आदमी की उँगलियों में कल्पना जब दौड़ती है,
पत्थरों में जान पड़ जाती ।
मूर्तियाँ सप्राण होकर जगमगाती हैं ।
स्पर्श में संजीवनी है ।
आदमी का स्पर्श उँगली से उतर का
पत्थरों की मूर्तियों में वास करता है ।
मूर्तियाँ जीवित बनी रहतीं हजारों साल तक;
बस, यहीं लगता, किसी ने आज ही इनको छुआ है।
और इस कारण बहुत-सी वस्तुएँ प्राचीन युग की
खुशनुमाँ हैं, मोहिनी हैं ।
क्योंकि वे हैं आज भी
गर्मी लिये उन उँगलियों की
था जिन्होंने एक दिन उनको छुआ आवेश में ।