तुझको लख युग मुख खोल उठा, बेबस तब स्वर में बोल उठा,
तेरा जब प्रलय-गान निकला, ले, कोटि-कोटि शिर डोल उठा ।
आशा ऊषा यह द्वार खोज विजया, का सोना ले आई !
यह भली जगा दी तरुणाई !
माँ का 'उभार' खोलती सी, जीवन में ज्वर घोलती सी,
विष-घट खाली कर अमृत में घट-घट भर, मस्त डोलती सी,
जी की ज्वाला की दीप-माल आरती बनाकर ले आई,
यह भली जगा दी तरुणाई !
तू बल दे गिरतों को उदार, तू बल दे बलि-पथ को संवार,
तू बल दे मस्तक वालों को- मस्तक देने का स्वर उचार,
जगमग-जगमग उल्लास जगा दीपों में साध उतर आई ।
यह भली जगा दी तरुणाई !
तेरे स्वर पर प्रभु है लहरा, तेरे स्वर पर सुहाग ठहरा,
तेरा स्वर वह गहरा-गहरा, तेरे स्वर पर युग का पहरा,
तू महाप्राण, तू प्रलय गान, तू अमर प्राण, तू बलि महान;
तू मेरे अमर ! उठा वंशी दे फूंक साधना स्वर भाई ।
यह भली जगा दी तरुणाई !