जाग रही थी,
चैन न लेती थी
मस्तानी आँखडियां,
पहरा देती थीं
पागल हो, ये
पागलिनी पाँखडियाँ,
भौहें सावधान थीं
ओठों ने भूला
था मुसकाना,
आह न करती
डरती थी, पथ-
पाले कोई दीवाना !
सूरज की सौ-सौ किरणों में, विमल वायु के बहते,
कौन छीन ले गया मुझे अपने से, जागृत रहते ?