क्यों यह गलियां सोई पड़ी हैं।
क्यों यह वीरान सुनसान पड़ी है। लगता है यह इतनी थक गई है।
इनको भी विश्राम की जरूरत पड़ी है।
क्यों यह गलियां सोई पड़ी है।
यह गलियां यह चौबारे।
यहां आना ना दोबारा।
नहीं तो ले जाएगा तुमको कोरोना का संकट है यारा। संभल के रहो तुम जिंदगी है तुम्हारी
है ,जिंदा रहे तो दोबारा मिलेंगे ।
यह गलियां यह चौबारे फिर आबाद होंगे ।
आशा है हमको यह पूरी हमारी।
यह गलियां और चौबारा फिर धमधामाएंगे ।
जब तक इनको सोने ही दो।
इनको अपनी दुनिया में खोने ही दो।
है प्रार्थना मेरी आप सबों से है न्यारी।
रहो अभी घर में जब तक है महामारी।
बाहर निकलो तो अपनी सुरक्षा के साथ यारों
है यह प्रार्थना ये हमारी
रहोसब कुशल मंगल अपने परिवारों में प्यारों
स्वरचित कविता