नन्हे नन्हे बच्चे
होती उनकी उम्मीदें नन्हीं।
छोटी-छोटी उम्मीदों के साथ
थोड़ी सी खुशी मिलने पर खुश हो जाते, क्योंकि उनकीहोती उम्मीदें बहुत ही नन्हीं।
होती उम्मीदें तो बड़े लोगों की बड़ी ।
थोड़े बड़े होने पर वह बचपन चला जाता है।
जो नन्हीं उम्मीदों से खुश हो जाता था।
और उम्मीदों का विस्तार होता चला जाता है।
जो दिल दिमाग चांद की कहानियां सुनता था।
वह चांद पर जाने के सपने देखता है।
इसी तरह उम्मीदों का विस्तरण होता चला जाता है।
और कोशिश यह रहती है कि सब की नन्ही उम्मीदें पूरी हो।
बड़े होकर एक सपना बनकर न रह जाएं।
और वह सपना पूरा हो जाए।
उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए बहुत मेहनत तो बड़े होते बच्चों को भी करना पड़ेगी।
तभी उनके नन्हें-नन्हें सपने
जो बड़े होकर विराट रूप लेते हैं।
वे पूरे हो जाएंगे।
और वे जग मेँ छा जाएंगे।
और अपनी जिंदगी में खुश हो जाएंगे और अपनों को खुश कर जाएंगे
स्वरचित कविता 28 सितंबर 21