प्रतिदिन प्रात: उठने से रात्रि सोने तक आप कुछ न कुछ करते ही रहते हैं। आप यह जानते हैं कि आप नींद के समय तो सो रहे हैं, इसके अतिरिक्त सदैव जागृत हैं। लेकिन आप जो सोच रहे हैं, यह सत्य नहीं है। यह तो आपने अपने शरीर के विषय में समझ लिया है। शरीर आपका वाहन है, आप शरीर के वाहन नहीं हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आप जो भी कर रहे हैं, वह जागरूकता के संग कर रहे हों।
जागरूकता का सीधा सम्बन्ध चेतनता से है। शरीर के जागने या सोने से जागरूकता का कोई सम्बन्ध नहीं है। शरीर के जागने का सम्बन्ध जागरूकता से होता तो संसार से अपराध ही समाप्त जाता, क्योंकि सारे अपराध जब होते हैं तो शरीर जाग रहा होता है।
मूलत: शरीर के जागने की स्थिति में चेतना जागृत नहीं होती है, वह सुप्त होती है, यही स्थिति प्रमाद की होती है, क्योंकि शरीर जाग रहा है और चेतना सुप्त है।
सही अर्थों में जागरूकता का अर्थ है कि आप जो भी करें सोचकर व जानकर करें। एकाग्र होकर, विवेक सम्मत बुद्धि से किया गया कार्य ही जागरूक होकर किया कहलाता है।
जागरूक होकर किए निर्णय सही होते हैं।
जागरूकता ही व्यक्ति और समाज का उत्थान करती है।
वर्तमान में चहुं ओर चंचलता का बोलबाला है। खाने को फॉस्ट फूड चाहिए, पढ़ने में फास्ट रीडिंग चाहिए, सब कुछ फॉस्ट चाहिए, यदि कुछ फॉस्ट नहीं होता तो स्वयं पर नियन्त्रण ही नहीं रहता है। आप से बाहर हो जाते हैं, माहौल तक गर्म हो जाता है, इसका परिणाम सबकुछ गड़बड़ हो जाता है। असफलता मुहं फाड़कर सारी सफलता गप्प कर जाती है।
जीवन विपरीत हो चला है, व्यक्ित भ्रमित है, उसे दिशा ही ज्ञात नहीं है कि किधर जाना है।
शारीरिक सुख यानि इन्द्रिय सुख की पूर्णता ही उसे अशान्त बनाए हुए है। इसी की पूर्ति के लिए ही अपराध बढ़ रहे हैं।
समाज अनुशासनहीन है। ऐसा क्यों, जब समाज की ईकाइ व्यक्ति ही अनुशासनहीन होगा तो समाज कैसा होगा यह सर्वविदित है।
मन की चंचलता ही विसंगतियां लाती है। सुख व दु:ख का आभास भी यहीं होता है।
जब तक सब ठीक नहीं होगा तब तक कुछ अच्छा नहीं होगा।
अत: मन की चंचलता को रोकें, उसे एकाग्र बनाएं जिससे वह जागरूक हो जाए। जागरूक हुए बिना वह विवेक सम्मत बुद्धि से कार्य नहीं करेगा। जागरूकता तभी आएगी जब मन संयमित होगा।
मन के संयम के लिए संकल्प सहित निरन्तर अभ्यास चाहिए। कैसा अभ्यास चाहिए, स्वयं को जानने का। जीवन के उद्देश्य को समझने का और उसके अनुकूल कार्य करने का।
आपको अपने चिन्तन को इतना स्पष्ट बनाना है कि कोई पूर्वाग्रह उसे ढक न पाएं। आप जो निर्णय करें, उसमें उद्देश्य की स्पष्टता हो। इसके लिए एकाग्रता चाहिए।
प्रत्येक अनुभव के साथ अच्छा या बुरा भाव लिप्त रहता है। आपको इस भाव को तटस्थ रहकर समझना है।
आपका एक उद्देश्य होगा तो आपको ज्ञात होगा कि आपको क्या करना है। जो करना है, उसे क्यों करना है और किसलिए करना है यह करने से पूर्व समझना होगा। बार-बार इसके अभ्यास से चेतना शक्ति का विकास होगा और आप जागरूक हो जाएंगे।
जागरूकता, संकल्प और धैर्य हमें विवेकी बना देता है, इसके परिणामस्वरूप हम उद्देश्य की प्राप्ति सहजता से कर सकेंगे।
सत्य का निरीक्षण ही हमारे अनुभव का धरातल मजबूत करता है। जागरूकता से आप शरीर और मन को अलग-अलग समझ सकेंगे और साथ-साथ भी। जागरूक होने से भावनात्मक ज्वार रुकेगा और प्रमाद से बचेंगे, उद्देश्य सम्मुख होगा और सफलता संगिनी बनेगी तो सभी बसन्त सुख के पुष्पों से महक उठेंगे।