कांटों ने संकेत दिया था शीघ्र पुष्प आने वाले हैं
सागर के वे ज्वार, तुम्हारे घर मोती लाने वाले हैं
पंखिनियाँ, प्रभु की ऊंचाई का, प्राणों में गान करेंगी;
आँसू की बूंदों से, साधें सिमिट-सिमिट पहिचान करेंगी ।
अग-जग में जो ढूंढ़ रहा हूँ वह सांसों पर फूल रहा है;
चाहा था नजरों पर झूलें वह संकट पर झूल रहा है।
एक हिलोर, लोरियाँ गाकर जाना था, गुमराह कर उठी,
किसने जाना था प्रहार की बेला उस पर वाह कर उठी !
जो तड़पन सा उठा, और आँसू सा बेकाबू भर आया,
जी से आँखों पर गालों पर अंगुलियों पर गीत सजाया;
जिसके जी से संकट खेले संकट से जो रह-रह खेला,
संकट के पुष्पक पर आई जिसकी पुण्य-साध की वेला!
जिसके पागलपन में एक प्रणयिनी वंदन की हलचल है,
जिसके पागलपन में, प्रतिभा के सौ-सौ हाथी का बल है,
जिसके पागलपन में, बलि पथ में भी मधुर ज्वार आता है,
अपने पागलपन में, बेदी पर शिर जो उतार आता है !
उसकी याद-याद पर, होती रहे याद कुरबान हमारी,
उसकी साँस-साँस में, कसकें--'महासांस' की 'साँसें' सारी ।
वह आँखों का मीठा धन यादों का मीठा मोहन प्यारा,
वह अरमानों का अपनापन जी की कसकों की ध्वनि-धारा ।
वह मेरे संकोचों के आँगन का शिशु, अनहोना सा धन,
वह मेरे मनसूवों की सीमा-रेखा का निर्मल यौवन,
वह बलि की बेदाग तरुण कलिका, प्रभु-तरु के चरणों झुक-झुक;
करती रहे युगों को, अपनी मृदु मरंद से युग-युग उत्सुक ।