चलो आज हमारा पिटारा खोल देते हैं।
शैतान बच्चों के पिटारों में से एक पिटारा आपको दिखा देते हैं।☺️☺️
था वह समय बहुत सुहाना ।
एक कहे तो सब ने माना।
ना कोई लीडर ना कोई डर।
एक बार की बात बताएं।
एक जने ने हम में से कहा।
एक बेर के पेड़ पर बहुत बेर
लगे हुए।
आकर कुछ ऐसा वर्णन करा जैसे उसने बहुत बेर खाए हो ।
और बहुत मीठे हो ।
सब के मुंह में आ गया पानी।
बोले चलो आज हम ले आते हैं।
उस पेड़ की खबर खैर
और ले आते हैं थोड़े बेर ।
मन में थोड़ा डर भी था ।
क्योंकि घर पापा के दोस्त का था। किस तरह से वहां पर जाएंगे।
पकड़े गए तो क्या होगा ।
मगर सबने बोला ।
भर दुपहरी में चलेंगे
दो आगे दो पीछे रहेंगे ।
कोई आएगा तो कोड वर्ड से बता देंगे।
फिर सब नौ दो ग्यारह हो जाएंगे।
घर आकर सब बेर खाएंगे
योजना थी बड़ी अच्छी
ऐसे बहाना बनाकर चलदी हमारी टोली।
जा ऐसे रहे थे जैसे जंग की है तैयारी। मगर मन के अंदर सबके चल रही थी धुकधुकी।☺️☺️
बेर का घर कहीं दूर नहीं था।
पहले बड़ों ने रास्ता साफ किया।
देखा कोई नहीं है सबको इशारा करा। जब पहुंच गए वहां चुपचाप चुपचाप। बेर भी तोड़ लिए ,
मगर हाय री किस्मत एक जने को छिंक,
एक जने को खांसी आई।
पेड़ उनके खिड़की के बाहर था
वे जोर से चिल्लाऐ कौन है।
हम जोर से भागे सिर पर पांव रखकर।
जैसे गधे के सिर पर सींग
हुए हम ऐसे हुए नौ दो ग्यारह ☺️
सांस लिया हमने घर आकर जब। हमारा घर पर जो स्वागत हुआ 😢सबके घर में हुई पिटाई ।
उस पिटाई ने बच्चों से भुला दिया कि आगे से कभी किसी के यहां से चोरी से कोई फल ना तोड़े।😢
सीख दे गया वह बहुत भारी।
जिसको हम सब बच्चों ने जिंदगी भर साथ निभाया।
सब बच्चों की टोली में सबका साथ निभाया।
बहुत याद आती है मस्तियां
वे शैतानियां जो हमने बचपन में की थी।
आज के बच्चों के पास नहीं है वह निर्दोष शैतानियां ।
क्योंकि उनके मां बाप हैं डरते।😢
कहीं हमारे बच्चे को कुछ हो ना जाए इस बात से हैं डरते ।😢
वह जमाना क्या था बच्चे कहीं। मां-बाप कहीं।
भूख लगे तब मां बाप की याद आए।
बाकी टाइम हम मस्ती में खो जाए।
😊😊
स्वरचित कविता 25 अक्टूबर 21