'शंकर' थी; अब कारागृह है हिमगिरि की दीवार,
हाय गले का तौक बना गंगा-यमुना का हार;
धन्य ! बंग खंभात अब्धि की लहरों की हथकड़ियां,
रामेश्वर पर चढ़ी तरंगें बनी पैर की कड़ियाँ ।
कोमलतर बन्दीखाने के तीस कोटि बन्दी हैं
हों गुलाम, जीवन की बेहोशी में आनंदी हैं ।