्रहों की नाप, यह भी शक्ति ही है।
किन्तु, नापोगे नहीं गहराइयां
जो छिपी हैं पेड़-पौघे में, मनुज में, फूलों में?
ला सको तो ज्योतिषी । लाओ मुकुर कोई
(नहीं वह यन्त्र केवल क्षेत्रफल, आकार या घन नापनेवाला ।)
किन्तु, वह लोचन सुरभि से, रंग से नीचे उतर कर
पुष्प के अव्यक्त उर में झाँकनेवाला ।