अमरते आई दौड़ कहाँ से ।
यह यौवन, यह उभरन आली
छीनी कैसे माँ से !
अमरते
पलकें बिह्वल
प्रहर प्रतीक्षक
दिन दीवाने कैसे ?
मास मनाने
लगे, रूठकर
बैठी हूँ मैं जैसे ?
अमरते
माँ के घर-
रहना ही होगा
करके कठिन मजूरी,
मोहन देते
नहीं अभी
अपने घर की मंजूरी !
अमरते
तोड़ूंगी हिम-
शैल, बनाऊंगी
पगडंडी पथ में !
विजय घोष
कर बैठेगा-
यौवन, झंझा के रथ में !
अमरते
जब आँखों से
दीख पड़ेगा
वह उन्मत्त जमाना
परम सुनहला
बन्ध मुक्त-
बल-वैभव का दीवाना !
अमरते
उदधि-जाधौत
चरणों पर अर्पित
कोटि कोटि जयमाला,
कोटि कोटि
थाली जगमग की
मना रही दीवाली ।
अमरते
बैठे, चलो
समय के रथ
किरनीली ज्योति जगा दें
और आत्म-मंथन
का कल-कल
ऊषा बनकर गा दें ।
अमरते
निर्झर, खंडहर,
तरु-कोटर में
गूंथा किसने स्वर है ?
मर्मर अमर
अमर का गाना
सखि ! यह कौन अमर है?
अमरते