माँ, रोवो मत, शीघ्र लौट घर आऊँगा, प्रस्थान करूँ
बाबा दो आशीष, पताका पर सब कुछ क़ुरबान करूँ।
लौटूँगा मैं देवी, हाथ में विजय पताका लाऊंगा।
कष्ट-प्रवास, जेल-जीवन की तुमको कथा सुनाऊँगा।
दौड़ पड़ो वीरो, माता ने संकट में की आज पुकार।
हार न होवे तेरे रहते मेरी पावन भूमि बिहार।
ले झण्डा चल पड़ा, प्राण का मोह छोड़ वह तरुण युवा।
उसकी गति पर अहा ! देश के अमरों को भी क्षोभ हुआ ।
सजा हुई, जंजीरें पहनीं, दुर्बल था, पर वार हुए,
गिट्टी, मोट, चक्कियाँ, कोल्हू हँस-हँस कर स्वीकार हुए।
'मातृ-भूमि' मैं तेरी मूरत देख सभी सह जाऊँगा।
दे लें दण्ड, आर्य-बालक हूँ, मस्तक नहीं झुकाऊँगा।
कष्ट बढ़े, दुर्बल देही थी असहनीय व्यवहार हुआ,
कैदी शैय्या पर पड़ने को गिर-पड़ कर लाचार हुआ,
सेनापति ने कहा, पताके ! अभी कौन बलिहार हुआ?
हुंकारा हरदेव, प्राण मैं दूँगा, लो तैयार हुआ।
"माफ़ी ले लो, अभी समय है," अरे न यों अपमान करो,
झण्डे पर चढ़ने दो मुझको मातृभूमि का ध्यान करो!
प्यारी माँ, मेरे बाबा-हरदेवा अन्तर्धान हुआ।
रक्षक हा भगवान प्रिये, मैं झण्डे पर क़ुरबान हुआ।
जननी बिहार प्रणाम तुम्हें, तेरे गौरव का गान रहे,
मातृभूमि ! तेरे ध्वज की मेरे प्राणों से शान रहे !
क्यों सहसा चल पड़ा? ठहर, आ रही विजय तेरे द्वारे।
'कंधे पर ले चलें' या कि चल पड़ें पूज्य पथ में प्यारे ।