ओस वातावरण में फैले हुए वाष्प का वह रूप है जो जमकर जलबिंदु अथवा छोटी-छोटी बूँदों के रूप में परिवर्तित होकर पृथ्वी पर गिरता है। ओस बनने की प्रक्रिया का संघनन से सीधा जुड़ाव है। वातावरण में शत-प्रतिशत सापेक्षिक आर्द्रता होने पर वायु संतृप्त हो जाती है और संघनन आरंभ हो जाता है। जिस तापमान पर हवा संतृप्त होती है, उसे ओसांक या ओस बिंदु कहते हैं। संतृप्तावस्था के बाद वायु को ठंडा करने पर संघनन प्रारंभ हो जाता है। शत-प्रतिशत सापेक्षिक आर्द्रता के बाद अतिरिक्त आर्द्रता का संघनन हो जाता है। यदि तापमान 32ॱ फारेनहाइट के ऊपर है तो तरल रूप में ओस, कुहरा, बादल आदि प्रकट होते हैं।
इनको देख मन यह गुनगुनाता है।
ओस की प्यारी प्यारी नन्ही नन्ही बूंदे।
सुबह-सुबह पत्तों पर लगती मोती जैसी बूंदे।
छोटे थे तो सोचते थे यह मोती कहां से आ गए।
फिर जब मां समझाया तो समझ में आया यह तो ओस की बूंदे है।
मुझको बड़ी प्यारी लगती है ओस की बूंदे।
मोती से चमकती ओस की बूंदे।
गुलाब की पत्तियों पर चमकती है ओस की बूंदें।
जो जानती हैं उनका आयुष बहुत कम है फिर भी अपना कर्म नहीं छोड़ती ओस की बूंदे। सबके मन को लुभाती ओस की बूंदे।
जब हम छोटे थे पैदल कूदते फांदते स्कूल जाते थे।
रास्ते में कहीं घास पर दिखती मोती से चमकती बूंदें।
वहीं रुक कर खेलने लग जाते थे।
इतनी प्यारी लगती थी ओस की बूंदे।
स्वाति नक्षत्र की बूंदे वास्तव में बहुत प्यारी लगती है ओस की बूंदे।
स्वरचित 30 नवंबर 21