मैं न भूलूँगा कभी रमणीय उस अदभुत नगर को
पश्चिमी जा में सलिल पर जो अवस्थित है ।
यह नगर संकेत है मानव-मिलन का ।
संघटन है वह अमित एकान्तताओं का ।
एकान्तताएँ द्वीप हैं ।
प्रत्येक औरों से अलग;
प्रत्येक सबसे भिन्न;
चारों ओर से प्रत्येक संवेष्टित सलिल की धार से ।
द्वीप से ले द्वीप तक, पर, प्रेम का बन्धन जुड़ा है ।
जब मिलाते हो कभी तुम हाथ मुझसे,
वारि पर तुम सेतु का निर्माण करते हो ।
और जब हँसते हमारी ओर को तुम,
एक वातायन तुरत उन्मुक्त हो जाता
उस सदन में जो खडा है पासवाले द्वीप में ।
और ज्यों-ज्यों रात बढ़ती, भींगती है,
यह झरोखा बन्द हो जाता ।
अँधेरे में सेतु पर कोई नहीं फिर दृष्टिगत होता ।