वे छोटे-छोटे समाधान, छोटे उत्तर
थे मुझे बहुत प्रिय, उन्हें निकट मैं रखता था ।
जब बड़े प्रश्न मन को खरोंच कर व्रण करते,
तब भी मैं लेकर आड़ इन्हीं नन्हे-नन्हे निष्कर्षों की
मानस की शान्ति बचा लेता, प्राणों का सर
ईषत् कंप का फिर अचल, शान्त हो जाता था।
ऊँची, अपार शंकाओं को भीतर के तम में दबा मग्न
मैं नन्हे भावों को दुलार कर बड़े पेम से जीता था ।
दिन में घेरे रहते अपार सुकुमार फूल छोटे-छोटे,
रजनी नन्हे-नन्हे तारों के कलरव में कट जाती थी ।
तब जगे एक दिन वे बलशाली समाधान,
अथ से इति का सम्पूर्ण ज्ञान रखनेवाले;
जीवन का मूल हिला बोले,
"हम से क्या भय? हम दूत सत्य के हैं,
हमको जानो, मानो, स्वीकार करो ।"
जीवन का वन कंपायमान;
हिल रही वाटिका और महल भी हिलते हैं ।
मानस का यह मूडोल कहाँ पर दम लेगा?
हैं बाँध बना कर खड़े
आज भी मेरे वे छोटे उत्तर,
छोटे मनुष्यों के नन्हे-छोटे समाधान ।
पर, लगता है, यह बांध नहीं टिक पाएगा,
बलशाली व्यापक समाधान विजयी होंगे ।
सब महीयान निष्कर्ष दूर के निकट हुए-से जाते हैं ।