ढूंढती हूं मन का चैन।
ढूंढती हूंमन का सुकून।
ढूंढती हूं मन का हौसला।
तो वह कोई कहीं नहीं रहता है
फिर मैंने अपने मन को ढूंढा।
देखा अरे मैं क्यों बाहर भटक रही हूं। यह तो मेरे मन के अंदर मेरे स्व में रहता है।
वह कहीं कोई नहीं रहता, बल्कि मेरे अंदर रहता है।
रहते जिस तरह भगवान कण-कण में उसी तरह मेरा सुखचैन हिम्मत और हौसला खुशी वह कहीं कोई नहीं रहती है।
रहती मेरे मन के अंदर महसूस जिसको मैं कर सकती हूं।
आज के विषय को न्याय देती हूं कुछ पंक्तियां☺️☺️