क्या करोगे देवा जिस दिन मैं मरूँगा?
क्या करोगे जब क्लश यह टूट जाएगा ?
क्या करोगे जब तुम्हारा पेय मैं
नि:स्वाद हूँगा, सूख जाऊँगा ?
मैं तुम्हारा अनावरण हूँ
तुम मुझे ही ओढ़ कर सब कार्य करते हो ।
तो कहीं मैं खो गया यदि
अर्थ क्या सारा तुम्हारा शेष रहता है ?
मैं नहीं, तो तुम न क्या गृहहीन होगे?
मैं नहीं, तो कौन स्वागत के लिए बैठा रहेगा?
मैं तुम्हारी पादुका हूँ;
मैं अगर सोया, तुम्हारी पादुका खो जाएगी ।
पादुका की टोह में दोनों चरण वे श्रांत भटकेंगे,
मगर, तब कौन उन दोनों पदों से लिपट जाएगा ।
मैं परिच्छद हूँ तुम्हारे भव्य तन का ।
मैं अगर खोया, परिच्छद स्रस्त यह हो जाएगा ।
और करुणामय तुम्हारी दृष्टि
जो अभी मेरे कपोलों पर विरम विश्राम करती है,
क्या नहीं बेचैन होगी, क्लेश पाएगी
त्लप जब मेरे कपोलों का नहीं होगा?
मैं चक्ति हूँ हर घड़ी यह सोच कर
क्या करोगे देव: जिस दिन मैं मरूँगा ।
(राइनेर मारिया रिल्के-जर्मन कवि)