वह आता है किये निहाल, गर्व से उठाये भाल
पुष्य भूमि ह्रदय संभाले पथ में खड़ी;
अब जाता है हमारा शोक क्यों कर रहेगी रोक
दीन दुखी लोगों की अनी सी उमड़ी बड़ी;
सभी खीझने खिजाने और रीझने रिझाने वाले
प्रेमियों की सेना पद पूजते हुए अड़ी,
देवि, सास को सहारा दिये बालकों को गोदी लिये
चूम, द्वार-झांकती लगाये आंसूयों की झड़ी !