मन (बिगड़ैल अश्व )सदृश है घुड़सवार(आप) के हाथों की लगाम ढीली हुई नहीं कि उसने आपको लक्ष्य से विपरीत ले जाना ही है। मन की लगाम कसकर रखें वरना बाद में पछताना पड़ता है। जिसने मन पर विजय पा ली वही भाग्यशाली एवं बुद्धिमान है। मन के दास न बनकर उसके स्वामी बनो और उसे अपने अनुसार चलाओ।ऐसा करने में ही भलाई है।मन को सदैव विवेक रूपी अंकुश से संभालकर रखना चाहिए। विवेक का अंकुश हटते ही मन आपको अपने अनुरूप भटका लेता है। मन को भटकने से बचाने के लिए ज्ञान रूपी चौकीदार की सहायता लेनी चाहिए। चौकीदार जागता है तो चोर चोरी नहीं कर पाता है। आप भी ज्ञान व विवेक के बल पर सजग रहकर मन के बहकावे में आने से बच सकते हैं। जब मन आपके काबू में होगा तो आपको अपनी पहचान होगी और आप जीवन में आत्मविश्लेषण के बल पर मन चाहा विकास कर पाएंगे। मन मैला हो जाए तो सबकुछ मैला हो जाता है। वैसे भी मन का मैल तन के धोने से साफ नहीं होता है।
वस्तुतः सदैव मन के कान मरोड़कर रखें, विवेक के अंकुश से उसे अपने काबू में रखें या मन रूपी अश्व की लगाम कसकर रखें जिससे ये आपको अपने मायाजाल में फंसाकर भटकाए नहीं। मन के मायाजाल में फंसने से बच गए तो समझ लें जीवन का निर्माण आप अपने अनुसार कर सकेंगे।