व्यापार का संस्कृत पर्यायवाची शब्द व्यवहार ही है। व्यवहार से ही व्यापार चलता है। व्यापारी को व्यवहारक होना चाहिए। व्यवहार में जब तक सत्य और विश्वास नहीं होगा तब तक व्यापार चला पाना सम्भव नहीं होगा। छल-कपट का व्यवहार अर्थ का नाशक होता है। किसी भी व्यापार की साख जम जाती है तो बाद में उसका नाम ही बिकता है और साख उखड़ जाने पर उसका सामान बिकता नहीं, नीलाम भले हो जाए।
धोखा लक्ष्मी को खदेड़ना है और विश्वास उसकी मां है।
व्यवहार कुशल बनना अर्थ-सिद्धि का प्रथम सोपान् है। अच्छे व्यवहार से सभी वश में हो जाते हैं।
धन कमाने के लिए विद्वान होना उतना आवश्यक नहीं, जितना व्यवहार कुशल बनना।
सौजन्य एवं विनम्रता संग व्यवहार कुशल बनकर देखिए धन स्वयं आएगा, उसका पीछा नहीं करना पड़ेगा।
आपको तो व्यवहार कुशल बनना है अब चाहे इसके लिए व्यवहार कुशलता को वस्तु की तरह क्यों न खरीदना पड़े। आजकल व्यक्तित्व विकास के कार्स में यही सिखाया जाता है।
प्रसिद्ध अमरीका धनी रॉकफेलर का कहना है-'व्यवहार कुशलता उसी प्रकार क्रय योग्य वस्तु है जिस प्रकार चीनी और कॉफी, और मैं इस योग्यता के लिए संसार की किसी भी वस्तु से अधिक मूल्य देने का तैयार हूं।'