पूछो कुछ मत और, मुझे सोने जाने दो।
उतर गया जब सम्मोहन, यह विश्व हो गया
अनजाना-सा । आयु लगी लगने कुछ ऐसी,
मानो, वह व्यर्थ ही बहुत लम्बी हो। जाने,
मैंने क्या खो दिया कि सब सूना लगता है ।
ऐसे में, बस, एक बात है, जो कहता हूँ
वाणी का पाषण्ड, इसे तुम वापस कर तो ।
मुझे छोड़ दो एक मौन, इस गलियारे से
मन चाहे जितने कक्षों तक जा सकता हे।
और मुझे एकान्त छोड़ कर अब तुम जाओ,
मृत्यु शीघ्र आएगी, उसका वरण करूँगा
सुगम्भीरता से मैं, जैसे नूतन उडु को
सुगम्भीर आकाश पौन रहकर वरता है ।