यह चलते चलते हम कहां तक आ गए।
जिंदगी की आपाधापी में हम कहां खो गए।
अपनों के साथ अपनों के लिए हम यहां खो गए।
मुड़ के जो पीछे देखते हैं, तो लगता है अरे हमने इतना लंबा समय काट लिया।
उस समय का कहीं पता ही नहीं लगा क्योंकि हमपर जिम्मेदारियां बहुत थी जिंदगी में।
उनको निभाते निभाते हमने अपने आप को खो दिया।
जब आज हम खाली बैठे हैं अपने आप से बातें कर रहे हैं ।
तो यह महसूस हो रहा है
हमने कितने अपनों को खो दिया।
हमने इस जिंदगी की आपाधापी में खुद को खो दिया
अब खुद से परिचय करने का समय आ गया।
वह परिचय भी हमने चालू कर दिया।
जिंदगी की आपाधापी में हम कहां खो गए।
इसी जिंदगी की आपाधापी से बाहर निकल कर हमने अपने आप को खोज लिया।
यह है हर स्त्री की राम कहानी
जिंदगी फर्ज और कर्तव्यों से बंधे होने में भूल जाती है खो जाती है।
वह अपने आप ही कर्तव्य में बंध कर रह जाती है।
सोचती है मेरे बिना काम चलेगा ही नहीं।
मैंने तो अपने निज को नहीं खोया था।
अनुभव मेरा यही कहता है कि सब कुछ करो मगर स्वयं को ना खोना।
कुछ मधुर पल अपने लिए भी संभाल के रखना।
जिंदगी में यह अफसोस नहीं रहेगा
कि हमने अपने आपको समय तो दिया ही नहीं,
खुद से खुद को हमेशा साक्षात्कार करवाते रहना।