कहां गई कहां गई मेरी खुशियां कहां गई।
इधर ढूंढो उधर ढूंढो कहां गई कहां गई।
कोई तो बताओ कहां है खुशियों का ठिकाना।
मैं सब जगह ढूंढ आई, मगर ना मिली खुशी ,कहीं ना मिला ठिकाना।
जब मैंने अपने आसपास अपने अंदर देखा ।
प्रकृति में चह चहाते पक्षी देखें
प्रकृति के सुंदर नजारे देखें।
बच्चों की मधुर किलकारियां सुनी।
मन में उमंग से भर उठा सुबह उगते फूल देखें ।
आसपास का सुंदर वातावरण देख मन खुशी से भर उठा ,
मन ने कहा तेरी खुशियां तुझ में है ।
तू जिस में देखे उसमें है।
छोटी छोटी खुशियां ढूंढ ।
बड़ीबड़ी खुशियों के पीछे ना दौड़ क्योंकि छोटी खुशियां होंगी।
तो बड़ी भी पीछे-पीछे आ ही जाएंगी।
मन खुशी से झूम झूम उठा कि मुझे खुशियों का ठिकाना मिल गया था।
अब मुझे उसे ढूंढने की कोई जरूरत नहीं।
छोटी सी दुनिया छोटे-छोटे से क्षण ,
खुशियों से भरपूर।
खुशियां बांटते चलो,
ताकि किसी को खुशियों का ठिकाना ढूंढना ना पड़े
स्वरचित पंक्तियां 10 अक्टूबर 21