तेरे माथे की सुंदर सी बिंदिया।
तुझे बहुत गौरवशाली बना देतीहै।
साथ में मेरा दिल भी धड़का देती है।
इस बिंदिया में तू इतनी सुंदर लगती है।
इसे देख मेरा हिम्मत हौसला और बढ़ जाता है।
तेरा सुंदर चेहरा इस बिंदिया से और चमक जाता है।
एक समय था जब तू सूखे सिंदूर की चटक लाल बिंदिया लगाती थी।
समय बदला सिंदूर की जगह स्टिकर वाली बिंदी ने ले ली मगर 24 घंटे लगाने का समय नहीं बदला वैसे ही 24 घंटे चमकती रही।
माथे पर चमकती बिंदिया तो वही है।
जगह भी वही है।
रूप भी वही है।
महत्व भी वही है।
मन कहता है ईश्वर से करता है यह प्रार्थना यह हर रूप में इसी तरह दमकती रहे।
यह बिंदी हमेशा चमकती रहे।
स्वरचित कविता 20 अक्टूबर 21